ठंड आने में देरी और मौसम के तेवर का असर रबी फसलों पर भी दिखने लगा है। मौसम अनुकूल नहीं होने के कारण गेहूं, सरसों समेत रबी मौसम की कई फसलें प्रभावित होने लगी हैं।
मिट्टी में नमी की कमी के कारण अंकुरण में देरी हो रही है। पौधों को उचित पोषण भी नहीं मिल पा रहा है। पौधों की वृद्धि की रफ्तार भी सुस्त पड़ रही है।
अगर दो सप्ताह तक तापमान ऐसा ही रहा तो प्रभावित हो सकता है उत्पादन
विज्ञानियों का मानना है कि अगर दो सप्ताह तक तापमान की स्थिति ऐसी ही बनी रही तो उत्पादन भी प्रभावित हो सकता है। गेहूं के पौधे का रंग काला पड़ सकता है।
गेहूं की फसल के लिए रात का तापमान अधिकतम तीन से चार डिग्री सेल्सियस होना चाहिए, जो अभी नहीं है। उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में रात में भी स भी सात से दस डिग्री तक तापमान है।
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अनुकूल मौसम नहीं होने से बढ़ने लगी किसानों की परेशानी, अब पानी की अधिक जरूरत
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले सप्ताह तक गेहूं दलहन एवं मोटे अनाजों की बोआई का क्षेत्रफल पिछले वर्ष की तुलना में अधिक दर्ज किया गया है। सिर्फ तिलहन फसलों की बोआई ही सुस्त थी।
हालांकि कृषि विज्ञानियों का कहना है कि धान की कटनी के बाद सामान्य से अधिक गर्म मौसम के चलते मिट्टी की नमी तेजी से खत्म होने लगी तो किसान रबी फसलों की बोआई समय से पहले करने लगे।
पौधों की सेहत के लिहाज से इसे अच्छा नहीं कहा सकता है, क्योंकि पौधों की जरूरत के अनुसार मिट्टी को नम रखने के लिए पानी की अधिक जरूरत पड़ेगी।
यदि दिसंबर अंत तक हल्की बारिश हो जाए और तापमान में तीन-चार डिग्री तक गिरावट आ जाए तो उत्पादन दर बढ़ सकती है। ऐसा नहीं हुआ तो रबी फसलों की लागत के साथ किसानों की फजीहत भी बढ़ सकती है।
किसान संशय में हैं
विज्ञानियों का कहना है कि बारिश नहीं हुई तो समस्या आगे गंभीर हो सकती है। किसान संशय में हैं।
दिसंबर से फरवरी तक का मौसम रबी फसलों के लिए अधिक महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान देश के दक्षिणी राज्यों में चक्रवातीय बारिश हो रही है।
इससे रबी फसलों की जड़ में पानी लगने का खतरा बढ़ रहा है, जबकि उत्तरी हिस्से में वर्षा का अभाव है। अधिक तापमान ने पौधों की वृद्धि भी रोक दी है।
ज्यादा गेहूं की बोआई
कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक इस बार दलहन से ज्यादा गेहूं की बोआई हुई है।
गुजरात एवं राजस्थान में इस बार सरसों की तुलना में गेहूं और आलू की अधिक बोआई की गई है, क्योंकि लौटते मानसून में सितंबर-अक्टूबर में ज्यादा वर्षा के चलते खेतों में पानी भर गया था।
इससे खरीफ की फसल चौपट हो गई थी और सरसों की बोआई भी समय पर नहीं हो सकी।
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