अरहर की बेहतरीन पैदावार के लिए अपनाएं ये टिप्स

किसानों को अरहर की फसल से अच्छी (बेहतरीन ) पैदावार प्राप्त करने के लिए कुछ खास चीजों पर ध्यान देना होता है. यदि किसान इसके बीज, खाद और रोगों का सही तरीके से प्रबंधन करते हैं, तो इसकी फसल से अच्छी पैदावार हासिल कर सकते हैं.

 

दोगुनी होगी कमाई

देश की महत्वपूर्ण दलहनी फसलों में से एक अरहर की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद मानी जाती है. खरीफ सीजन में किसान अरहर की खेती करते हैं और इसकी खेती के बाद इसकी मिट्टी काफी लाभदायक होती है.

किसानों को इसकी फसल से अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए कुछ खास चीजों पर ध्यान देना होता है.

यदि किसान इसके बीज, खाद और रोगों का सही तरीके से प्रबंधन करते हैं, तो इसकी फसल से अच्छी पैदावार हासिल कर सकते हैं.

 

रखें इन बातों का विशेष ध्यान

अरहर की पैदावार बढ़ाने के लिए आपको इसकी खेती दोमट मिट्टी में करनी चाहिए, साथ ही जल निकासी की व्यवस्था भी होनी बेहद जरूरी है.

इसकी रोपाई करने से पहले किसानों को इसके खेत की तैयारी पर विशेष ध्यान देना होता है. अरहर के खेतों की बारिश का मौसम शुरू होने के साथ 2 से 3 बार अच्छे से जुताई करनी चाहिए.

किसानों को इसकी पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए, दूसरी और तीसरी जुताई करने के लिए देशी हल का उपयोग करना चाहिए.

किसानों को बुवाई के साथ-साथ इसके खेत में लगभग 5 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सड़ी हुई गोबर की खाद डालनी चाहिए.

अब किसानों को इस खाद को खेत की मिट्टी में अच्छे तरीके से मिलाना चाहिए. आपकी जानकारी के लिए बता दें, अरहर की खेती ऊपरी जमीन पर की जाती है.

 

बुवाई का सही सम और बीज उपचार

अरहर की फसल से अच्छा उत्पादम प्राप्त करने के लिए किसानों को इसकी बुवाई सही समय करनी चाहिए. किसानों को अरहर की बुवाई जून के मध्य से लेकर जुलाई के मध्य तक कर लेनी चाहिए.

आपको प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम के हिसाब से इसके बीजों की बुवाई करनी चाहिए.

बुवाई से पहले इसके बीजों का उपचार करना बेहद जरूरी होता है, इससे अरहर की फसल रोग मुक्त रहती है और इसके पौधों का भी अच्छा विकास होता है.

किसान इसके बीजों को उपचारित करने के लिए राइजोबियम कल्चर की भी मदद ले सकते हैं.

 

खाद का उपयोग

किसानों को अरहर की फसल से अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए इसके खेत में खाद की उचित मात्रा का ध्यान रखना होता है.

इसके खेत को तैयार करते वक्त अंतिम जुताई के दौरान प्रति हेक्टेयर में 12 किलोग्राम यूरिया, 100 किलोग्राम डीएप डीएपी और 40 किलोग्राम पोटाश को मिट्टी में मिलना चाहिए.

 

अरहर की उन्नत किस्में

अगर हम अरहर के उन्नत किस्मों की बात करें, तो इनमें बिरसा अरहर-1, नरेनद्र अरहर-1, नरेंद्र अरहर-2, आईसीपीएल-87119, मालवीय-13, बहार, लक्ष्मी और एनटीएल-2 शामिल है.

 

कीट और रोग पर रखें नियंत्रण

अरहर की फसल में फली छेदक कीटों का अधिकतर आक्रमण होता है, जिससे उपज में भारी कमी आ जाती है. इस कीट का फसल से बचाव के लिए आपको 2 से 3 बार कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए.

इसकी फसल पर आपको इंडोस्कार्ब 0.5 मिली प्रति लीटर पानी के हिसाब से पहला छिड़काव करना चाहिए.

वहीं दूसरा छिड़काव आपको इसकी फसल में फल निकलने की अवस्था में करना चाहिए, ये छिड़काव आपको 15 दिनों के बाद मोनो क्रोटोफॉस का उपयोग करना चाहिए.

इसके अलावा, अरहर की फसल में उकठा रोग का प्रकोप रहता है और इसे नियंत्रण में रखने के लिए आपको इसके रोग से ग्रस्त पौधों को खेत से उखाड़कर फेंक देना चाहिए.

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