खेत में ही बनने लगेगा यूरिया, हरी खाद के लिए इस तरह करें ढैंचा की खेती

आज के समय में किसान एक साल में कई फसलें लेने के साथ ही रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं जिससे दिन प्रति दिन मिट्टी की उर्वरक क्षमता कम होती जा रही है। जिसका सीधा असर फसल के उत्पादन पर पड़ रहा है, इस कारण उपज क्षमता बढ़ने की बजाय घटते जा रही है।

इसका मुख्य कारण मिट्टी में ऑर्गेनिक कॉर्बन की मात्रा में कमी होना है। किसान इस कमी को खेत में हरी खाद बनाकर पूरा कर सकते हैं।

 

हरी खाद क्या होती है?

हरी खाद उस फसल को कहते हैं, जिसकी खेती मुख्य रूप से मिट्टी में पोषक तत्वों को बढ़ाने और उसमें जैविक पदार्थों की पूर्ति के उद्देश्य से की जाती है।

इस प्रकार की फसल को फूल, आने को अवस्था में हल या रोटावेटर चलाकर मिट्टी में मिला दिया जाता है।

जिससे मिट्टी में अपघटन बढ़ने के कारण जैविक गुणों में वृद्धि होती है और खेत की मिट्टी को पोषक तत्व प्राप्त होते हैं।

इसमें मिट्टी को फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश के साथ ही माइक्रोन्यूट्रिएंट्स भी प्राप्त होते हैं।

 

हरी खाद के लिए किसान लगायें ढैंचा की फसल

वैसे तो किसान गर्मी के दिनों में हरी खाद के लिए ढैंचा, सनई, उड़द, मूंग, लोबिया आदि लगा सकते हैं लेकिन इनमें सबसे अच्छा ढैंचा को माना जाता है। यह सबसे तेजी से मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरीकरण का काम करता है। यह सस्बेनिया कुल में आता है।

इसके पौधे के तने में सिम्बायोटिक जीवाणु होते हैं, जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन का नाइट्रोजिनेज नामक एंजाइम की सहायता से मृदा में स्थिरीकरण करते हैं।

ढैंचा की हरी खाद से खेत की मिट्टी को 80-120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 15-20 किलोग्राम फॉस्फोरस और 10-12 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है।

जिससे अगली फसलों को रासायनिक खादों ख़ासकर यूरिया की बहुत ही कम आवश्यकता होती है।

इसके अलावा ढैंचा कार्बनिक अम्ल पैदा करता है, जो लवणीय और क्षारीय मृदा को भी उपजाऊ बना देता है।

ढैंचा की विकसित जड़ें मृदा में वायुसंचार और आर्गेनिक कार्बन की मात्रा को बढाती है।

मिट्टी में उपस्थित सूक्ष्मजीव इसे खाद्य पदार्थ के रूप में वृद्धि होने के साथ–साथ फसलों को आसानी से पोषक तत्व प्राप्त हो जाते हैं।

इससे फसल का उत्पादन तो बढ़ाता ही है, साथ ही मृदा के पोषक तत्वों में भी सुधार होता है।

 

40 से 50 दिनों में तैयार हो जाती है फसल

मिट्टी में घटते हुए पोषक तत्वों को संतुलित बनाए रखने के लिए ढैंचा की खेती एक बेहतरीन विकल्प है।

ढैंचा को दो फसलों के बीच की अवधि में या उस समय लगाया जाता है, जब खेत खाली रहते हैं

40 से 50 दिनों के बाद जब ढैंचा की फसल तैयार हो जाती है तब इसे मिट्टी में पलटकर दबा सकते हैं।

जिससे मिट्टी के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में वृद्धि होती है, इस तरह खड़ी फसल को मिट्टी में दबाने को ही हरी खाद के नाम से जाना जाता है।

 

ढैंचा की खेती के लिए मिट्टी और जलवायु

सामान्यतः ढैंचा की खेती से अधिक उपज लेने के लिये काली चिकनी मृदा सर्वाधिक उपयुक्त होती है, जबकि हरी खाद के लिए किसी भी प्रकार की भूमि में इसे लगा सकते हैं।

