फसलों की कटाई के बाद खेतों में शेष रह गये फसल अवशेषों को जलाना पर्यावरण के लिए ही नहीं बल्कि किसानों के लिए भी हानिकारक होता है। किसान इन फसल अवशेषों का प्रबंधन कर इसे लाभदायक बना सकते हैं। इसके लिए कृषि विभाग द्वारा किसानों के हित में लगातार सलाह जारी की जा रही है।
इस क्रम में भोपाल स्थित जिला किसान कल्याण तथा कृषि विभाग द्वारा फसल अवशेषों के प्रबंधन के लिए सलाह जारी की गई है।
किसान इस तरह करें फसल अवशेषों का प्रबंधन
कृषि विभाग की ओर से बताया गया है कि फसल कटाई के पश्चात इसका एक बहुत बड़ा हिस्सा अवशेष के रूप में अनुपयोगी रह जाता है, जो नवनीकरणीय ऊर्जा का स्त्रोत होता है।
इस तरह के फसल अवशेषों की मात्रा लगभग 62 करोड़ टन है। इसका आधा हिस्सा घरों एवं झोपड़ियों की छत निर्माण, पशु आहार, ईंधन एवं पैकिंग के लिए उपयोग में लाया जाता है।
आज भी कृषि के विकसित राज्यों में सिर्फ 10 प्रतिशत किसान ही अवशेषों का प्रबंधन कर रहे हैं।
फसल अवशेषों को जलाने से होते हैं यह नुकसान
फसलों की कटाई के बाद खेतों में पड़े दाने, गेहूं, चावल जैसी फसलों के डंठल या नरवाई को किसान जला देते हैं, जिससे नरवाई ही नहीं जलती बल्कि भूमि के अंदर उपस्थित सभी सूक्ष्म जीव तापक्रम बढ़ने से नष्ट हो जाते हैं।
फसल अवशेषों को जलाना न सिर्फ किसानों के लिये हानिकारक है बल्कि प्रकृति, पर्यावरण, भूमि का प्रदूषण भी होता है।
फसल अवशेष जलाने से निम्न नुकसान होते हैं:-
- मिट्टी की उर्वरा शक्ति नष्ट होती है,
- खेत की मिट्टी सख्त हो जाती है,
- भूमि की जल धारण क्षमता कम होती है,
- मिट्टी में कॉर्बन की मात्रा कम होती है,
- पशुओं के लिए भूसे की उपलब्धता में कमी आती है,
- धरती का तापमान बढ़ता है,
- जन-धन जंगलों के नष्ट होना के खतरा बना रहता है।
इसके अलावा सरकार द्वारा फसल अवशेषों को जलाने पर जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है।
- 05 मार्च 2017 को नोटिफिकेशन में फसल अवशेष (नरवाई) जलाने पर दो एकड़ से कम में 2500 रुपये,
- दो एकड़ से पांच एकड़ तक 5000 हजार रुपए एवं
- पांच एकड़ से अधिक पर नरवाई जलाने में 15 हजार रुपये का जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया है।
फसल अवशेषों को भूमि में मिलाएँ किसान
कृषि विभाग की उप संचालक सुमन प्रसाद ने किसान भाइयों से अपील की है कि उपलब्ध फसल अवशेषों को जलाने की बजायें वापस भूमि में मिला दें। उन्होंने बताया कि फसल अवशेष खेतों में सड़कर मृदा कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि करते हैं।
जिससे मिट्टी में उपस्थित विभिन्न पोषक तत्व फसलों को उपलब्ध हो पाते हैं।
कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ने से मृदा सतह की कठोरता कम होती है। जल धारण क्षमता एवं मृदा वातन में वृद्धि होती है।
मिट्टी के रासायनिक गुण जैसे उपलब्ध पोषक तत्वों की मात्रा, मृदा की विद्युत चालकता एवं मृदा पी.एच.में सुधार होता है।
किसान इस कृषि यंत्र से बनाये भूसा
उप संचालक ने बताया कि किसान भूसे के डंठल को खेत में ही एम.बी. प्लाऊ से गहरी जुताई कर इसको मिट्टी में दबाये ताकि इससे खाद बन सके। किसान भाई भूसा मशीन (स्ट्रॉ रीपर) का उपयोग कर सकते है।
विशेषक कर कंबाइन हार्वेस्टर की कटाई के बाद गेहूं व धान की फसल में जो लंबे 8-12 इंच भूसे के डंठल खड़े रहते हैं, उसे स्ट्रॉ रीपर पर मशीन से काट कर भूसा बनाया जाता है।
स्ट्रॉ रीपर टैक्टर से चलने वाला यंत्र है इसके द्वारा काटे गए डंठल भूसे के रूप में यंत्र के पीछे लगी हुई बंद ट्राली में एकत्रित हो जाते है।
रीपर चलाने के पश्चात रोटाबेटर चलाकर जुताई करे जिससे जमीन में एकरूपता होती है, भूमि भुर-भुरी होती है, जिससे जुताई करने में आसानी होती है एवं वायु का संचार होता है तथा वर्षा का पानी अधिक से अधिक संचय होता है।