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केले में सीएमवी वायरस- जानिए वैज्ञानिक सलाह

केले की फसल में सीएमवी वायरस रोग को लेकर किसानों में चिंता बढ़ रही है। जिसको लेकर जलगाँव जैन इरीगेशन से वरिष्ठ केला वैज्ञानिक श्री डॉ. के.बी पाटिल व डॉ सुधीर भोंगड़े धार ओर बड़वानी जिले के किसानों के बीच पहुँचे और केले की फसल का निरक्षण करके किसानों को सीएमवी रोग के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए बताया कि यह रोग अपने धार व बड़वानी जिले में अभी न के बराबर है और इसपर समय पर ध्यान दिया गया तो जल्द ही यह समाप्त हो जाएगी,जबकि यह वाइरस बुरहानपुर व जलगाँव महाराष्ट्र श्रेत्र में केले की फसल में बड़ी मात्रा में पैर पसार चुका है।

 

इस रोग को लेकर उन्होंने सलाह दी कि ऐसे रोगग्रस्त पौधों को सबसे पहले खेत मे से निकालकर उन्हें अलग कर देना चाहिए ताकि यह रोग आगे संक्रमित न हो, और समय – समय पर कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए ताकि अन्य केले के पौधे स्वस्थ रहे और अच्छा उत्पादन दे।

 

ज्ञात हो के क्षेत्र में धार ओर बड़वानी जिले को मिलाकर लगभग 2000 हेक्टेयर में बड़े पैमाने में किसान केले की खेती कर रहा है, और इस वर्ष किसान सीएमवी रोग व इर्विनिया रॉट रोग को पहचानने में परेशान था , जिसको श्री पाटिल ने किसानों के बीच पहुचकर समझाया कि वायरस रोग में केले की पत्तियों की नसों में पीली रेखाएं बनती हैं व रोगग्रस्त हिस्से पर चमकदार धब्बे दिखाई देते है, पत्ते पर धारिया मुख्य शिरा से निकलती है व पत्तो के दूसरे भाग पर पीले पत्ते दिखाई देते है।

 

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रोग का प्रकोप होने पर पौधे का विकास नही होता है। जबकि इर्विनिया रॉट एक जीवाणुजन्य रोग है जिसमे पौधे में नया आने वाला पत्ता सूखता है और आसानी से पौधा उखड़ जाता है व नीचे तने को काटने पर रॉट में सड़न दिखाई देती है। निरक्षण के दौरान ऐग्रोनॉमिस्ट ज़ैदी अज़हर व अन्य लोग भी साथ थे।

 

सीएमवी रोग का प्रसार:

सीएमवी रोग का प्रसार रोगग्रस्त पोधो पर उपयोग किये गए औज़ार, हंसिये व रोगग्रस्त कंदो के द्वारा होता है
इसके अलावा रस चूसने वाले कीट से होता है व उनमे से प्रमुख एफिड, माहू मच्छर व अनेक कीट सहायक होते है।
इस रोग का वैकल्पिक होस्ट बहुत ज़्यादा होने से इसका पोषण लगभग 800 वनस्पतियों पर होता है।

 

रोग का प्रबंधन:

  • सर्वप्रथम रोगग्रस्त पौधे को उखाड़कर जला देना या मिट्टी में गाड़ देना प्रभावकारी नियंत्रण है।
  • रोगरहित व वायरस इंडेक्सिंग किये हुए पौधों को ही लगाएं।
  • खेत की मेड़ों के पास व खेत के अंदर के खरपतवार पर नियंत्रण करें।
  • खेत के आसपास जंगली बेल, ऐबीरा, ककड़ी, करेला, खीरा, तुरई, लोकी,को नही लगाएं।
  • चूंकि रोग का प्रसार रस चूसने वाले कीटो से होता है, अतः पौधे लगाने के बाद कीटनाशक दवा का छिड़काव करें।

 

source : krishakjagat

 

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