यहाँ तक कि इसका पौधा जल जमाव की स्थिति में भी आसानी से विकास कर लेता है।

ढैंचा की हरी खाद लेने के लिए किसी ख़ास तरह की जलवायु की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन उत्तम पैदावार लेने के लिए खरीफ में लगाना सर्वाधिक उपयुक्त होता है।

ढैंचा के पौधे पर गर्मी और सर्दी का ज्यादा असर देखने को नहीं मिलता है। पौधे के अंकुरण के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है।

इसके बाद पौधे किसी भी तापमान पर आसानी से अपना विकास कर लेते हैं।

जब सर्दी में तापमान 8 डिग्री सेल्सियस से नीचे जाने लगता है, तब इस पर हानिकारक प्रभाव देखने को मिलते हैं।

 

ढैंचा की खेती का समय

ढैंचा की बुआई के लिए मई के आखरी सप्ताह से लेकर जून के दुसरे सप्ताह तक का समय उपयुक्त माना जाता है।

इसकी बुआई के लिए हल्की बारिश के बाद या हल्की सिंचाई करके खेत की जुताई कर बीज को छिड़ककर पाटा लगा दिया जाता है।

हरी खाद के लिए ढैंचा के बीज की मात्रा 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, जबकि बीज लेने के लिये 12–15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होती है।

फसल से बीज लेने के लिये पौधे से पौधे की दूरी 40-50 सेंटीमीटर सर्वोत्तम होती है।

 

ढैंचा की उन्नत किस्में

  • पंजाबी ढैंचा – इस किस्म की वृद्धि काफी तेजी से होती है,
  • सी एंड डी 137 – यह प्रजाति क्षारीय मृदा के लिए उपयुक्त है,
  • हिसार ढैंचा – यह किस्म जल जमाव वाले क्षेत्र के लिए उपयुक्त है,
  • पन्त ढैंचा – यह प्रजाति हरी खाद के लिये सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इसका वानस्पतिक विकास काफी तेजी से होता है।

 

ढैंचा की फसल में कितना खाद डालें और कब सिंचाई करें

किसान ढैंचा की अच्छी बढ़वार के लिये बुआई के समय 20-25 किलोग्राम नाइट्रोजन और 50 किलोग्राम फॉस्फोरस का छिड़काव करें, जिससे जुताई करने के बाद इसका अपघटन तेजी से होता है।

वहीं खरीफ के समय बोई गई ढैंचा के लिए बुआई के बाद अलग से पानी देने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

वर्षा ऋतू में वर्षा का पानी पर्याप्त होता है। यदि बारिश न हो, तो 4-5 सिंचाई में ढैंचा तैयार हो जाता है।

 

ढैंचा की फसल को खेत में किस समय पलटें

ढैंचा की फसल 40-50 दिनों की हो जाए या जब फूल आने लगे, तो रोटावेटर से जुताई करके मृदा में पलटकर मिला देना चाहिए।

इस समय मृदा में नमी का होना आवश्यक होता है, ताकि जैव पदार्थ का अपघटन शीघ्र हो जाए

इस समय तक ढैंचा की फसल से 80–120 किलोग्राम नाईट्रोजन, 15-20 किलोग्राम फॉस्फोरस और 10–12 किलोग्राम पोटाश के साथ ही 20-25 क्विंटल जैव पदार्थ प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाता है।

धान की रोपाई के लिए ढैंचा के पलटने के तुरंत बाद पानी भरकर रोपाई की जा सकती है।

धान की फसल में भरा पानी ढैंचा के अपघटन में सहायक होता है। इस प्रकार धान की रोपाई के 5-7 दिनों बाद नाईट्रोजन का 50 प्रतिशत भाग अमोनिकल नाईट्रोजन के रूप में पौधों को उपलब्ध हो जाता है।

ढैंचा की फसल 45 दिनों से अधिक की हो जाती है, तो अपघटन धीरे-धीरे होता है।

 

ढैंचा बीज के लिए फसल की कटाई कब करें

जून में बोई गई ढैंचा की फसल नवम्बर के प्रथम सप्ताह से तृतीय सप्ताह के बीच पककर तैयार हो जाती है।

इससे 12-15 क्विंटल बीज प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाते हैं।

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