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अश्वगंधा की खेती से करिए मोटी कमाई

 

बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त है यह समय

 

वैसे तो कृषि वैज्ञानिक इसकी बुवाई के लिए अगस्त के महीने को ज्यादा सही मानते हैं.

लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में जब सितंबर और अक्टूबर में बारिश की गतिविधियां कम हो जाती हैं तब किसान इसकी बुवाई करते हैं.

 

कैशकॉर्प के नाम से मशहूर अश्वगंधा की खेती से किसान मोटी कमाई कमाई कर सकते हैं.

अगर आप भी इस औषधीय पौधे की खेती करने की योजना बना रहे हैं तो इसकी बुवाई के लिए यह सबसे उपयुक्त समय है.

वैसे तो कृषि वैज्ञानिक इसकी बुवाई के लिए अगस्त के महीने को ज्यादा सही मानते हैं.

लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में जब सितंबर और अक्टूबर में बारिश की गतिविधियां कम हो जाती हैं तब किसान इसकी बुवाई करते हैं.

 

अश्वगंधा एक बहुवर्षीय पौधा है. इसके फल, बीज और छाल का उपोयग विभिन्न दवाइयों को बनाने में किया जाता है.

सभी जड़ी-बूटियों में सबसे अधिक प्रसिद्ध अश्वगंधा ही है. तनाव और चिंता को दूर करने में अश्वगंधा को सबसे फायदेमंद माना जाता है.

विविध इस्तेमाल के कारण इसकी मांग हमेशा बनी रहती है.

वहीं धान, गेहूं और मक्का की खेती के मुकाबले किसान करीब 50 प्रतिशत अधिक मुनाफा प्राप्त करते हैं.

यहीं वजह है कि किसान बड़े पैमाने पर इसकी खेती करने लगे हैं.

 

बिहार में भी सफलतापूर्वक हो रही है अश्वगंधा की खेती

बिहार जैसे राज्य में भी अब इसकी खेती हो रही है. पहले बेगूसराय और भागलपुर जिले में प्रयोग के तौर पर इसकी खेती की गई थी, जो सफल रही.

अब राज्य के कृषि वैज्ञानिक इसे बिहार के अन्य हिस्सों, जैसे कि उत्तर बिहार के गोपालगंज, सीवान और सारण में भी खेती करने की योजना बना रहे हैं.

केंद्र सरकार की जलवायु अनुकूल खेती के तहत औषधीय पौधा अश्वगंधा की खेती को बिहार में प्रोत्साहित किया जा रहा है.

 

अश्वगंधा की खेती के लिए जरूरी बातें

औषधीय पौधा अश्वगंधा की खेती के लिए बलुई दोमट और लाल मिट्टी काफी उपयुक्त होती है, जिसका पीएच मान 7.5 से 8 के बीच रहे तो पैदावार अच्छी होगी.

गर्म प्रदेशों में इसकी बुआई होती है. अश्वगंधा की खेती के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान और 500-750 मिली मीटर वर्षा जरूरी होती है.

पौधे की बढ़वार के लिए खेत में नमी होनी चाहिए. शरद ऋतु में एक से दो वर्षा में जड़ों का अच्छा विकास होता है.

 

प्रति हेक्टेयर 10 से 12 किलो बीज की होती है जरूरत

बुआई के लिए 10 से 12 किलो बीज प्रति हेक्टेयर की दर से पर्याप्त होता है.

सामान्यत: बीज का अंकुरण 7 से 8 दिन में हो जाता है. इसकी दो प्रकार से बुवाई की जाती है. पहली विधि है कतार विधि.

इसमें पैधे से पौधे की दूरी 5 सेंटीमीटर और लाइन से लाइन की दूरी 20 सेंटीमीटर रखी जाती है.

दूसरा है छिड़काव विधि- इस विधि से ज्यादा अच्छे तरह से बुआई होती है.

हल्की जुताई कर के रेत में मिलाकर खेत में छिड़का जाता है. एक वर्ग मीटर में तीस से चालीस पौधे होते हैं.

 

अश्वगंधा की कटाई जनवरी से लेकर मार्च तक चलती है. इसे उखाड़ा जाता है और पौधों को जड़ से अलग कर दिया जाता है.

जड़ के छोटे-छोटे टूकड़े कर सूखाया जाता है. फल से बीज और सूखी पत्ती को अलग कर लिया जाता है.

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