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प्याज की अच्छी उपज के लिए प्याज की उन्नत खेती की संपूर्ण जानकारी

प्याज की खेती पूरे सालभर होती है।

भारत में प्याज की खेती करना अधिकतर लोग पसंद करते है, क्योंकि प्याज का भाव अच्छा बना रहता है और यह विदेशों में भी निर्यात किया जाता है।

 

प्याज की खेती

हम आज आपको यहां चौपाल समाचार के इस लेख के माध्यम से आपको प्याज की उन्नत खेती की संपूर्ण जानकारी देंगे,

जैसे की बीज दर, नर्सरी, खेत तैयारी, खाद उर्वरक, रोपाई विधि, सिंचाई, निराई गुड़ाई, रोग एवं खरपतवार नियंत्रण आदि के बारे में चर्चा करेंगे।

 

जलवायु

वैसे तो प्याज की खेती हर सीजन में की जा सकती है लेकिन इसके लिए उपर्युक्त जलवायु समशीतोष्ण रहनी चाहिए, जिसमें छत्तीसगढ़ क्षेत्र आता है।

प्याज की वृद्धि पर प्रकाश काल एवं तापमान का बहुत प्रभाव पड़ता है। इसलिए इन पर ध्यान व नियंत्रण अत्यंत आवश्यक है।

पौधों के लिए कम तापमान व छोटे दिन तथा गांठो के लिए अधिक तापमान व लंबे दिनों की आवश्यकता है।

 

बीज बुवाई का समय

खरीफ सीजन – बीज की बोवाई 15 जून से 30 जून तक कर देनी चाहिए। खरीफ प्याज की फसल को देरी होने पर किसी भी हालत में जुलाई के प्रथम सप्ताह तक बोवाई कर देना चाहिए। इसके बाद बोने से कंद उचित नहीं मिलता और इसका असर आमदनी पर दिखाई देता है।

रबी सीजन – रबी सीजन के लिए अक्टूबर से मध्य नवंबर का समय अच्छा रहता है। यदि आप दिए गए समय पर बीज की बुवाई करते है, तो आपको अच्छे परिणाम देखने को मिल सकते है।

 

बीज की मात्रा/बीज दर

  • खरीफ के लिए – (ग्रीष्म ऋतु) 8-10 किलोग्राम/हेक्टेयर
  • रबी के लिए – (वर्षा ऋतु) 10-12 किलोग्राम/हेक्टेयर

 

खेत तैयारी

प्याज की बीज बुवाई के लिए पहले गहरी जुताई करके 3-4 बार हैरो चला दें। इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए। पौधों की रोपाई कतारें बनाकर करनी चाहिए।

 

रोपाई विधि

प्याज के पौध की रोपाई करते समय कतार से कतार की दूरी 15 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखते हैं।

कंदों को 35 सेंटीमीटर से 45 सेंटीमीटर की दूरी पर डोलियों के दोनों किनारों पर 16 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाते हैं।

इनको लगाने के बाद सिंचाई करना अति आवश्यक है।

 

खाद एवं उर्वरक

खेत की तैयारी के समय गोबर खाद 200 क्विंटल/हेक्टेयर तथा एनपीके क्रमशः 100:50:100 प्रति हेक्टेयर आवश्यक है, जिसमें स्फुर (पी) तथा पोटाश (के) की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन (एन) की कुल मात्रा का एक तिहाई भाग मिट्टी में मिलाकर शेष नाइट्रोजन (एन) के कुल मात्रा का एक तिहाई भाग मिट्टी में मिलाकर शेष नाइट्रोजन दो भागों में बांटकर एक भाग रोपाई के 30-40 दिन तथा दूसरा 70 दिन बाद खड़ी फसल में टाप ड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए।

 

सिंचाई

अगस्त से अक्टूबर तक यदि वर्षा नहीं होती है तो 8 से 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते हैं और रबी सीजन में 10 से 12 दिन में सिंचाई करें। जब कंद की बढ़वार शुरू हो जाती है, तो सिंचाई का अंतर कम कर देते हैं।

 

निदाई – गुड़ाई

प्याज की फसल को न बराबर निंदाई – गुड़ाई करनी चाहिए। क्योंकि यह हल्की जड़ें वाली फसल है, अत: गहरी गुड़ाई करनी चाहिए। अन्यथा पौधों की जड़ें क्षतिग्रस्त होने की संभावना बढ़ जाती है।

 

खरपतवार प्रबंधन के उपाय
  • बुवाई के 25 से 30 दिनों बाद पहली निराई गुड़ाई करें।
  • बुवाई के करीब 60 से 65 दिनों बाद फसल में दूसरी निराई गुड़ाई करें।
  • बुवाई के 3 दिनों के अंदर प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 700 मिलीलीटर पेंडिमेथालीन मिलाकर छिड़काव करें। इसके प्रयोग से चौड़ी पत्ती एवं सकरी पत्ती के खरपतवारों को निकलने से पहले ही नष्ट किया जा सकता है।
  • बुवाई के 10 से 15 दिनों के बाद यदि खरपतवारों की समस्या हो रही है तो प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 50 ग्राम ऑक्साडायर्जिल 80 प्रतिशत डब्ल्यूपी नामक खरपतवार नाशक मिलाकर प्रयोग करें।

 

प्याज की खुदाई

खरीफ प्याज की फसल बोवाई के 4-5 महीने में तैयार हो जाती है, इस फसल की पत्ती पीली न होकर हरी रहती है।

खड़ी फसल के पौधों के गर्दन से मुड़ जाने को फसल का गिरना कहते हैं।

जिसके लिए 4-5 महीने होते ही खड़ी फसल पर हल कतार पर चलाना पड़ता है।

फसल गिराने के करीब एक सप्ताह बाद शल्क कंद की खुदाई करना चाहिए।

 

बीमारियाँ एवं रोकथाम

1. थ्रिप्स

ये कीड़े फसल को सबसे ज्यादा हानि पहुंचाते है। यह पौधों का रस चुस कर पत्तियों के उपर किनारे सुखा देते हैं। जिसके कारण पत्तियों के शीर्ष भूरे होकर मुरझाने लगते हैं एवं सुख जाते हैं।

निवारण – फसल में रोगोर या मैटासिस्टॉक्स 25 E.C. नामक दवा (0.1 प्रति) का घोल बनाकर 10-15 दिन के अंतर पर 3-4 बार छिड़काव करना चाहिए।

2. मैगोट

यह मक्खी की सूंडी है जो पौध की जड़ में घुसकर रस चूसती है, और उन्हें सफेद कर देती है।

निवारण – इसके रोकथाम के लिए फ्यूराडान 30 किग्रा प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करना चाहिए। इसके उपयोग पश्चात् 45 – 50 दिन तक प्याज खाने में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि यह बहुत जहरीली है।

3. गुलाबी धब्बे

यह एक फफूंदी है, जो पत्तियों, गांठों और डंठलों पर आक्रमण करता है। यह नम वातावरण में अधिक पनपते हैं और समय के साथ काफी बड़े हो जाते हैं, एवं इनका रंग बैंगनी हो जाता है।

निवारण – बीज को उपचारित करके बोना चाहिए। फसल चक्र अपनाना चाहिए। फसल बोर्डों मिश्रण अथवा डायथेन एम. 45 का छिड़काव करना चाहिए।

अन्य रोग – चूर्णी फफूंदी, सडन रोग झुलसा एवं बैंगनी धब्बा।

निवारण – इनके लिए डायमीथेन एम. 45 के 4 – 5 छिड़काव 7 – 10 दिन के अंतर पर करने चाहिए।

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