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एक बार पेड़ लगाने पर मिलेगा 35 साल तक उत्पादन, होगी बंपर कमाई

 

ताड़ की खेती

 

प्राचीन काल से ही भारतीय आहार में खाद्य तेल अपनी महत्वपूर्ण भूमिका रखता है। खाद्य तेल खाने को स्वादिष्ट बनाता है।

देश में प्रति व्यक्ति सालाना अनुमानित 19 किलोग्राम खाद्य तेल की खपत करता है।

इसके आधार पर सालाना करीब ढाई करोड़ टन खाद्य तेलों की आवश्यकता होती है।

भारत में आवश्यकता में से डेढ़ करोड़ टन का उत्पादन प्राथमिक फसलों (सोयाबीन, रेपसीड़, सरसों, मूंगफली, सूरजमुखी) से किया जाता है, एवं अन्य स्त्रोत जैसे ताड़ का तेल, नारियल इत्यादि से किया जाता है।

शेष 60 प्रतिशत की पूर्ति के लिए भारत खाद्य तेल का आयात करता है।

 

भारत इन देशों से आयात करता है ताड़ तेल

भारत विश्व में वनस्पति तेलों का सबसे बड़ा उपभोक्ता वाला देश है और यह खाद्य तेलों की पूर्ति के लिए आयात पर निर्भर करता है।

भारत अपनी  खाद्य तेलों आपूर्ति का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा  नाइजीरिया, इक्वाडोर, ग्वाटेमाला, पापुआ न्यू गिनी, कोलंबिया, थाईलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया आदि देशों से ताड़-तेल का आयात करता है।

 

ताड़ तेल क्या है

ताड़ एक बीजपत्री वृक्ष है। यह मूल रूप से अफ्रीका, एशिया तथा न्यूगीनी में पाया जाता है।

यह सदाबहार वृक्ष होता हैं जिसकी ऊचाई लगभग 45 से 40 मीटर होती है। इस वृक्ष का जीवन का 30 से 35 वर्ष का होता है।

यह ताड़ तेल का बारहमासी स्त्रोत है। यह खाद्य तेल वाली की फसलों तुलना में सबसे अधिक तेल देने वाली फसल है।

इसकी एक हैक्टर खेती से 4.31 से 6.12 टन तेल प्राप्त किया जाता है।

इस वृक्ष के हरेक भाग (तना, पत्ता, जड़, फल, बिज, रस) का उपयोग अलग-अलग प्रकार से किया जाता है।

भारत में इस वृक्ष के फलों का मुख्य उपयोग खाद्य तेल के लिए किया जाता है। इस तेल को ताड़-तेल (पाम तेल) भी कहा जाता है।

 

भारत में तेल-ताड़ की खेती 

भारत में तेल-ताड़ की खेती के लिए करीब 19.3 लाख हेक्टेयर क्षेत्र चिन्हित किया है। वर्तमान में भारत में ताड़ की खेती 0.333 मिलियन हैक्टर पर की जा रही है।

अभी इसकी खेती आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, असम, केरल, गुजरात, गोवा, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, बिहार, और अंडमान आदि राज्यों में की जा रही है।

तेल-ताड़ की खेती का दायरा बढ़ाने व खाद्य तेल का उत्पादन बढ़ाने के लिए भारत सरकार कई प्रकार की योजना एवं खेती के लोन व सब्सिडी आदि जैसी सुविधाएं दे रही है।

 

भारत में ताड़-तेल का उत्पादन

भारत में वर्तमान में तेल-ताड़ की खेती 0.331 मिलियन हैक्टर में की जा रही है।

कृषि एवं कल्याण विभाग के द्वारा ताड़ की खेती कुल 16.3 प्रतिशत कृषि क्षेत्र के लिए चिन्हित है। भारत में खाद्य तेल की मांग 25 मिलियन मीट्रिक टन है।

भारत अपने घरेलू उत्पादन से मात्र 9 मिलियन मीट्रिक टन की ही पूर्ति कर पाता है बाकि आपूर्ति के लिए 15-16 मिलियन मीट्रिक टन विदेशों से आयात करता है।

भारत का लगभग 70-75 करोड़ रूपये प्रतिवर्ष खाद्य तेल आयात पर खर्च होत है।

भारत में ताड़ तेल का उत्पादन आयात का कुल लगभग 2.5 प्रतिशत है।

 

तेल-ताड़ की खेती के लिए आवश्यक जलवायु

तेल-ताड़ एक आर्द्र उष्णकटिबंधीय वृक्ष है। यह भारत के भूमध्य रेखीय क्षेत्र में अधिक पाये जाते है।

