कृषि विशेषज्ञों से जानिए
सोयाबीन की बोवनी में अब ज्यादा समय नहीं बचा है, इस समय किसानों को किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए जानिए.
मध्यप्रदेश में पीले सोने के नाम से मशहूर सोयाबीन की बोवनी को लेकर ज्यादा समय नहीं बचा है।
किसान भी स्वयं की भूमि को लेकर लगभग अपनी तैयारियों को अंतिम रूप दे चुके हैं। इधर प्रदेश में प्री मानसून की बारिश होने लगी है।
संभवतः 18 जून से 20 जून तक मानसून मध्य प्रदेश के सभी जिलों में दस्तक दे देगा।
ऐसे में किसान साथियों को सोयाबीन की बोवनी के दौरान किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए यह जान लीजिए : –
- मध्य प्रदेश के अधिकांश किसान सोयाबीन का बीज स्वयं का ही रखते हैं। मतलब पिछले वर्ष जिस किस्म की सोयाबीन बोई गई थी वहीं किस्म इस वर्ष भी बोते हैं।
- यहीं पर किसानों को ध्यान देना चाहिए किसानों को प्रमाणित एवं भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान इंदौर अनुशंसित सोयाबीन बीज खरीदना चाहिए।
- स्वयं के पास उपलब्ध बीज का अंकुरण परिक्षण कर लें कम से कम 70 प्रतिशत् अंकुरण क्षमता वाला बीज ही बुआई के लिए रखें।
यदि किसान साथी बाहर कहीं ओर से उन्नत बीज लाते हैं तो विश्वसनीय/विश्वास पात्र संस्था/संस्थान से बीज खरीदें साथ हीं पक्का बिल अवश्य लेवें एवं स्वयं भी घर पर अंकुरण परीक्षण करें।
किसान भाई अपनी जोत के अनुसार कम से कम 2 -3 किस्मों की बुआई करें।
कृषि वैज्ञानिकों द्वारा अनुशंसित किस्में जेएस 9560, जेएस 9305, नवीन किस्में जेएस 2034, जेएस 2029 एवं आरवीएस 1135, आरवीएस 2001-04, एनआरसी-86, जेएस-9752 सोयाबीन बीज की बुवाई किसान कर सकते हैं।
बुआई से पूर्व बीजोपचार जरुर करें
बीजोपचार हमेशा फजिंसाईड इसेक्टिसाइड राइजोबियम में करना चाहिये।
इस हेतु जैविक फफूंदनाशक ट्रोईकोडर्मा वीरडी 5 ग्रा./किग्रा. बीज अथवा फफूंदनाशक (थायरम+कार्बोक्सीन 3 ग्रा./कि.ग्रा. बीज) या थायरम+ कार्बेन्डाजिम (2:1) 3 ग्रा./कि.ग्रा. अथवा पेनफ्लूफेन+ट्रायफ्लोक्सीस्ट्रोबीन (1 मि.ली./कि.ग्रा.) के मान से उपचारित करें।
रोग प्रतिरोधक किस्मों का चयन करें
- सोयाबीन की प्रति सोयाबीन की फसल में प्रति वर्ष बीमारियां एवं रोग लगने के कारण फसल की पैदावार प्रभावित हो रही है।
- इसको देखते हुए किसान रोग प्रतिरोधक किस्मों का चयन करें एवं रोग नियंत्रण के लिए कृषि विभाग/कृषि वैज्ञानिकों द्वारा अनुशंसित कीटनाशक थायोमिथाक्सम 30 एफ.एस. (10 मि.ली./कि.ग्रा. बीज) या इमिडाक्लोप्रिड 48 एफ.एस. (1.2 मि.ली./कि.ग्रा. बीज) से अवश्य उपचारित करें।
- इसके बाद जैव उर्वरक (राइजोबियम एवं पीएसबी कल्चर (5 से 10 ग्राम/कि.ग्रा. बीज के मान से) का अनिवार्य रुप से उपयोग करें।
बीज दर यह रखें
कृषि वैज्ञानिकों द्वारा अनुशंसित विधि सोयाबीन की खेती करने से किसानों को अच्छी पैदावार होगी कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार सोयाबीन की अनुशंसित बीज 75-80 कि.ग्रा./हे. की दर से उन्न्त प्रजातियों की बुआई करें।
(एक हेक्टर क्षेत्र में लगभग 4.50 लाख पौध संख्या होनी चाहिए) कतार से कतार की दूरी कम से कम 14-18 इंच के आसपास रखें।
गत वर्ष अधिक वर्षा के कारण सोयाबीन की फसल प्रभावित हुई थी इस स्थिति काम ध्यान में रखते हुये यदि संभव हो तो रेज्ड बैड विधि से फसल की बुआई करें।
इस विधि से फसल बुआई करने से कम वर्षा एवं अधिक वर्षा दोनों स्थिति में फसल को नुकसान नहीं होता है।
खाद/उर्वरक कि यह मात्रा रखें
- सोयाबीन की फसल के लिए प्रमुख रूप से किसान सुपर एवं डीएपी खाद का इस्तेमाल करते हैं।
- किसान साथी नाईट्रोजन, फास्फोरस, पोटास एवं सल्फर की मात्रा क्रमशः 20:60:30:20 कि.ग्रा./हे. के मान से उपयोग करें।
- इस हेतु निम्नानुसार उर्वरक का उपयोग कर सकतें हैं एन.पी.के. (12:32:16) 200 किग्रा.+25 किग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हेक्टर।
- डी.ए.पी. 111 किग्रा. एवं म्यूरेट ऑफ पोटाश 50 किग्रा.+25 किग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हेक्टर।
बुवाई कब और कैसे करें
सोयाबीन की बोवनी 4 इंच वर्षा होने के बाद ही करें, किसान फसल बुवाई यदि (डबल पेटी) सीड कम फर्टिलाईजर सीड ड्रिल से करते है तो बहुत अच्छा है जिससे उर्वरक एवं बीज अलग अलग रहता है और उर्वरक बीज के नीचे गिरता है तो लगभग 80 प्रतिशत उपयोग हो जाता है डबल पेटी बाली मशीन न हो तो अन्तिम जुताई के समय पर अनुशंसित उर्वरक का उपयोग करें।
किसान अधिक जानकारी के लिए अपने क्षेत्र के वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी के कार्यालय या संबंधित क्षेत्रीय ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं।
बुवाई का उपयुक्त समय कौनसा है
- किसान सोयाबीन की बुवाई करने के दौरान किसी भी प्रकार की जल्दबाजी करने से बचें।
- प्री मानसून के दौरान अधिक बारिश होने के पश्चात भी रुककर सोयाबीन की बोवनी करना उचित रहेगा, क्योंकि यदि प्री मानसून की बारिश के पश्चात यदि मानसून के आने के दौरान लंबी खेंच होती है तो इससे सोयाबीन की फसल प्रभावित होगी।
- शुरुआत के दौरान यदि सोयाबीन के पौधे कमजोर रहे तो इनसे अच्छी पैदावार नहीं हो पाएगी।
- इसलिए किसान नियमित मानसून के पश्चात लगभग 4 इंच वर्षा होने के बाद ही बुवाई करना उचित होता है।
- मानसून पूर्व वर्षा के आधार पर बोवनी करने से सूखे का लम्बा अंतराल रहने पर फसल को नुकसान हो सकता है।
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