मचान विधि एक आधुनिक खेती तकनीक है, जिससे बेल वाली सब्जियों का उत्पादन बढ़ता है.
कम भूमि में अधिक उपज, कीट रोग नियंत्रण और सरकारी सब्सिडी जैसे फायदे इसे किसानों के लिए लाभदायक बनाते हैं.
देशभर में परंपरागत खेती के साथ-साथ अब किसान आधुनिक और वैज्ञानिक तरीकों को भी अपना रहे हैं. ऐसी ही एक तकनीक है मचान विधि, जो खास तौर पर बेल वाली सब्जियों की खेती के लिए अपनाई जाती है.
इस विधि के ज़रिए किसान कम जमीन में ज़्यादा और बेहतर फसल का उत्पादन कर सकते हैं, जिससे उनकी आमदनी में बड़ा इजाफा होता है.
क्या है मचान विधि?
मचान विधि एक उन्नत खेती तकनीक है जिसमें बांस, लकड़ी या लोहे के पाइप और तार की मदद से खेत में एक जाल या ढांचा बनाया जाता है.
इस जाल पर बेल वाली फसलों को चढ़ाया जाता है ताकि वे जमीन पर फैलने की बजाय ऊपर बढ़ें.
इससे फसलें ज़मीन से कम संपर्क में रहती हैं और खराब होने की संभावना भी कम हो जाती है.
किन फसलों के लिए सबसे उपयुक्त है यह विधि?
इस तकनीक से मुख्य रूप से बेल वाली सब्जियां जैसे –
- लौकी
- खीरा
- करेला
- तोरई
- टिंडा
सहित कुछ फलों जैसे अंगूर, तरबूज आदि की खेती की जाती है. इन फसलों को मचान पर चढ़ाकर उगाने से उनका विकास तेजी से होता है और पैदावार भी बेहतर होती है.
मचान विधि से होते हैं ये फायदे
- फसल कम खराब होती है – बेलें जमीन से ऊपर होने के कारण सड़ने या गलने की संभावना बहुत कम हो जाती है.
- रोग और कीट से बचाव – कीटनाशक या फफूंदनाशक दवाओं का छिड़काव आसानी से किया जा सकता है, जिससे फसल स्वस्थ रहती है.
- अच्छा उत्पादन – खुले और हवादार माहौल में फसलें अधिक विकसित होती हैं और ज़्यादा फल देती हैं.
- किसानों को बंपर मुनाफा – कम लागत में उच्च गुणवत्ता और मात्रा वाली फसल मिलने से किसानों को अच्छा लाभ होता है.
कैसे तैयार करें मचान?
मचान तैयार करने के लिए खेत में मजबूत बांस या लोहे के पाइप को एक निश्चित दूरी पर गाड़ा जाता है.
फिर इनके ऊपर तार या रस्सियों का जाल बुन दिया जाता है. फसल के पौधे जब थोड़े बड़े हो जाते हैं तो उनकी बेलों को इस जाल पर चढ़ा दिया जाता है.
उत्पादन क्षमता
अगर मचान विधि से खेती की जाए, तो एक हेक्टेयर क्षेत्र में निम्नलिखित फसलें प्राप्त की जा सकती हैं:
- टिंडा – 100 से 150 क्विंटल
- लौकी – 450 से 500 क्विंटल
- तरबूज – 300 से 400 क्विंटल
- खीरा, करेला, तोरई – 250 से 300 क्विंटल
कौन-कौन से क्षेत्र अपना रहे हैं यह तकनीक?
पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में कई किसान इस विधि को अपना चुके हैं.
खासतौर पर वे किसान जो सीमित भूमि में खेती करते हैं, उन्हें यह तरीका बेहद लाभदायक साबित हो रहा है.
सरकार से मिल सकता है सहयोग
कुछ राज्यों में बागवानी विभाग या कृषि विभाग द्वारा मचान विधि के लिए अनुदान (सब्सिडी) भी दी जाती है. किसान अपने क्षेत्र के कृषि अधिकारी से संपर्क करके इस योजना का लाभ उठा सकते हैं.
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