हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ें

बहुत खास हैं आम की यह किस्में: दूर-दूर से देखने आते हैं लोग

दुनिया भर में आम की हजारों किस्में (यह किस्में) पाई जाती हैं इनमें से लगभग 1500 किस्मों के आम तो भारत में ही पाये जाते हैं।

देश में आम की कई किस्में बहुत अधिक लोकप्रिय हैं जिसमें अल्फांसो, बॉम्बे ग्रीन, चौसा, दशहरा, लंगड़ा, केसर, नीलम, तोतापरी मालदा, सिंदूरी, बादामी, हापुस, नूरजहां, कोह-ए-नूर के नाम अक्सर लोग लेते हैं।

मध्य प्रदेश की भी आम की कई किस्में लोकप्रिय हैं जिसमें नूरजहां आम, सुंदरजा आम और मियाजकी आम शामिल है।

 

फल लगने से पहले ही हो जाती है बुकिंग

मध्य प्रदेश में भी आम की कुछ ख़ास किस्मों का उत्पादन होता है। जिसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं और इनके स्वाद का आनंद लेते हैं।

यहाँ तक कि आम की इन किस्मों के एक-एक फलों की बुकिंग पहले हो हो जाती है। आइये जानते हैं एमपी की इन खास किस्मों के बारे में।

 

नूरजहां आम

एमपी के आलीराजपुर जिले के कट्ठीवाड़ा का नूरजहां आम बहुत अधिक लोकप्रिय है। नूरजहां आम खाना तो दूर इसे देखने तक लोग दूर-दूर से आते हैं।

आम आने से पहले ही एक-एक फल की बुकिंग हो जाती है। एक आम का वजन 500 ग्राम से लेकर 2 किलो तक हो सकता है। बारह इंच तक लंबा हो सकता है। स्वाद लाजवाब है।

जनवरी में फूल आना शुरू होते हैं और फरवरी के आखिर तक पेड़ फूलों से लद जाता है। जून के आखिर तक फलों से भर जाता है।

इसका पौधा अफगानिस्तान से गुजरात होते हुए मध्य प्रदेश आया। कट्ठीवाड़ा में ही 37 किस्में देखी जा सकती है। पेड़ की ऊंचाई 60 फीट तक होती है।

एक पेड़ में 50-100 के करीब आम निकल आते हैं। इस प्रकार करीब 350 आम पांच पेड़ों से मिल जाता है। एक आम 500 रुपये से लेकर 2000 तक बिक जाता है।

यह भी पढ़े : कृषि मंत्री बनते ही शिवराज सिंह चौहान ने ली बैठक, क्या होगी प्राथमिकता

 

सुंदरजा आम

पिछले साल रीवा के गोविंदगढ़ में होने वाले सुंदरजा आम को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग मिला। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने खुश होकर ट्वीट साझा किया था।

वर्ष 1968 में सुंदरजा पर डाक टिकट जारी हो चुका है। सुंदरजा आम देखने में जितना सुंदर है स्वाद में उतना ही लाजवाब है। इसकी सुगंध मदहोश करने वाली है। बारिश की पहली फुहार के बाद यह पकता है।

गोविंदगढ़ के वातावरण में ही यह पनपता है क्योंकि यहां मिट्टी और तापमान दोनों का विशेष महत्व है सुंदरजा पेड़ को फलने-फूलने के लिए।

इसकी पत्तियां, छाल गुठलियां सब काम आती है। यह एंटीऑक्सीडेंट है। विटामिन-ए, विटामिन-सी और आयरन से भरपूर है।

शक्कर की मात्रा कम होती है इसलिए मधुमेह के मरीज भी इसे पसंद करते हैं। सुंदरजा रीवा जिले और पूरे मध्य प्रदेश की भी पहचान बन गया है। एक जिला एक उत्पादक परियोजना में सुंदरजा को शामिल किया गया है।

रीवा के फल अनुसंधान केंद्र कठुलिया में आम पर आगे रिसर्च लगातार चल रही है।

यहां विभिन्न किस्मों के आम के 2345 पेड़ हैं। इनमें बॉम्बे ग्रीन, इंदिरा, दशहरा, लंगड़ा, गधुवा, आम्रपाली, मलिका मुख्य है।

 

जबलपुर का मियाजाकी आम

जबलपुर में सबसे महंगे आम मियाजाकी ने स्वाद की दुनिया में धूम मचा दी है। एक आम की कीमत 20,000 रूपये तक पहुंच जाती है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में तीन लाख रूपये किलो तक कीमत मिल जाती है।

यह लाल रंग का होता है। एक आम 900 ग्राम से लेकर डेढ़ किलो तक का होता है। यह जापान की किस्म है जो थाईलैंड, फिलिपींस में भी होती है। जापान में इसे सूर्य का अंडा कहते हैं।

जबलपुर में 1984 से इसका उत्पादन हो रहा है। इसे पकाने के लिए गर्म मौसम और बारिश दोनों की जरूरत होती है।

जबलपुर से सटे डगडगा हिनौता गांव में इन आमों को दूर से देखा जा सकता है। यहां आम के पेड़ कड़ी सुरक्षा में रहते हैं। इसके मालिकों की सारी ऊर्जा पेड़ों की सुरक्षा में लग जाती है।

ध्यप्रदेश से अब बांग्लादेश अरब, यूके, कुवैत, ओमान और बहरीन देशों को आम का निर्यात हो रहा है।

 

क्या आप जानते हैं आम का इतिहास

आम फल का इतिहास करीब 5000 सालों का है। यह इंडो वर्मा रीजन में पैदा हुआ और पूर्वी भारत और दक्षिण चीन तक पूरे साउथ एशिया में विस्तार से मिलता था।

वर्ष 1498 में जब पुर्तगाली कोलकाता में उतरे तो उन्होंने आम का व्यापार स्थापित किया। आम ट्रॉपिकल और सब ट्रॉपिकल जलवायु में अच्छा फलता है।

प्राथमिक रूप से यह ब्राज़ील, इक्वाडोर, ग्वाटेमाला, हैती, मेक्सिको, पेरू में भी पाया जाता है।

आम का इतिहास बताता है की अंग्रेजी का मेंगो शब्द मलयालम के मंगा और तमिल के मंगाई से बना है।

आम की टहनियों को जोड़कर तरह-तरह की नई किस्में पैदा करने की कला पुर्तगालियों की देन है। जैसे अल्फांसो का नाम एक सैन्य विशेषज्ञ अल्बुकर्क के नाम पर रखा गया।

भारत आए चीनी यात्री व्हेन सांग ने दुनिया को बताया कि भारत देश में आम का फल होता है। मौर्य काल में आम के पेड़ रोड के किनारे लगाए जाते थे जिन्हें समृद्धि का प्रतीक माना जाता था।

आम का पेड़ 60 फीट तक ऊंचा हो सकता है और 4 से 6 साल में ही आम देने लगता है।

आम का पेड़ पत्तियों से कार्बन डाइऑक्साइड सोख लेता है और इसका उपयोग अपने तने, शाखों के लिए करता है।

इसलिए आम की पत्तियों को शादियों के मंडपो, घरों में तोरण के रूप में लगाई जाती हैं।

यह भी पढ़े : किसानो को सस्ती बिजली मिले इसलिए सरकार देगी सब्सिडी