आधा बीघा जमीन में की इंटरक्रॉपिंग
पंच पत्ती अर्क से तैयार की हर रोग की एक दवा
कृषि अध्ययन में कागजों में जिस इंटरक्रॉपिंग यानी अंतरफसलीय (इंटरक्रॉपिंग) विधि का जिक्र आता है, मंदसौर के चिल्लौद पिपलिया के किसान वल्लभ पाटीदार ने उसे जमीन पर उतारकर प्रेरक उदाहरण पेश किया है।
उन्होंने अपने आधा बीघा खेत में एक साथ 13 तरह की फसलें लगाकर यह प्रयोग किया, जो सफल भी हुआ और अच्छी कमाई भी।
अलग-अलग फसलों में लगने वाले अलग-अलग रोगों से निपटने के लिए पांच पत्तियों से ऐसा कीटनाशक भी बनाया जो सभी फसलों के लिए उपयुक्त है।
पाटीदार ने बताया- खेती में इस तरह के प्रयोग करने की प्रेरणा मुझे कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा कराए गए एक भ्रमण कार्यक्रम के बाद मिली।
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जीएस चूंडावत के मार्गदर्शन से मैंने यह पूरा बगीचा लगाया।
फूलों से भी अच्छी आमदनी हुई
किसान वल्लभ पाटीदार ने बताया कि बाउंड्री पर जानवरों से सुरक्षा के लिए पहले मक्का लगाई। उसके बाद में गेंदे के फूलदार पौधे लगाए।
इन सबके प्रबंधन के लिए जैविक तरीके अपनाए क्योंकि रासायनिक में यह सब इतना आसान नहीं है।
फूलों से भी अच्छी आमदनी हुई। हालांकि, सारी फसलें लगाने के बाद अलग-अलग बीमारियों की चुनौती सामने आई।
जैसे टमाटर में अलग रोग लगता है। मिर्च और भिंडी में अलग। इन सबसे निपटने के लिए पंच पत्ती अर्क बनाया।
इस जैविक कीटनाशक को बनाने के लिए नीम, धतूरा, नींबू, तुलसी और आक की पत्तियों का उपयोग किया।
इन पत्तियों के मिश्रण को पानी में भिगोकर, पीसकर और छानकर एक तरल अर्क तैयार किया।
दो तरह से तैयार की जैविक खाद
पाटीदार ने बताया कि पौधों पर इस अर्क का छिड़काव किया। यह पौधों को विभिन्न प्रकार के कीड़ों, मकड़ियों, फफूंद रोगों से बचाने के लिए एक प्राकृतिक तरीका है, जो सफल भी रहा।
किसान पाटीदार ने बताया, मैं दो तरह से जैविक खाद तैयार करता हूं, एक तो वर्मी कंपोस्ट विधि से और दूसरा रोड़ी लगाकर (खड्डा खोदकर गोबर से भरना)।
किसान पाटीदार ने कहा-
वर्मी कंपोस्ट को पेड़ की छांव के नीचे तैयार किया जाता है। रोड़ी विधि वाला खाद भी असरकारक होता है, इसमें जटिलताएं भी नहीं हैं। सिंचाई के लिए मैंने छोटा तालाब बनाया, जिसमें मछली पालन भी करता हूं।
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