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सोयाबीन की बोवनी के पूर्व खरपतवार नियंत्रण के लिए यह प्राकृतिक तरीका अपनाएं

पैदावार अच्छी होगी

 

किसान सोयाबीन की बोवनी के पहले खरपतवार नियंत्रण के लिए यह तरीका अपनाएं, इससे पैदावार अच्छी होगी।

 

मध्यप्रदेश के अधिकांश रकबे में सोयाबीन की खेती होती है।

प्रदेश में प्री मानसून की बारिश के बाद अब मानसून ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा दी है। प्रदेश के कई जिलों में मानसून की बारिश होने लगी है।

मानसून की पर्याप्त बारिश यानी कि 100 मिलीमीटर 4 इंच बारिश के पश्चात किसान सोयाबीन की बोवनी करने में जुट जाएंगे।

इसके पहले सोयाबीन की खेती में उगने वाले खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक तरीके से उपाय किए जा सकते हैं, इससे सोयाबीन के खेत में खरपतवार कम उगेगा एवं पैदावार में बढ़ोतरी होगी।

 

खेत में उगने वाले खरपतवार पर नियंत्रण कैसे करें

सोयाबीन सहित अन्य फसलों के लिए खेत में उगने वाले खरपतवार हानिकारक रहते हैं इससे उपज प्रभावित होती है।

वही फसल उगने के बाद खरपतवारनासी रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल करने से किसानों को आर्थिक भार भी उठाना पड़ता है।

इसलिए सोयाबीन की बोवनी के पहले ही खरपतवार नियंत्रण के उपाय हो जाए तो बाद में खरपतवार कम उगेंगे, जिन्हें आसानी से नींराई गुड़ाई के द्वारा भी हटाया जा सकता है।

 

इस बात का ध्यान रखें खरपतवार कम उगेंगे

अक्सर किसान मानसून की तेज बारिश होते ही इसके बाद बोवनी का काम शुरू कर देते हैं इसकी वजह यदि खरपतवार नियंत्रण करना है तो मानसून की हल्की वर्षा होते ही 2 या 3 दिन के पश्चात जब लगे कि खरपतवार उग रहे हैं तब एक बार फिर हल्की जुताई करवा दें।

वैसे भी किसान हल्की बारिश होने के पश्चात जुताई का कार्य करते हैं ऐसे में यदि थोड़ा समय देकर खरपतवार उगने के पश्चात यदि जुताई की जाती है तो खरपतवार मर जाएंगे।

इसके अलावा रासायनिक तरीके से भी बुवाई के पहले खरपतवार नियंत्रण के उपाय कर सकते हैं।

हालांकि पहले वाले तरीके में खेत की जुताई भी हो जाती है और अतिरिक्त आर्थिक भार भी नहीं पड़ता वही दूसरे वाले तरीके में आर्थिक रूप से बाहर पड़ता है।

 

इस प्रकार करें खेत को तैयार
  • सोयाबीन की फसल अधिक हल्की, हल्की व रेतीली मिट्टी को छोड़कर सभी प्रकार की भूमि में सफलतापूर्वक की जा सकती है।
  • रंतु पानी के निकास वाली चिकनी दोमट मिट्टी सोयाबीन के लिये अधिक उपयुक्त होती है।
  • जिन खेतों में पानी रुकता हो, उनमें सोयाबीन की फसल न लें।
  • ग्रीष्मकालीन जुताई 3 वर्ष में कम से कम एक बार अवश्य करनी चाहिये।
  • वर्षा प्रारम्भ होने पर 2 या 3 बार बखर तथा पाटा चलाकर खेत का तैयार कर लेना चाहिये।
  • इससे हानि पहुंचाने वाले कीटों की सभी अवस्थायें नष्ट होंगीं।
  • ढेला रहित और भुरभुरी मिट्टी वाले खेत सोयाबीन के लिये उत्तम होते हैं।
  • खेत में पानी भरने से सोयाबीन की फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है अत: अधिक उत्पादन के लिये खेत में जल निकास की व्यवस्था करना आवश्यक होता है।
  • जहां तक सम्भव हो आखरी बखरनी एवं पाटा समय से करें। जिससे अंकुरित खरपतवार नष्ट हो सकें।
  • सम्भव मेंढ़ और कूड़ (रिज एवं फरों) बनाकर सोयाबीन बोयें।

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