फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए इस तरह आसानी से बनाये जीवामृत खाद

इस तरह करें छिड़काव

जीवामृत एक प्राकृतिक खेती में उपयोग की जाने वाली प्रभावशाली खाद है। इसे गोबर के साथ पानी में कई पदार्थों जैसे गौमूत्र, गुड़, दाल का आटा आदि से मिलाकर तैयार किया जाता है।

जीवामृत पौधों की वृद्धि और विकास के साथ-साथ मृदा की संरचना सुधारने में काफी मदद करता है। जिससे फसलों से गुणवत्ता युक्त पैदावार प्राप्त होती है।

प्राकृतिक खेती फसलों के उत्पादन की एक प्राचीन पद्धति है। यह मिट्टी के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है।

प्राकृतिक खेती में रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होता है। इसमें प्राकृतिक रूप से उपलब्ध तत्वों और जीवाणुओं का उपयोग किया जाता है।

यह पद्धति पर्यावरण के अनुकूल होती है तथा फसलों की लागत कम करने में भी कारगर है।

प्राकृतिक खेती में रासायनिक खादों जैसे यूरिया, डीएपी और एनपीके जैसे उर्वरकों का प्रयोग नहीं होता, इसमें इनकी जगह जीवामृत (जीव अमृत), घनजीवामृत एवं बीजामृत का उपयोग पौधों को पोषक तत्व देने के लिए किया जाता है।

इनका उपयोग किसान फसलों पर घोल के छिड़काव अथवा सिंचाई के पानी के साथ कर सकते हैं।

 

जीवामृत क्या होता है?

इसमें जीवामृत एक प्राकृतिक खेती में उपयोग की जाने वाली प्रभावशाली खाद है। इसे गोबर के साथ पानी में कई पदार्थों जैसे गौमूत्र, गुड़, दाल का आटा आदि से मिलाकर तैयार किया जाता है।

जीवामृत पौधों की वृद्धि और विकास के साथ-साथ मृदा की संरचना सुधारने में काफी मदद करता है।

यह पौधों की विभिन्न रोगाणुओं से सुरक्षा का काम भी करता है। पौधों की प्रतिरक्षा क्षमता को भी बढ़ाने का कार्य करता है।

इससे पौधे स्वस्थ बने रहते हैं तथा फसल की बहुत ही अच्छी पैदावार भी मिलती है।

जीवामृत मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की गतिविधि को बढ़ावा देकर बायोस्टिमुलेंट के रूप में काम करता है और जब इसका स्प्रे किया जाता है तो फ़ाइलोस्फोरिक सूक्ष्मजीवों की गतिविधि भी होती है।

यह माइक्रोबियल गतिविधि के लिए प्राइमर की तरह काम करता है और देसी केंचुओं की आबादी को भी बढ़ाता है।

दरअसल जीवामृत एक सूक्ष्म जीवाणुओं का विशाल भंडारण है और ये सारे सूक्ष्म जीवाणु जो पोषक तत्व प्रयोग में लाने योग्य नहीं होते उनको प्रयोग में लाने योग्य बना देते हैं।

दूसरे शब्दों में ये सूक्ष्म जीवाणु भोजन बनाने का कार्य करते हैं इसलिए हम इन्हें पेड़-पौधों का भोजन निर्माणकर्ता भी कह सकते हैं।

देसी गाय के एक ग्राम गोबर में असंख्य सूक्ष्म जीवाणु होते हैं। जब जीवामृत तैयार करते हैं तो हम लगभग लाखों करोड़ों जीवाणु उसमें डाल देते हैं।

ये जीवाणु धीरे-धीरे अपनी संख्या को दोगुनी कर लेते हैं और 72 घंटे के बाद इनकी संख्या असंख्य हो जाती है।

इस जीवामृत को जब हम पानी के साथ मिट्टी में डालते हैं तो यह पेड़ पौधों को भोजन देने, पकाने एवं तैयार करने में जुट जाता है।

 

तरल जीवामृत बनाने के लिए सामग्री

  • प्लास्टिक का एक ड्रम (लगभग 200 लीटर)
  • 180 से 200 लीटर पानी,
  • 10 किलोग्राम देसी गाय का गोबर,
  • 10 लीटर पुराना गौमूत्र,
  • एक किलोग्राम गुड़ या 4 लीटर गन्ने का रस (जीवाणुओं की क्रियाशीलता बढ़ाने के लिए),
  • एक किलोग्राम बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी,
  • एक किलोग्राम दाल का आटा,
  • एक ढकने का कपड़ा।

 

किसान कैसे बनाएं तरल जीवामृत

तरल जीवामृत बनाने के लिए किसान पहले एक प्लास्टिक के ड्रम को छाया में रख दें।

इसके बाद इसमें 10 किलोग्राम देसी गाय के ताजे गोबर, 10 लीटर पुराना गौमूत्र, एक किलोग्राम किसी भी दाल का आटा (अरहर, चना, मूंग, उड़द आदि), एक किलोग्राम बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी तथा एक किलोग्राम पुराने सड़े हुए गुड़ को 180 से 200 लीटर पानी में अच्छी तरह से लकड़ी की सहायता से मिलाए।

अच्छी तरह मिलाने के बाद इस ड्रम को कपड़े से ढक दें। किसान इस बात का ध्यान रखें की घोल पर सीधी धूप ना पड़े।

अगले दिन भी इस घोल को फिर से लकड़ी की सहायता से दिन में दो तीन बार हिलाएँ। इस क्रिया को लगभग 5-6 दिन तक प्रतिदिन करें।

लगभग 6 -7 दिनों के बाद जब घोल में बुलबुले उठना कम हो जाए तब समझ लेना जीवामृत तैयार हो गया है।

जीवामृत तैयार होने में लगने वाला समय बाहरी तापमान पर निर्भर करात है। जहाँ सर्दियों में जीवामृत तैयार होने में समय ज्यादा लगता है वहीं गर्मी के दिनों में यह 2 दिन पहले ही तैयार हो जाता है।

यह 200 लीटर जीवामृत एक एकड़ भूमि के लिए सिंचाई के साथ देने के लिए पर्याप्त है।

 

जीवामृत का उपयोग फसलों में कैसे करें?

ड्रम में तैयार किए गए इस जीवामृत का उपयोग किसानों को प्रत्येक पखवाड़े में करना चाहिए।

किसान इसे या तो सीधे फसलों पर छिड़काव कर सकते हैं या सिंचाई के पानी में मिलाकर पौधों को दे सकते हैं।

फलदार पौधों के मामले में इसे अलग-अलग पौधों पर लगाया जाना चाहिए। किसान जीवामृत को 15 दिनों तक भंडारित करके रख सकते हैं।

फसल को दी जाने वाली प्रत्येक सिंचाई के साथ 200 लीटर जीवामृत का प्रयोग किसान प्रति एकड़ की दर से कर सकते हैं।

अथवा इसे अच्छी तरह से छानकर टपक या छिड़काव सिंचाई के माध्यम से भी प्रयोग किया जा सकता है।

10 से 20 लाइट तरल जीवामृत को 200 लीटर पानी में मिलाकर इसका छिड़काव फसलों पर करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं।

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