Soyabean top variety | पूरे मध्य क्षेत्र में सोयाबीन की बोवनी का कार्य चल रहा है।
मध्यप्रदेश के बाद महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, राजस्थान, असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड सहित अन्य राज्यों में सोयाबीन की अधिकतर खेती की जाती है। सोयाबीन की बुआई 15 जून से 15 जुलाई तक चलती है।
इस अवधि के बीच किसानों को सोयाबीन की बोवनी अवश्य ही कर लेनी चाहिए।
चूंकि सोयाबीन एक प्रमुख प्रोटीन स्रोत वाले उत्पाद के तौर पर जाना जाता है। सोयाबीन की मांग भारत में काफी है।
आज यहां आर्टिकल में जानेंगे की, जुलाई मे सोयाबीन की कौन सी किस्मों की बोवनी करनी चाहिए, जिनसे किसानों को बढ़िया पैदावार मिले…
सोयाबीन की उन्नत किस्में
सोयाबीन की खेती में अच्छे और उन्नत किस्मों का चुनाव किया जाना जरूरी है।
अच्छी किस्म के सोयाबीन से अच्छा उत्पादन किया जा सकता है।
इसलिए सोयाबीन की कुछ उन्नत किस्मों के बारे में जानकारी इस प्रकार है…
सोयाबीन जेएस 93-05 वैरायटी
यह किस्म मध्य क्षेत्र (महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र) के लिए अनुसंशित है।
किस्म की विशेषता है प्रमुख रोगों एवं कीटों के प्रति प्रतिरोधी।
इसके पौधे में अर्ध निर्धारित, बैंगनी फूल, लांसोलेट पत्तियां, चार बीज वाली फलियां, चमकदार तना और फलियां, बिना टूटने वाली, काली हिलम रहती है।
90 से 95 दिन के अंदर शीघ्र पकने वाली इस सोयाबीन किस्म के फूल बैंगनी रंग के होते हैं।
इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 20 से 25 क्विंटल सोयाबीन का उत्पादन किया जा सकता है।
सोयाबीन जेएस 72-44 वैरायटी
सोयाबीन की यह किस्म मध्य क्षेत्र के लिए अनुशंसित है।
इसकी मुख्य विशेषता यह है की, यह किस्म कली झुलसा, पर्णपातक, गर्डल बीटल और तना मक्खी के प्रति संवेदनशील है।
इसमें बैंगनी फूल, गहरे भूरे रंग का यौवन, पीला बीज आवरण, हल्का काला हिलम और निर्धारक रहती है।
95 से 105 दिनों के अंदर पकने वाली सोयाबीन की यह उन्नत किस्म प्रति हेक्टेयर 25 से 30 क्विंटल तक की सोयाबीन की पैदावार दे सकती है।
सोयाबीन जेएस 335 वैरायटी
इस किस्म की खेती आमतौर पर मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान में की जा सकती है।
जेएस 335 सोयाबीन किस्म बैक्टीरियल दाना, बैक्टीरियल ब्लाइट, कली ब्लाइट और अल्टरनेरिया लीफ ब्लाइट के प्रतिरोधी है।
इसके बैंगनी रंग के फूल, काली हिलम है। 115 से 120 दिन में पकने वाली सोयाबीन की यह उत्कृष्ट किस्म 20 से 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सोयाबीन की पैदावार कर सकती है।
इसका दाना पीला और इसकी फल्लियां चटकने वाली होती है।
सोयाबीन समृद्धि वैरायटी
93 से 100 दिनों के अंदर तैयार होने वाली यह किस्म किसानों को सोयाबीन के फसल का जल्दी उत्पादन देती है।
साथ ही 20 से 25 क्विंटल तक प्रति हेक्टेयर उत्पादन भी दे देती है।
अहिल्या 3 (सोयाबीन एनआरसी 7 किस्म) वैरायटी
सोयाबीन की अहिल्या 3 (सोयाबीन एनआरसी 7) वैरायटी मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान के लाए अनुसंशित है।
यह किस्म बैक्टीरियल pustule, बैक्टीरियल ब्लाइट, कली ब्लाइट और अल्टरनेरिया लीफ ब्लाइट के प्रतिरोधी है।
90 से 99 दिनों के अंदर शीघ्र तैयार होने वाली इस सोयाबीन किस्म के फूल बैंगनी और इसके दाने पीले रंग के होते हैं।
यह किस्म कीट प्रतिरोधी है। इससे 25 से 35 क्विंटल हेक्टेयर तक सोयाबीन का उत्पादन किया जा सकता है।
सोयाबीन अहिल्या 4 (सोयाबीन एनआरसी 37) वैरायटी
इस किस्म की खेती मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र (विदर्भ और मराठवाड़ा), यूपी का बुंदेलखंड क्षेत्र में की जा सकती है।
इस किस्म की खास बात यह है की, यह किस्म कॉलर रोट, बैक्टीरियल पुस्ट्यूल, पॉड ब्लाइट और कली ब्लाइट जैसे सिंड्रोम के लिए मामूली प्रतिरोधी। स्टेम फ्लाई और लीफ माइनर के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है।
99 से 105 दिन में पककर तैयार करने वाली इस सोयाबीन किस्म से 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार होती है।
पीके 472 वैरायटी
सोयाबीन की पीके 472 किस्म उत्तरी मैदान और मध्य क्षेत्र के लिए अनुसंशित है।
यह किस्म बैक्टीरियल पस्ट्यूल और वाईएमवी के प्रति प्रतिरोधी, राइजोक्टोनिया के प्रति सहनशील है।
यह किस्म 100 से 105 दिनों में तैयार होती है। इस किस्म के फूल का रंग सफेद और दाने का रंग पीला होता है।
इस किस्म की उपज क्षमता 30 से 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
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