अशोकनगर में 35 साल के किसान ने पारंपरिक खेती छोड़ फूलों की खेती शुरू की। अब एक साल में चार बीघा जमीन में पांच लाख रुपए तक सालाना की आमदनी हो रही है।
किसान की सफलता को देख गांव के दूसरे किसान भी फूलों की खेती शुरू कर दी है। किसान का कहना है कि दिवाली जैसे त्योहार में डिमांड बढ़ जाती है।
दिवाली और शादी सीजन में बंपर कमाई
इस बार आपको भौरा गांव के रहने वाले लक्ष्मण कुशवाह से मिलवाते हैं। जिला मुख्यालय से 6 किलोमीटर दूर स्थित यह गांव कुछ साल पहले तक सब्जी की खेती के लिए फेमस हुआ करता था, लेकिन अब गांव के किसानों का रुझान फूलों की खेती की ओर बढ़ने लगा है। अब यह गांव फूलों के लिए फेमस होने लगा है।
पारंपरिक खेती में बहुत कम हो रहा था मुनाफा
लक्ष्मण कुशवाहा का कहना है कि, मैंने 10वीं तक पढ़ाई की है। पढ़ाई में मन नहीं लगा तो पिता के साथ खेती करने लगा।
उस समय पिता भी दूसरे किसानों की तरह ही परंपरागत तरीके से गेहूं, सोयाबीन धान और सब्जी की खेती कर रहे थे, लेकिन हम जितनी मेहनत करते थे, उतना मुनाफा नहीं मिल रहा था।
फिर ऐसे ही 6-7 साल पहले सब्जी की खेती के किनारे गेंदे पौधे लगा दिए, उनमें बहुत फूल आने लगे।
फूलों को सब्जी के साथ बेचने लगे। मंडी में ये फूल आसानी से बिक जाते थे। दाम भी अच्छा मिलता था। उस समय क्षेत्र में फूलों की खेती नहीं होती थी।
तब लगा कि फूलों की खेती से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। फिर हमने आधे बीघा में फूलों की खेती की शुरू की।
फूलों की खेती में नुकसान की संभावना कम
लक्ष्मण कुशवाहा का कहना है कि फूलों की खेती में नुकसान की संभावना कम होती है। इसमें धीरे-धीरे मुनाफा होने लगा तो खेती का रकबा भी बढ़ता चला गया।
इस बार चार बीघा में गेंदा, नारंगी और बिजली फूलों की खेती की है, जिसमें साढ़े चार से लेकर 5 लाख रुपए की आमदनी होने का अनुमान है।
कुशवाहा का कहना है कि फूल मंडी में आसानी बिक जाते हैं। इसमें सब्जी की अपेक्षा दोगुना मुनाफा हो रहा है।
‘हर दिन 300 से 400 माला बनाकर बेचते हैं’
किसान का कहना है कि, हर दिन 300 से लेकर 400 माला बनाकर बाजार में बेचते हैं। कुछ फूल बेच देते हैं। एक माला की कीमत 10 से लेकर ₹20 तक रहती है।
जबकि फूल ₹40 प्रति किलो बिक रहे हैं। इस काम को करने में ज्यादा मेहनत भी नहीं लगती है।
परिवार के ही लोग फूलों की तुड़ाई कर देते हैं और आवश्यकता अनुसार काम करते हैं। भाई पिता सहित चार लोग काम करते हैं।
‘फूलों के पौधे घर पर ही तैयार करते हैं’
लक्ष्मण कुशवाहा ने बताया, मैं साल भर गेंदा, नारंगी और बिजली के फूलों की खेती करता हूं। इन सभी के कुछ पौधे दूसरे जिले से लेकर आता हूं।
जबकि कुछ पौधे घर पर ही तैयार करते हैं। उज्जैन जिले सहित कई ऐसी नर्सरी हैं। जहां पर अच्छी किस्म के पौधे मिलते हैं, जो अलग-अलग रेट पर रहते हैं। उन्हें लाकर लगाते हैं।
एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 2 फीट
सबसे पहले खेत तैयार करते हैं। इसकी दो बार जुताई करने के बाद गोबर की देसी खाद डालते हैं। इसके बाद कतार में पौधे लगाते हैं।
एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 2 फीट और एक कतार से दूसरी कतार की दूरी भी दो फीट रखी जाती है।
इससे पौधे का फैलाव बेहतर तरीके से होता है। साथ ही फूलों को तोड़ने में किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होती है।
बारिश शुरू होते ही लगते हैं गेंदा फूल के पौधे
जून के आखिरी और जुलाई के शुरुआती दिनों में गेंदा फूल के पौधे लगाए जाते हैं, जो अगस्त के आखिरी दिनों में फूल देने लगते हैं।
इसके बाद ढाई महीने तक इन पौधों से फूल मिलते रहते हैं। सितंबर, अक्टूबर और नवंबर में भी कुछ दिनों तक फूल लगते रहते हैं। शुरुआती दिनों में ज्यादा फूल टूटते हैं।
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12 महीने रहती है फूलों की डिमांड
शहर में फूलों की डिमांड त्योहार, मांगलिक कार्यक्रम सहित 12 महीने बनी रहती है। इस वजह से किसान दो महीने के अंतर से फूलों की खेती करते रहते हैं।
अगस्त के महीने में भी नए पौधे लगा दिए हैं, जो अक्टूबर तक फूल देने लगेंगे। शादी का सीजन शुरू होते ही फूलों की डिमांड ज्यादा हो जाती है।
इसमें गेंदा फूल के साथ और भी कई प्रकार के फूलों की मांग रहती है। विवाह के समय वरमाला बनाने से लेकर स्टेज सजाने तक के लिए फूलों की जबरदस्त बिक्री होती है।
फफूंदी रोग से बचाना जरूरी
गेंदा फूल के पौधे काफी नाजुक होते हैं। पौधों में केवल फफूंद रोग लगता है। इससे पत्तों पर सफेद रंग की परत जमने लगती है। इसके अलावा तने के अंदर काले रंग का रोग शुरू होता है।
हालांकि, यह रोग कभी-कभी आता है। रोग लगने के बाद से फसल पूरी तरह से चौपट होने लगती है। सफेद रंग की फफूंदी भी कई बार हो जाती है, लेकिन वह आसानी से सही भी हो जाती है।
चार किस्मों से कर रहे लाखों की कमाई
वैसे तो गेंदा फूल की दर्जनों किस्में होती हैं, लेकिन लक्ष्मण अपने खेतों में मात्र चार किस्मों की खेती करते आ रहे हैं। उनका मानना है कि इन्हीं किस्मों से अच्छी उपज मिल जाती है।
साथ ही बाजार में खपत भी बिना मशक्कत के हो जाती है। यही वजह है कि गेंदा की अन्य किस्मों से दूरी बना रखी है।
गेंदा की पहली पूसा संतरा और दूसरी है पूसा वासंती। जबकि नारंगी और बिजली की खेती भी करते हैं।
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