फसलों के अच्छे उत्पादन के लिए मिट्टी में सभी तरह के पोषक तत्वों का सही मात्रा में उपलब्ध होना अतिआवश्यक है।
पोषक तत्वों की कमी से जहां फसलों में कई तरह के रोग लगने की संभावना रहती है तो वहीं पौधों की बढ़वार कम होने से उत्पादन में भी कमी आती है।
किसान फसलों में यूरिया और डीएपी जैसे उर्वरक डालकर नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश जैसे पोषक तत्वों की कमी को तो दूर कर लेते हैं परंतु जिंक जैसे आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों की पूर्ति इससे नहीं हो पाती है।
आमदनी में भी होगी वृद्धि
फसलों के विकास के लिए ज़िंक भी अत्यंत महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्व है। यह फसल उत्पादन के साथ-साथ उनकी गुणवत्ता बढ़ाने में भी सहायक है।
मिट्टी में ज़िंक की कमी फसलों के लिये गंभीर समस्या है। इसलिये फसल उत्पादन में जिंक का उचित प्रबंधन आवश्यक होता है।
जिन खेतों में धान के बाद गेहूं की बोनी जाती है, वहाँ जिंक की आवश्यकता अधिक होती है।
मिट्टी में जिंक की कमी से फसलों को होने वाले नुकसान और उसकी आपूर्ति को लेकर जबलपुर कृषि विभाग के उपसंचालक रवि आम्रवंशी ने जानकारी दी है।
धान की फसल में जिंक की कमी के लक्षण
कृषि विभाग के उपसंचालक ने बताया कि जिंक की कमी से धान की पत्तियों में कत्थई रंग के धब्बे बन जाते है। यह सामान्य रूप से रोपाई के दो से चार सप्ताह के बाद दिखाई देते है।
धब्बे आकार में बड़े होकर पूरी पत्ती में फैल जाते है। जिसे खैरा रोग के नाम से जाना जाता है।
जिंक की अत्यधिक कमी होने पर कल्लों की संख्या कम हो जाती है और जड़ों की वृद्धि रूक जाती है एवं बालियों में बांझपन आ जाता है।
जिसके फलस्वरूप फसल उत्पादन में कमी होती है और किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।
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गेहूं में जिंक की कमी के लक्षण
धान के अलावा जिंक की कमी से गेहूं की फसल पर भी प्रभाव पड़ता है।
गेहूं की फसल में जिंक की अत्याधिक कमी की दशा में पत्तियों के मध्य भाग में मटमैले हरे रंग के धब्बे बनते हैं।
यह बाद में गहरे हरे रंग में बदल जाते है तथा कुछ दिनों में पत्तियां गिर जाती है। पत्तियों के अग्रक एवं आधार हरे रहते है।
गेहूं फसल में जिंक की कमी के कारण कल्ले कम बनते है, पौधों की बढ़वार कम हो जाती है और पौधा छोटा रह जाता है।
अत्यधिक कमी की दशा में सैकडों कल्ले बनते है जो अत्यंत छोटे होकर झाड़ीनुमा हो जाते है।
मिट्टी में जिंक की कमी को कैसे पूरा करें
उपसंचालक रवि आम्रवंशी ने बताया कि किसान मिट्टी में जिंक की कमी को पूरा करने के लिए जिंक सल्फेट एवं जिंक चिलेट्स जैसे रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल कर सकते हैं।
जिंक सल्फेट 21 प्रतिशत तथा जिंक चीलेट्स 12 प्रतिशत ज़िंक की मात्रा से युक्त है। यह आर्थिक दृष्टिकोण से सुलभ एवं प्रभावकारी हैं।
मृदा विश्लेषण के आधार पर 25 से 50 किलोग्राम ज़िंक सल्फेट का प्रयोग प्रति हेक्टेयर भूमि में करने पर जिंक की कमी को दूर किया जा सकता है। साथ ही फसल उत्पादकता को भी बढ़ाया जा सकता है।
कृषि विभाग जबलपुर के उपसंचालक के मुताबिक जिंक सल्फेट 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का मूल्य लगभग एक हजार रुपए है।
इसके द्वारा 15 से 20 प्रतिशत फसल उत्पादन में वृद्धि के साथ प्रति हेक्टेयर 5 से 6 हजार रुपए का लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
एक बार जिंक सल्फेट डालने पर तीन वर्ष तक उसका प्रभाव रहता है। साथ ही गेंहू फसल में भी पूरा उत्पादन मिलता है।
सामान्यतः जिंक का प्रयोग खेती की तैयारी के समय खेत में भुरक कर या खड़ी फसल में जिंक सल्फेट 0.5 से 1 प्रतिशत का घोल बनाकर स्प्रे कर किया जाता है।
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