Skip to content
Menu
ekisan
  • Home
  • मंडी भाव
  • कृषि समाचार
  • सरकारी योजना
  • Download App
  • मौसम समाचार
ekisan
WhatsApp Group Join Now
santare ki kheti orange farming

संतरे की खेती (बागवानी) – पुरी जानकारी | Santare ki kheti

Posted on March 5, 2020March 6, 2020

संतरे की खेती Santare ki Kheti

santare ki kheti – मध्यप्रदेश में संतरे की बागवानी मुख्यतः छिंदवाड़ा, बैतूल, होशंगाबाद, शाजापुर, उज्जैन, भोपाल, नीमच,रतलाम तथा मंदसौर जिले में की जाती है। प्रदेश में संतरे की बागवानी 43000 हैक्टेयर क्षेत्र में होती है। जिसमें से 23000 हैक्टेयर क्षेत्र छिंदवाड़ा जिले में है। वर्तमान में संतरे की उत्पादकता दस से बारह टन प्रति हैक्टेयर है जो कि विकसित देशों की तुलना मे अत्यंत कम है। कम उत्पादकता के कारकों में बागवानी हेतु गुणवत्तापूर्ण पौधे (कलम) का अभाव तथा रख-रखाव की गलत पद्धतियां प्रमुख हैं। मध्यप्रदेश में संतरे की किस्म नागपुर संतरा (Citrus reticulate Blanco variety Nagpur Mandrin)प्रचलित है।

संतरे की खेती की पूरी जानकारी

देखे विडियो

video source : My Kisan Dost

भूमि का चुनाव

संतरे की बागवानी हेतु मिट्‌टी की ऊपरी तथा नीचे की सतह की संरचना और गुणों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। बगीचा लगाने से पहले मिट्‌टी परीक्षण कर भविष्य में आने वाली समस्याओं का निदान कर बगीचे के उत्पादन व बगीचे की आयु में वृद्धि की जा सकती है।

मिट्‌टी के अवयव मिट्‌टी की गहराई से. मी.
0-15 15-30
पी.एच. 7.6.-7.8 7.9-8.0
इ.सी. 0.12.0.24 0.21.0.28
मुक्त चुना (%) 11.4 18.2
यांत्रिक अवयव (%)
रेती 20.8.40.1 19.0.32.7
सील्ट 26.8.30.4 11.2.26.8
चिकनी मिट्‌टी 42.8.48.8 54.2.56.1
जलघुलनशील घनायन मि.ली. ली
कैल्शियम 168.31.182.3 192.50.212.45
मैग्नेशियम 39.4.42.7 32.20.42.10
सोडियम 0.98.1.1 0.68.1.23
पौटेशियम 1.2.2.8 11.40.12.80
वीनीमय घनायन (सेंटी मोल)किलो
कैल्शियम 31.9.32.3 38.1.41.2
मैग्नेशियम 8.5.10.1 9.2.10.0
सोडियम 0.68.1.23 0.8.1.1
पौटेशियम 3.2.4.1 4.5.4.6

 

संतरे के पौधे (कलम) खरीदने में सावधानियां | santare ki kheti

संतरे के रोगमुक्त पौधे संरक्षित पौधशाला से ही लिये जाने चाहिए।ये पौधे फाइटोप्थारा फफूद व विषाणु रोग से मुक्त होते हैं।

रंगपुर लाईम या जम्बेरी मूलवन्त तैयार कलमे किये हुए पौधे लिए जाने चाहिए। कलमें रोगमुक्त तथा सीधी बढ़ी होना चाहिए जिनकी ऊंचाई लगभग 60 से.मी. हो तथा मूलवंत पर जमीन की सतह से बडिंग 25 से.मी ऊँचाई पर की हो। इन कलमों में भरपूर तन्तूमूल जड़ें होना चाहिए, जमीन से निकालने में जड़ें टूटनी नही चाहिएं तथा जड़ों पर कोई जख्म नही होना चाहिए।

बगीचे की स्थापना

संतरे के पौधे लगाने के लिये 2 रेखांकन पद्धति का उपयोग होता है-वर्गाकार तथा षटभुजाकार पद्धति। षटभुजाकार पद्धति में 15 प्रतिशत पौधे वर्गाकार पद्धति की तुलना में अधिक लगाये जा सकते हैं। गढढे का आकार 75×75×75 से. मी. तथा पौधे को 6×6 मी. दूरी पर लगाना चाहिए। इस प्रकार एक हैक्टेयर में 277 पौधे लगाये जा सकते हैं। हल्की भूमि में 5.5×5.5 मी. अथवा 5×5.मी. अंतर पर 300 से 400 पौधे लगाये जा सकते हैं।

गढ़्ढे भरने के लिये मिट्‌टी के साथ प्रति गढढा 20 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ 500 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 500ग्राम नीम खली तथा 10 ग्राम कार्बेन्डाजिम का उपयोग करें।

 

