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किसान इस तरह करें मटर की खेती, कम लागत में मिलेगी अच्छी पैदावार

खरीफ फसलों की कटाई के साथ ही किसान रबी फसलों की बुआई की तैयारी में लग गए हैं।

ऐसे में किसान वैज्ञानिक तरीके से खेती कर कम लागत में अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।

इस कड़ी में आज हम आपके लिये मटर की खेती की जानकारी लेकर आए हैं।

मटर एक दलहनी फसल है जिसकी खेती देश में अगेती और पिछेती किस्मों के आधार पर की जाती है।

 

मटर की खेती

मटर की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है।

इसकी फसल के लिए भुरभुरी दोमट, चिकनी और रेतीली दोमट मिट्टी उत्तम होती है।

इसकी खेती के लिए मृदा का पी.एच. मान 6-7.5 के बीच होना चाहिए।

साथ ही किसानों को मटर की खेती के लिए जल निकासी की अच्छी व्यवस्था करके रखनी चाहिए।

 

मटर की फसल को कीट-रोग से बचाने के लिए करें यह काम

आज के समय में कृषि विश्वविद्यालयों के द्वारा कई ऐसी क़िस्म विकसित की गई हैं जिनमें बहुत से कीट-रोग लगने की संभावना कम होती है।

अतः किसानों को ऐसे किस्म के बीज लेना चाहिए जो सामान्यतः फसल पर लगने वाले कीट-रोग के लिये प्रतिरोधी हो।

इसके अलावा किसानों को मृदाजनित एवं बीज जनित रोगों के नियंत्रण हेतु जैव कवकनाशी (बायोपेस्टीसाइड) ट्राईकोडर्मा विरडी 1 प्रतिशत W.P. अथवा ट्राईकोडर्मा हारजिएनम 2 प्रतिशत W.P. की 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर 60-75 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छीटा देकर 8-10 दिनों तक छाया में रखने के उपरांत बुआई के पूर्व आख़िरी जुताई पर मृदा में मिला देने से मटर के बीज पर मृदाजनित रोगों का नियंत्रण हो जाता है।

मटर के छोटे दाने वाली प्रजातिओं के लिए बीज दर 50-60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा बड़े दाने वाली प्रजातिओं के लिए 80-90 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बुआई कर सकते हैं।

किसान इस बात का ध्यान रखें कि मिट्टी एवं बीज में कई कवक एवं जीवाणुजनित रोग होते हैं जो अंकुरण के समय तथा उसके बाद बीजों को काफी नुकसान पहुँचाते हैं।

बीजों के अच्छे अंकुरण तथा स्वस्थ पौधों की पर्याप्त संख्या हेतु बीजों को कवकनाशी से बीज उपचार करना चाहिए।

बीज जनित रोगों के नियंत्रण के लिए थीरम 75 प्रतिशत + कार्बेंडाजिम 50 प्रतिशत (2:1) 3.0 अथवा ट्राईकोडर्मा 4.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित कर बुआई करना चाहिए।

 

मटर की उन्नत किस्में

मटर की बुआई के लिए उपयुक्त समय अक्टूबर के अंत से लेकर 15 नवम्बर तथा मध्य भारत के लिए अक्टूबर का प्रथम पखवाड़ा उपयुक्त है।

किसान विभिन्न क्षेत्रों व परिस्थितियों के लिए अनुमोदित क्षेत्रों व परिस्थितियों के लिए मटर की उन्नत प्रजातियों जैसे एच.एफ.पी. 1428, एच.एफ.पी. 715, पंजाब 89, कोटा मटर 1, आईएफडी 12-8, आईएफडी 13-2, पंत मटर 250, पूसा प्रगति एवं आर्किल किस्मों की बुआई कर सकते हैं।

 

मटर में कितना खाद डालें

किसानों को मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही खाद का छिड़काव करना चाहिए।

सामान्य स्थितियों में मटर की फसल हेतु नाइट्रोजन 15-20 किलोग्राम, फास्फोरस 40 किलोग्राम, पोटाश 20 किलोग्राम तथा गंधक 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।

मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होने पर 15-20 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर तथा 1.0-1.5 किलोग्राम अमोनियम मौलिब्डेट का छिड़काव करना चाहिए।

 

मटर में खरपतवार नियंत्रण के लिए क्या करें?

पौधों की पंक्तियों में उचित दूरी खरपतवार की समस्या के नियंत्रण में काफी सहायता करती है।

मटर में एक या दो निराई गुड़ाई पर्याप्त होती है।

पहली निराई प्रथम सिंचाई के पहले तथा दूसरी निराई सिंचाई के बाद ओट आने पर आवश्यकता अनुसार करनी चाहिए।

बुआई के 25-30 दिनों के बाद निराई गुड़ाई अवश्य करें।

खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण हेतु फ्लूक्लोरलीन 45 प्रतिशत ई.सी. की 2.2 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर लगभग 800-1000 लीटर पानी में घोलकर बुआई के तुरंत पहले मिट्टी में मिलानी चाहिए।

पैंडीमेथलीन 30 प्रतिशत ई.सी. की 3.30 लीटर अथवा एलाक्लोर 50 प्रतिशत ई.सी. की 4 लीटर अथवा बासालिन 0.75-1.0 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर पानी में घोलकर फ्लैट फैन नोजल से बुआई के 2-3 दिनों के अंदर समान रूप से छिड़काव करना चाहिए।

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