सोयाबीन की फसल खरीफ के सीजन की मुख्य फसल में से एक है। सोयाबीन की खेती देश में लगभग 113 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है। सोयाबीन उत्पादन में मध्यप्रदेश सबसे आगे है।
सोयाबीन की खेती यहां 55 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है।
कीट तथा नियंत्रण की विधि
फसल में कीटों का उचित प्रबंधन नहीं होने से उपज में 25-30 प्रतिशत की कमी आ जाती है।
कीट नियंत्रण और सोयाबीन में लगने वाले रोग की महत्वपूर्ण जानकारी।
सोयाबीन में लगने वाले कीट
सोयाबीन की फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए कीट प्रबंधन की सही तकनीक अपनाकर किसान नुकसान को कम कर बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
सोयाबीन की फसल को हानिकारक कीड़ों से कैसे बचाएं?
इसके बारे में आज हम बताने जा रहे है। सोयाबीन की फसल पर लगभग सभी राज्यों में कीटों का प्रकोप देखा जा रहा है।
किसान अक्सर सही समय पर कीटों की पहचान नहीं कर पाते हैं, जिससे उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ता है।
ऐसे में सही समय पर कीटों की पहचान कर सही बचाव के उपाय करके सोयाबीन की फसल को नुकसान से बचाया जा सकता है।
गर्डल बीटल कीट की पहचान और नियंत्रण उपाय
सोयाबीन की फसल में पाए जाने वाले हानिकारक कीड़ों में से एक है गर्डल बीटल।
ये पीले रंग के कैटरपिलर होते हैं, जो सोयाबीन की पत्तियों और तनों को काफी नुकसान पहुंचाते हैं।
इस कीट की सुंडी अंडे से निकलकर तने के अंदर रहकर पौधों को खा जाती है।
इससे पौधे की ऊपरी पत्तियां सूख जाती हैं और तना और टहनियां मुरझा जाती हैं। इसका प्रकोप जुलाई से अक्टूबर तक रहता है।
इसके नियंत्रण के लिए थियोक्लोरोपिड 21.7 एसएस का 750 मिली या प्रोपोकोनोफोस 50 ईसी का 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।
फसल को हानिकारक कीट सेमीलूपर कीट से कैसे बचाएं
सोयाबीन की फसल के सबसे हानिकारक कीटों में सेमीलूपर कीट भी आता है. इनके सुंडी सोयाबीन के पत्ते खाते हैं।
शुरुआत में सुंडी पत्तियों पर छोटे-छोटे छेद करके खाती है और जैसे-जैसे बड़ी होती जाती है, पत्तों में अनियमित आकार के बड़े-बड़े छेद कर देती है।
इसके बाद इनका प्रकोप कलियों, फूलों और नई विकसित कलियों पर पड़ता है। इससे फसल को भारी नुकसान होता है।
इस कीट का प्रकोप फूल आने से पहले और फली बनने की अवस्था में अधिक होता है।
यदि किसान को प्रति मीटर चार सुंडी दिखाई दे तो नियंत्रण के लिए रासायनिक दवा इमेमेक्टिन बेंजोएट 1.9 ईसी का प्रयोग किया जाता है।
दवा का छिड़काव 450 मिली या स्पिनाटोरम 11.7 सै.ए.सी. के 450 मिली का छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए।
तना मक्खी या स्टेम फ्लाई की रोकथाम के उपाय
तना मक्खी सोयाबीन की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले प्रमुख कीटों में से एक है। यह साधारण चमकीले काले रंग का होता है।
पूर्ण विकसित कैटरपिलर हल्के पीले रंग के होते हैं। यह सुंडी तने तक पहुँचती है और टेढ़ी सुरंग बनाकर तने को खा जाती है।
इस प्रकार के प्रकोप से सबसे अधिक नुकसान अंकुरण के बाद 7 से 10 दिनों में होता है। इस रोग से प्रभावित पौधे पूरी तरह सूख जाते हैं।
इसके नियंत्रण के लिए रासायनिक औषध बीटासीफ्लुथ्रिन 8.49 + इमिडोक्लोप्रिड 19.81 प्रतिशत ओडी 350 मिली दवा प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करना चाहिए।
टोबैको कैटरपिलर कीट को कैसे नियंत्रित करें?
टोबैको कैटरपिलर छोटे धब्बेदार कीट होते हैं। ये सोयाबीन की फसल में पत्तों पर रहते हैं और हरे भाग को चबाकर खाते हैं।
इससे प्रभावित पत्तियाँ पूरी तरह से जालीदार हो जाती हैं। इसका कीट प्रकोप फूल आने से पहले और फली बनने के समय अधिक होता है।
यदि प्रति वर्ग मीटर में तीन सुंडी दिखाई दे तो इसके नियंत्रण के लिए रासायनिक औषधि इमेमेक्टिन बेंजोएट 5एसजी को 200 ग्राम की दर से या फ्लूबेंडामाइड 39.35एससी को 150 मिली पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
जैविक कीटनाशकों से नियंत्रण
कीड़ों के कैटरपिलर को नियंत्रित करने के लिए जैविक कीटनाशकों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
जब कीट कैटरपिलर युवा अवस्था में होते हैं, तो जैविक कीटनाशकों का उपयोग बेहतर परिणाम देता है।
बीटी नामक जैविक कीटनाशक को एक लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए।
इससे कैटरपिलर सुस्त हो जाते हैं और दो से तीन दिनों में मर जाते हैं।
कवक से तैयार एक जैविक कीटनाशक ब्यूबेरिया वैसियाना का एक किलोग्राम प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए।
इस औषधि के प्रयोग से सुंडी के सारे अंग नष्ट हो जाते हैं।
विषाणु से बनी जैविक दवा एनपीबी का 250 ग्राम छिड़काव करने से कैटरपिलर मरने लगते हैं।
इस प्रकार इन जैविक कीटनाशकों का प्रयोग कर कम लागत में कीटों को नियंत्रित किया जा सकता है।
कीटों को नियंत्रित करने के लिए कृषि यंत्रों का प्रयोग
फेरोमोन ट्रैप या लाइट ट्रैप के प्रयोग से भी कीटों का प्रकोप कम हो सकता है।
प्रकाश जाल के पास कीट प्रकाश की ओर आकर्षित हो जाते हैं। फिर उन्हें तल पर पानी से भरे टब या जाल में पकड़ा जाता है।
सोयाबीन की फसल में कीटों के प्रकोप को कम करने के लिए यह एक प्रमुख उपकरण है।
यह सोयाबीन पर हमला करने वाले कीटों के बारे में भी जानकारी प्रदान करता है।