पौधों को लगाने के पूर्व उपचार व सावधानियां | santare ki kheti

पौधे की जड़ों को मेटालेक्जील एम जेड 72,2 2.75 ग्राम के साथ कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से पौधा लगाने के पहले 10-15 मिनट तक डुबोना चाहिए।पौधे लगाने के लिए जुलाई से सितंबर माह का समय उपयुक्त है ध्यान रखें कि कली का जोड़ जमीन की सतह से 25 से.मी. ऊपर रहे। जमीन से 2.5 से 3 फीट तक आवांछित शाखाओं को समय समय पर काटते रहें।

 

बगीचों में अंतर फसलें

संतरे के बगीचों में 6 साल के पश्चात व्यवसायिक स्तर पर फसल ली जाती हैं। इस समय तक 6×6 मीटर की काफी जगह खाली रह जाती है अतः कुछ उपयुक्त अंतरवर्ती दलहन फसलें ली जा सकती हैं। कपास जैसी फसलें जमीन से अधिक पोषक तत्व लेती हैं।

उर्वरकों का उपयोग | santare ki kheti

नत्रजनयुक्त उर्वरक की मात्रा को तीन बराबर भागों में जनवरी, जुलाई एवं नवम्बर माह में देना चाहिए। जबकि फास्फोरसयुक्त उर्वरक को दो बराबर भागों में जनवरी एवं जुलाई माह में तथा पोटाशयुक्त उर्वरक को एक ही बार जनवरी माह में देना चाहिए ।

पौधों की आयु उर्वरक 1 वर्ष 2 वर्ष 3 वर्ष 4 वर्ष एवं अधिक
नाइटोजन 150 300 450 600
फास्फोरस 50 100 150 200
पोटाश 25 50 75 100

 

पोषक तत्व कमी के लक्षण उपचार
नत्रजन पूरे पौधों की हरी पत्तियों पर एवं शिराओं पर हल्का पीलापन दिखाई देता है। 1-2 प्रतिशत यूरिया का छिड़काव या यूरिया 600-1200 ग्राम पौधा भूमि में डालें
फास्फोरस पत्तियॉ छोटी सिकुड़कर लम्बी एवं भूरे कलर की हो जाती हैं। पील मोटा और बीच में पोंचा होकर फल में रस की मात्रा कम हो जाती है।

फास्फेटी उर्वरक जैसे सिंगल सुपर फास्फेट 500-2000 ग्राम प्रति पौधा वर्ष न्यूटरल से अल्कालाईन भूमी मे डालें

या रॉक फास्फेट 500-1000 ग्राम प्रति पौधा वर्ष अम्लीय भूमी में डालें।

पोटाश फल छोटे होकर छिल्का मोटा होता है। तथा फल गोलाई की अपेक्षा लम्बे होते हैं।

पोटाशियम नाइट्रेट (1-3प्रतिशत) छिड़काव

या म्यूरेटापोटाश (180-500 ग्राम) पौधा/वर्ष भूमि में उपयोग करें।

मेग्नीशियम पत्तियॉ की शिराओं के बीच में क्लोरेटिक हरे धब्बे दिखाई देते हैं। डोलोमाईट 1-1.50 किलो /पौधों /वर्ष भूमि में डाले विशेषता इसका उपयोग अम्लीय भूमि में करें।
आयरन पत्तियॉ कागज प्रतीत होती हैं तथा बाद में शिराओं के बीच का क्षेत्र पीला होकर पत्तियां सुखकर नीचे गिर जाती हैं। फेरस सल्फेट (0.5 प्रतिशत) का छिड़काव करें या फेरस सस्फेट 200-250 ग्राम/पौधा/वर्ष भूमि में उपयोग करें।
मेंगनीज पत्तियों के शिराजाल पत्तियों के रंग से अपेक्षाकृत अधिक हरा तथा पीलापन लिये होता है। मेंगनीज सस्फेट 0.25 प्रतिशत का छिड़काव करें या 200-300 ग्राम/पौधा/वर्ष मेंग्नीज सस्फेट का भूमि में डालें
झींक पत्तियाँ छोटी नुकीली गुच्छेनुमा तथा शिराओं का पीला होना अपरीपक्व अवस्था में पत्तियों का झड़ना, पत्तियों की ऊपरी सतह सफेद धारिया बनना अथवा पीली धारिया सफेद पृष्ठ लिये अनियमित आकार में शिराओं तथा मध्य शिराओं को घेरे हुये दिखता है। झींक सस्फेट 0.5 प्रतिशत का छीड़काव करें। या झींक सस्फेट 200-300 ग्राम/पौधा/वर्ष भूमी मे डालें।
मॉलीबडेनम पत्तियों के शिराओं के मध्य पीले धब्बे तथा बडे भूरे अनियमित आकार के धब्बे के साथ पीलापन तथा पत्तियों के बीच का अंतर कम हो जाता है। अमोनियम मॉलीबडेनम 0.4-0.5 प्रतिशत का छिड़काव करें।या 22-50 ग्राम /पौधा/वर्ष भूमी में डालें।
बोरान नई पत्तियों पर जलशोषित धब्बे और परीपक्व पत्तियों पर अर्धपारदर्शी धब्बों के साथ मध्य एवं अन्य शिराएं टूटती हुई दिखाई देती हैं। सोडियम बोरेट 0.1-0.2 प्रतिशत का छिड़काव या बोरेक्स 25-50 ग्राम/पौधा/वर्ष भूमी मे उपयोग करें ।
कॉपर फलों के छिल्के पर भूरापन लिये हुये क्षेत्र /दाग दिखाई देता है तथा फल हरा होकर कड़ा हो जाता है। ऊपर की शाखाएं सुखने लगती हैं। कॉपर सल्फेट 0.25 प्रतिशत का छिड़काव करें।

