मिर्च वाले निमाड़ में नींबू से हुए मालामाल, अन्य फसलों की लागत निकलने लगी

180 पेड़ों से हर साल कमा रहे ढाई लाख रुपए

 

मध्यप्रदेश के खरगोन जिले का नुरियाखेड़ी गांव। यहां रहने वाले 35 साल के कृष्णपाल सिंह तोमर किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं।

10वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी। खेती-किसानी का जिम्मा आ गया।

40 एकड़ जमीन में पहले की तरह ही गेहूं, सोयाबीन और मिर्च की खेती करते रहे।

खेती से होने वाली आमदनी दिनों-दिन कम होती जा रही थी।

ट्रेडिशनल खेती से लागत तक निकलना मुश्किल हो रहा था। कर्ज बढ़ता गया।

हालात बदलने के लिए कृष्णपाल ने बागवानी करने का निर्णय लिया। इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं दिखा।

 

सफलता की कहानी…

‘मैंने सोयाबीन की खेती में लगने वाला खर्च निकालने के लिए खेत के एक हिस्से में बागवानी का निर्णय किया।

10 साल पहले एक एकड़ जमीन में नींबू के 180 पौधे लगाए। इस बगीचे से सालाना 2.50 से तीन लाख रुपए तक की कमाई होने लगी।

40 एकड़ जमीन में सोयाबीन समेत अन्य फसलों की लागत निकलनी शुरू हो गई।

पहले की तरह अब खाद, बीज और दवाओं के लिए बैंक या साहूकार से कर्ज नहीं लेना पड़ रहा।

मेरे बगीचे के ज्यादातर नींबू खेत से ही बिक जाते हैं। बाकी जो बचते हैं, उन्हें खंडवा मंडी में भेज देता हूं।

नींबू का भाव इस साल 300 रुपए किलो तक रहा। हमें कम से कम 50 रुपए प्रति किलो तक का भाव मिला।

 

जैविक खाद के लिए बकरी पालन किया

कृष्णपाल सिंह बोले- किसान मित्र ने नींबू के लिए बकरी के गोबर वाली खाद को उपयोगी बताया।

पहले तो बाजार से बकरी का गोबर लाते थे, लेकिन जरूरत बढ़ती गई तो खुद ही बकरी पालन शुरू कर दिया।

अब 40 बकरियां पाल रहे हैं। इनके गोबर का उपयोग नींबू के खेत के खाद के रूप में करते हैं। जैविक खाद घर पर ही तैयार हो जा रही है।

बकरी के गोबर से बनी खाद पौधे को स्वस्थ रखने और पैदावार बढ़ाने में मदद करती है।

बकरी के गोबर से कीड़े भी नहीं लगते हैं। यह खाद गंधहीन होती है। मिट्टी के लिए फायदेमंद होती है।

बकरी के गोबर की खाद में घोड़े और गाय के खाद की तुलना में नाइट्रोजन में अधिक होता है।

इसमें औसतन 1 टन में 22 पाउंड नाइट्रोजन होता है। गाय की खाद में 1 टन में केवल 10 पाउंड नाइट्रोजन की मात्रा होती है।

 

यूट्यूब पर सीखा ऑर्गेनिक खेती करना

कृष्णपाल सिंह ने बताया खेती की नई तकनीकों के बारे में पढ़ना शुरू किया। रोजाना यूट्यूब पर ऑर्गेनिक खेती को लेकर वीडियोज देखे।

फायदा यह हुआ कि केमिकल फर्टिलाइजर की जगह ऑर्गेनिक खाद का उपयोग करने लगे। इससे दोहरा लाभ मिला।

एक तरफ लागत कम हुई, तो दूसरी तरफ उत्पादन बढ़ने के साथ ही जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ गई।

अब केमिकल का इस्तेमाल किए बिना कम लागत में गुणवत्तापूर्ण पैदावार होती है।

जैविक खेती में केमिकल फर्टिलाइजर, पेस्टीसाइड या खरपतवार नाशक की बजाय गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद, हरी खाद, बैक्टीरिया कल्चर और जैविक कीटनाशक का उपयोग करते हैं।

 

कैसे करते हैं नींबू की खेती

कठोर मिट्टी को छोड़कर किसी भी मिट्टी पर नींबू की खेती की जा सकती है। इसके पौधे लगाने के लिए बेहतर समय जुलाई से अगस्त के बीच होता है।

हम ग्राफ्टेड और बीज दोनों ही तरीके से नींबू का प्लांट लगा सकते हैं। एक एकड़ में तकरीबन 120 पौधे लगाए जा सकते हैं।

पौधे के बीच की दूरी 5 मीटर से कम ना रखें। पौधा लगाते समय गोबर की कम्पोस्ट खाद का उपयोग करें।

सिंचाई के लिए ड्रिप इरिगेशन सबसे बढ़िया तरीका है। देशी नींबू तीन साल में फल देने लगता है।

30 से 35 साल तक इनकी आयु होती है। इसके साथ ही समय-समय पर निंदाई और गुड़ाई करनी होती है।

 

ग्राफ्टिंग तरीके से करते हैं खेती

किसान कृष्णपाल सिंह के अनुसार प्लांटिंग के लिए बरसात का मौसम सबसे बेहतर होता है। जुलाई से अगस्त के बीच पौधे रोपे जाते हैं।

आमतौर पर नींबू के पौधे तीन से चार साल में फल देने लगते हैं, लेकिन अगर आप व्यावसायिक स्तर पर नींबू की बागवानी करते हैं, तो आपको ग्राफ्टिंग तरीके से तैयार पौधे लगाने चाहिए।

इस तरह के पौधे एक साल के भीतर तैयार हो जाते हैं। कई प्लांट तो साल में तीन बार भी फल देने लगते हैं।

जहां तक सिंचाई की बात है, गर्मी के सीजन में हर 10 दिन के अंतराल पर और सर्दी के दिनों में 20 से 25 दिन के अंतराल पर इसके पौधों में पानी डालना चाहिए।

 

दो एकड़ में तैयार कर लिया नींबू का दूसरा बगीचा

कृष्णपाल सिंह बोले- बागवानी का विस्तार करते हुए मैंने एक अमरूद का बगीचा लगाया। इसकी मेढ़ों पर आम के पौधे लगा दिए हैं।

एक एकड़ में नींबू से होने वाली आय से इसी साल 5 एकड़ में नींबू का दूसरा बगीचा भी तैयार कर लिया है।इस बगीचे में नींबू के 400 पौधे लगाए हैं।

पहले हम सोयाबीन और गेहूं की फसल लगाते थे, लेकिन अब नींबू के साथ हल्दी की बोवनी कर रहे हैं।

स्त्रोत : दैनिक भास्कर

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