देश के कई राज्यों में रबी की प्रमुख दलहनी फसल चना की बुवाई पूरी हो चुकी है.
वहीं, कोहरे और ठंड से खेतों में अच्छी नमी ने किसानों को अच्छे उत्पादन की उम्मीद जगा दी है.
लेकिन इस महीने चने की फसल में कई प्रकार के खरपतवार के लगने का खतरा बना रहता है.
बचाव के लिए तुरंत ये उपाय करें किसान
ऐसे में चने की खेती करने वाले किसानों के लिए कृषि विभाग की तरफ से खरपतवारों के नियंत्रण को लेकर एडवाइजरी जारी की गई है, जिसमें 8 तरह की खरपतवारों को चने के लिए घातक बताया गया है और किसानों को इससे बचाव के तरीके और दवाओं के बारे में भी सुझाव दिए गए हैं.
कृषि विभाग की एडवाइजरी
कृषि विभाग ने चना किसानों के लिए एडवाइजरी जारी करते हुए बताया है कि चने में खरपतवारों का प्रकोप तेजी से फैल रहा है.
किसानों को इन खरपतवारों से बचाव के लिए उचित प्रबंध करने होंगे नहीं तो चने के पौधों की ग्रोथ पर बुरा असर पड़ सकता है.
चने की फसल में लगने वाले सबसे घातक खरपतवारों में चौड़ी पत्ती की मकोय, जंगली चौलाई, लटजीरा, बिच्छू खास, बथुआ, हीरनखुरी, कृष्णनील, सत्यानाशी प्रमुख हैं.
ये खरपतवार पौधों को पनपने नहीं देती हैं, जिससे चने का दाना हल्का रह जाता है और उसकी क्वालिटी गिर जाती है.
कृषि एक्सपर्ट ने बताया तरीका
कृषि एक्सपर्ट के द्वारा खरपतवारों से बचाव के लिए किसानों को दवा और उसके छिड़काव का तरीका बताया गया है.
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, चने की बुवाई से पहले किसान 2.2 लीटर फ्लुक्लोटोलिन 45EC की दवा प्रति हेक्टेयर 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर मिट्टी में अच्छी तरह मिलाकर बुवाई करें.
इसके अलावा पेंडीमेथिलीन 30 EC दवा की 3 से 3.30 लीटर मात्रा बुवाई के 72 घंटे के अंदर लैट फैन नोजल से खेत की मिट्टी पर छिड़काव करें.
इन दोनों तरीकों से किसान चने की फसल को खरपतवार से होने वाले नुकसान से बचा सकते हैं.
बता दें कि देश के कई राज्यों में चने की खेती की जाती है. वहीं, भारत में दलहनी फसलों की खेती के मामले में चने का तीसरा स्थान है.
चने के कई फायदे हैं, यह प्रोटीन का बहुत अच्छा स्रोत होता है. चने का सेवन करने से दिल, कैंसर और मधुमेह का जोखिम कम हो जाता है.
हालांकि, चने की खेती करने वाले किसानों की फसल को बहुत से रोग भी प्रभावित करते हैं, जिनसे समय रहते बचाव करना बेहद जरूरी है वरना पूरी फसल खराब हो सकती है.
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