इस वृक्ष के लिए तापमान 22 डिग्री सेल्सियस से 24 डिग्री सेल्सियस और 33 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त माना गया है।

 

तेल-ताड़ वृक्ष को प्रतिदिन 80 प्रतिशत आर्द्रता की आवश्यकता होती है।

यह आर्द उष्णकटिबंधीय वृक्ष होने के कारण इसे अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है।

इस वृक्ष को कम से कम हर महीने 150 मिमी वर्षा की आवश्यकता होती है।

 

तेल-ताड़ की खेती के लिए मिट्टी की आवश्यकता 

तेल-ताड़ को आमतौर पर किसी भी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन यह अधिक आर्द्रता वाला वृक्ष है।

इसलिए इसे गहरी दोमट और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर जलोढ़ मिट्टी इसके लिए उपयुक्त माना गया हैं।

 

भारत में तेल-ताड़ की किस्में

तेल-ताड़ की विश्व में कुल 6 प्रजातियाँ होती हैं। भारत में तेल-ताड़ की कुल तीन प्रजातियाँ पाई जाती है।

पिसिफेरा : यह तेल-ताड़ की ऐसी प्रजाति है जो खोल रहित फल देता है और इससे अधिक मात्रा में तेल प्राप्त होता है।

टेनेरा : यह तेल-ताड़ की बहुत आम प्रजाति है, जो भारत के लगभग सभी क्षेत्र में पाई जाती है। इसका फल पतली खोल वाला होता है इससे औसत तेल प्राप्त होता हैं।

डयूरा : यह तेल-ताड़ की लोकप्रिय प्रजाति है इस प्रजाति का उपयोग व्यावसायिक रूप से किया जाता है। इसके फल की खोल 2 से 8 मिमी मोटी होती है। इसके फल से अत्याधिक मात्रा में तेल प्राप्त होता हैं।

 

तेल-ताड़ के खेती के लिये भूमि तैयारी, मौसम  और रोपण
  • तेल-ताड़ की खेती के लिए पहले भूमि को जुताई करा के भुरभुरी एवं खरपतवार मुक्त बना ले, और प्राकृतिक खाद मिला दे। 
  • बुवाई से पहले मिट्टी को समृद्ध बनाने के लिए खेत को अच्छे से कार्बनिक पदार्थों के साथ पूरक करें।
  • तेल-ताड़ की खेती का अच्छा मौसम जून से दिसंबर माना गया है।
  • 1 हेक्टेयर खेती में 140 से 145 तेल-ताड़ के पौधे लगाए।
  • तेल-ताड़ की की रोपाई त्रिकोणीय विधि के हिसाब से 9 बाई 9 मीटर की दूरी पर करे।
  • इसकी रोपाई के 60 बाई 60 सेमी आकार का गड्ढा बना कर करे।

 

तेल-ताड़ फलों तुड़ाई एवं कटाई
  • तेल-ताड़ की फसल की कटाई समय पर होनी चाहिए क्योंकि यह तेल की गुणवत्ता और मात्रा को प्रभावित करता हैं।
  • इसके फसलों की तुड़ाई फल के पीले-नारंगी रंग होने पर की जाती है।
  • इसके फल को दबाने पर नारंगी रंग का तरल पदार्थ निकले तो यह तुड़ाई के लिए तैयार हैं।
  • तेल-ताड़ की पैदावार रोपण के 4 से 6 बाद मिलने लगती है। तेल-ताड़ की खेती के लाभ
  • तेल-ताड़ से अन्य फसलों के मुकाबले अधिक तेल प्राप्त होता है।
  • तेल-ताड़ की एक हैक्टर खेती से 4.31 से 6.12 टन तेल प्राप्त होता है।
  • तेल-ताड़ की वृक्ष की आयु 35 वर्ष की होती है, इसे एक बार लगाने के बाद हर वर्ष पैदावार प्राप्त की जाती है।
  • तेल-ताड़ में कीट और रोग का कोई भय नहीं होता है। किसान परम्पारिक फसले (सोयाबीन, सरसों, मूंगफली, सूरजमुखी) के मुकाबले तेल-ताड़ से अधिक खाद्य तेल प्राप्त होता है।
  • तेल-ताड़ एक व्यावसायिक फसल है, इसके चोरी होने का कोई खतरा नही होता। 
  • तेल-ताड़ अधिक खपत होने की दृष्टि से इसकी पैदावार एवं बिक्री को लेकर कोई चिंता नहीं होती है।
  • तेल-ताड़ के घरेलू उत्पादन से विदेशों से आयात कम करना होता है एवं इससे देश की मुद्रा की बचत होती है।

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