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एक बार फिर से पशुओं में फैल रहा है लम्पी रोग

पिछले वर्ष कई राज्यों में लम्पी स्किन डिजीज रोग फैलने से हजारों पशुओं की मृत्यु हुई थी

जिससे पशुपालकों को काफी हानि उठानी पड़ी थी। इस वर्ष फिर से यह रोग पशुओं में फैलने लगा है।

जिसके चलते राज्य सरकारों द्वारा इस रोग की रोकथाम के लिए तेज़ी से टीकाकरण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

ऐसे में पशु पालकों को सतर्क रहना चाहिए साथ ही पशुओं की सुरक्षा के उपाय भी अपनाने चाहिए।

 

पशुपालक रहें सतर्क

मध्य प्रदेश राज्य में लम्पी बीमारी का प्रकोप पिछले कई दिनों से चल रहा है।

वर्तमान में प्रदेश के 33 जिले इस रोग से प्रभावित हैंजिनमें से सिर्फ 20 जिलों में अभी तक इस रोग की प्रयोगशाला से पुष्टि हुई है।

वहीं कुछ पशुओं की मृत्यु भी इस रोग से हो चुकी है।

 

25 हजार पशुओं में फैला लम्पी स्किन रोग

मध्यप्रदेश के संचालक पशुपालन एवं डेयरी ने जानकारी देते हुए बताया कि पिछले 3 महीने में प्रदेश के कुल 25 हजार 691 पशु इस रोग से प्रभावित हुए हैं,

 जिसमें से कुल 22 हजार 975 (90%) पशु इस बीमारी से ठीक हो चुके हैं।

दिनांक सितम्बर 2023 तक 2,333 सक्रिय केसेस हैंजिनका नियमित एवं निरंतर उपचार जारी है।

संचालक पशुपालन एवं डेयरी ने बताया कि विभाग द्वारा 9 सितंबर तक कुल 26 लाख 50 हजार पशुओं में टीकाकरण किया जा चुका है।

साथ ही बीमार पशुओं का सतत उपचार किया जा रहा हैजिसके कारण पिछले 25 दिनों से प्रभावित पशुओं की संख्या एवं पशुओं की मृत्यु दर में कमी आई है।

साथ ही विगत एक सप्ताह से कोई भी नये जिले से बीमारी की सूचना प्राप्त नहीं हुई है।

 

प्रतिदिन की जा रही है मॉनीटरिंग

मध्य प्रदेश पशुपालन विभाग द्वारा बीमारी की रोकथाम के लिए प्रतिदिन मॉनीटरिंग की जा रही है।

जिलों से प्राप्त जानकारी अनुसार बीमारी का प्रकोप विगत 25 दिन से कम होता नजर आ रहा है एवं स्थिति नियंत्रण में है।

वहीं लम्पी बीमारी की रोकथाम के लिये प्रभावित क्षेत्रों में टीकाकरण एवं उपचार कार्य युद्ध स्तर पर किया जा रहा है।

 

लम्पी स्किन डिजीज क्या है?

इस रोग से ग्रस्त पशु में 2–3 दिनों तक तेज बुखार रहता है। इसके साथ ही पूरे शरीर पर 2 से 3 से.मीकी सख्त गांठें उभर आती हैं।

कई अन्य तरह के लक्षण जैसे की मुँह एवं श्वास नली में जख्मशारीरिक कमजोरीलिम्फनोड (रक्षा प्रणाली का हिस्साकी सूजनपैरों में पानी भरनादूध की मात्रा में कमीगर्भपातपशुओं में बांझपन मुख्यतदेखने को मिलता है।

इस रोग के ज्यादातर मामलों में पशु 2 से 3 हफ्तों में ठीक हो जाता हैलेकिन दूध में कमी लम्बे समय तक बनी रहती है।

अत्यधिक संक्रमण की स्थिति में पशुओं की मृत्यु भी संभव हैजो कि 1 से 5 प्रतिशत तक देखने को मिलती है।

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