आज के समय में फसल उत्पादन के लिए किसान यूरिया, डीएपी सहित अन्य खाद उर्वरक का उपयोग करते हैं, पर इन उर्वरकों का अधिकतम लाभ तब ही मिलता है जब इनका उपयोग सही समय और संतुलित मात्रा में किया जाए अन्यथा यह व्यर्थ ही चला जाता है।
कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा समय-समय पर किए गए प्रयोगों से यह बात साबित हो चुकी है कि खेतों से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने के लिये उर्वरकों के संतुलित व समन्वित उपयोग की जरूरत होती है न कि उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल की।
अधिक उत्पादन के लिए
कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए प्रयोगों के अनुसार एक ही तरह के खाद-उर्वरकों का उपयोग करने से फसलों को उचित पोषक तत्व नहीं मिल पाते, जिससे खेतों की उर्वरा शक्ति क्षीण हो जाती है।
इसलिये किसानों को मिट्टी की प्रकृति को ध्यान में रखकर संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिये।
ऐसा करके किसान उर्वरकों की खपत काफी कम कर सकते हैं और अपना आर्थिक बोझ भी कम कर सकते हैं।
किसान खाद-उर्वरक के इस्तेमाल से पहले जान लें यह बातें
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार फसलों में उर्वरकों के उपयोग से पहले यह जानना जरूरी है कि मिट्टी की प्रकृति कैसी है अर्थात मिट्टी भारी है या हल्के किस्म की।
ऐसा इसलिये आवश्यक है क्योंकि जब भूमि में उर्वरकों का उपयोग किया जाता है तब उसका बहुत बड़ा भाग मिट्टी की निचली सतह में बहकर चला जाता है, जिसका फसल में कोई उपयोग नहीं हो पाता।
बलुई या हल्की मिट्टी में नाइट्रोजन युक्त उर्वरक जैसे सोडियम नाइट्रेट, कैल्शियम नाइट्रेट आदि का रिसाव चिकनी मिट्टी की अपेक्षा अधिक होता है।
इसलिये हल्की मिट्टी में नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिये, अन्यथा फसलों को जरूरत के मुताबिक उर्वरक प्राप्त नहीं होंगे और उत्पादन पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
किसान कब एवं कैसे करें खाद-उर्वरक का छिड़काव
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार उर्वरकों को हमेशा पौधों की जड़ों के आसपास देना चाहिये। जमीन के ऊपर उर्वरक बिखेरने से वह पौधों की जड़ों तक नहीं पहुंच पाते।
नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों को एक बार में न देकर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में फसल की आवश्यकतानुसार दो या तीन बार में देना चाहिये।
साथ ही उर्वरक देते समय भूमि में नमी होना भी आवश्यक है, क्योंकि पौधों की जड़ें घोल के रूप में पोषक तत्व ग्रहण करती हैं।
खड़ी फसलों में उर्वरकों का प्रयोग पानी में घोलकर करना चाहिये।
नत्रजन, स्फुर व पोटाश जैसे यूरिया, डीएपी व पोटेशियम सल्फेट को पानी में घोलकर खड़ी फसलों में दिया जा सकता है।
जैविक खादों जैसे गोबर खाद, कम्पोस्ट अथवा हरी खाद के प्रयोग से भी रासायनिक उर्वरकों की खपत कम की जा सकती है।
कृषि विशेषज्ञ किसानों को यह भी सलाह देते हैं कि फसलों को जितने पानी की आवश्यकता हो उतनी ही सिंचाई करनी चाहिए अर्थात खेतों को अनावश्यक रूप से जलमग्न नहीं करना चाहिये।
ऐसा करने से उर्वरक पानी के साथ रिसकर जमीन में नीचे बह जाते हैं।
खड़ी फसल में उर्वरकों का प्रयोग तब ही करना चाहिये जब खेत पांव सहन करने लगें।
साथ ही खरपतवारों को निकालकर उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिये अन्यथा वे भी उर्वरकों से पोषक तत्व ग्रहण कर लेते हैं और उत्पादन क्षमता घट जाती है।
उर्वरकों का उपयोग मृदा के पीएच मान के आधार पर ही करना चाहिये, क्योंकि सभी उर्वरक हर प्रकार की जमीन में उपयुक्त नहीं होते।