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खेती को आसान बनाएगी NO-till फार्मिंग, कम लागत में मिलती है बंपर पैदावार

यानि जुताई रहित खेती

 

अब किसानों ने No-till फार्मिंग की तकनीक अपनाई है. No-till फार्मिंग यानि जुताई रहित खेती.

इस तकनीक में भूमि को बिना जोते ही कई वर्षों तक फसलें उगाई जाती है.

यह कृषि की नई तकनीक है, जिससे किसानों को अच्छा लाभ मिलता है.

 

बदलते वक्त के साथ खेती करने की तकनीकों में भी बदलाव हो रहा है.

आमतौर पर किसान फसल बुवाई से पहले कई बार खेत की जुताई करते हैं.

जुताई के लिए ट्रैक्टर व अन्य कृषि यंत्रों का प्रयोग किया जाता है.

लेकिन कई बार ज्यादा जुताई करने के दुष्परिणाम भी सामने आते हैं.

 

ऐसे में अब किसानों ने No-till फार्मिंग की तकनीक अपनाई है. No-till फार्मिंग यानि जुताई रहित खेती.

इस तकनीक में भूमि को बिना जोते ही कई वर्षों तक फसलें उगाई जाती हैं.

यह कृषि की नई तकनीक है, जिससे किसानों को अच्छा लाभ मिलता है.

आईए जानते हैं जुताई रहित खेती, इसके लाभ व नुकसान के बारे में.

 

जुताई रहित खेती

जुताई रहित खेती के कई फायदे हैं. खेत की प्रमुख फसल की कटाई के बाद बिना जुताई के ही बची हुई मिट्टी में फसल बो देते हैं.

ऐसे में पुरानी फसलों के अवशेष से नई फसल पोषण लेती है.

इस तकनीक के जरिए आप चना, मक्का, धान, सोयाबीन जैसे फसलें उगा सकते हैं. 

 

इसके प्रमुख सिद्धांत

  • जुताई रहित खेती का सबसे पहला सिद्धांत है खेतों में जुताई न करना, न ही मिट्टी को पलटना. ऐसी तकनीक में भूमि खुद स्वाभाविक रुप से पौधों की जड़ों के प्रवेश व केंचुएं, छोटे प्राणियों और सूक्ष्य जीवाणुओं के जरिए जुताई कर लेती है.
  • दूसरे सिद्धांत है कि किसी भी तरह की खाद या रासायनिक उर्वरकों का उपयोग न करें. जोतने व उर्वरकों के प्रयोग से पौधे कमजोर होते हैं और कीट असंतुलन की समस्याएं बढ़ती हैं. 
  • तीसरा सिद्धांत है सतह पर जीवांश अवशेष रहना- जीवांश अवशेष को पहले एकत्रित किया जाता है. फिर इस कूड़े को जमीन की सतह पर बिछा दिया जाता है. यह खेत में पानी की पर्याप्त मात्रा बनाए रखता है और जीव-जंतुओं के लिए खाद्य पदार्थ का काम करता है. यह डी कंपोस्ड होता चला जाता है. इसी से खाद बन जाती है. इससे पौधों में खरपतवार भी नहीं लगता.
  • चौथा सिद्धांत है फसल चक्र अपनाना, यानि एक फसल के उत्पादन के बाद बिना जुताई के ही दूसरी फसल की बुवाई कर देना.
  • पांचवा सिद्धांत है कि खेत में निराई-गुड़ाई न की जाए. इसका सिद्धांत है कि खरपतवार को पूरी तरह समाप्त करने की बजाए नियंत्रित किया जाना चाहिए, कम मात्रा में खरपतवार मिट्टी को उर्वर बनाने में संतुलन स्थापित करने में सहयोगी होते हैं.
इस खेती के लाभ
  • भूमि की उपजाऊ क्षमता बढ़ती है, भूमि का उपरदन बहुत कम होता है. फसलों की उत्पादकता बढ़ती है.
  • सिंचाई के अंतराल में वृद्धि होती है, भूमि में नमी बनी रहती है.
  • भूमि के जलस्तर में सुधार होता है, भूमि की जलधारण क्षमता बढ़ती है, भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होता है.
  • जुताई न होने से समय और धन की बचत होती है. रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होती है, लागत में भी कमी आती है.
  • भूमि के अंदर और बाहर पाए जाने वाले उपयोगी सूक्ष्य जीवों को क्षति नहीं पहुंचती.
  • जुताई रहित कृषि से जैविक, रसायनरहित शुद्ध उत्पाद मिलते हैं, जिनकी बाजार में अच्छी डिमांड होने से आय बढ़ती है.
  • कचरे का उपयोग खाद बनाने में होने से बीमारियों में कमी आती है. पराली जलाने की घटनाओं में कमी आती है.

 

इससे हानि

बुवाई में कठिनाई- फसल कटाई के बाद खेत में मौजूद मिट्टी ठोस हो जाती है, जिससे दूसरी फसल की बीज बुवाई में मुश्किल होती है.

शाकनाशी का उपयोग- कई बार फसलों के बीच में जंगली पौधों को हटाने के लिए किसान शाकनाशी का उपयोग करते हैं जो अच्छा नहीं होता. लेकिन खेत की जुताई के समय यह समस्या नहीं आती.

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