अधिक सिंचाई से अधिक उत्पादन जैसी धारणा सही नही है। पटपानी(Flood Irrigation) से बगीचे को नुकसान होता है। गर्मी के मौसम में सिंचाई 4 से 7 दिन तथा ठंड के मौसम में 10 से 15 दिन के अंतर में करना चाहिए। सिंचाई का पानी पेड़ के तने को नही लगना चाहिए । इसके लिए सिंचाई की डबल रिंग प़द्धति का उपयोग करना चाहिए। टपक सिंचाई उत्तम विधि है इससे पानी की 40 से 50 प्रतिशत बचत होती है तथा खरपतवार भी 40 से 65 प्रतिशत कम उगते हैं । पेड़ों की वृद्धि व फलों की गुणवत्ता अच्छी होती है तथा मजदूरों की बचत भी होती है ।

खरपतवार नियंत्रण | santare ki kheti

एक बीजपत्रीय खरपतवार मे मोथा,दूबघास तथा कुश एवं द्वीबीजपत्री में चौलाई बथुआ,दूधी,कांग्रेस,घास मुख्यतः पाये जाते हैं।

खरपतवार निकलने से पहले- डायूरान 3 कि. ग्रा या सीमाजीन 4 किग्रा. सक्रिय तत्व के आधार पर प्रति हेक्टर के दर से जून महीने के पहले सप्ताह में मिट्‌टी पर प्रथम छिड़काव और 120 दिन के बाद सितंबर माह में दूसरा छिड़काव करने से बगीचा लगभग 10 माह तक खरपतवारहित रखा जा सकता है।

खरपतवार निकलने के पश्चात-ग्लायफोसेट 4 लीटर या पेराक्वाट 2 लीटर 500 से 600 लीटर पानी मे मिलाकर प्रति हैक्टर के दर से उपयोग करें। जहा तक संभव हो खरपतवारनाशक फूल निकलने से पहले उपयोग करे। खरपतवारनाशक का प्रयोग मुख्य पौधों पर नही करना चाहिए।

 

यह भी पड़े : मात्र एक एकड़ में संतरे लगाकर ऐसे लाखों का मुनाफ़ा कमाता है ये किसान

 

बहार उपचार (तान देना)

पेड़ों में फूल धारणा प्रवृत्त करने हेतु फूल आने की अवस्था में बहार उपचार किया जाता है। इस हेतु मृदा के प्रकार के अनुसार बगीचे में 1 से 2 माह पूर्व सिंचाई बंद कर देते हैं। इससे कार्बन : नत्रजन अनुपात में सुधार आता है (नत्रजन कम होकर कार्बन की मात्रा बढ़ जाती है) कभी कभी सिंचाई बंद करने के बाद भी पेड़ों में फूल की अवस्था नही आती ऐसी अवस्था में वृद्धि अवरोधक रसायन सी.सी.सी. 1500-2000 पी.पी.एम. या प्लेक्लोबुटराझाल (कलटार)का छिड़काव किया जाना चाहिए।

 

फल गलन

फलो का गिरना वर्ष में दो या तीन बार में होता है-

प्रथम फल गोली के आकार से थोड़ा बड़ा होने पर तथा दूसरा फल पूर्ण विकसित होने या फल रंग परिवर्तन के समय। फल तुड़ाई के कुछ दिन पहले फल गलन अम्बिया बहार की काफी गंभीर समस्या है।

फल गलन की रोकथाम हेतु फूल आने के समय जिब्रेलिक अम्ल 10 पी.पी.एम. यूरिया 1 प्रतिशत का छिड़काव करें। फल लगने के बाद फलों का आकर 8 से 10 मि.मी. 2, 4-डी 15 पी.पी.एम. बिनामिल तथा कार्बेन्डाजिम 1000 पी.पी.एम. यूरिया 1 प्रतिशत का छिड़काव करें ।फल 18 से 20 मि.मी. आकरमान के होने के बाद जिब्रेलिक अम्ल 10 पी.पी.एम. पोटेशियम नायट्रेट 1 प्रतिशत छिड़काव करें । सितंबर माह में 2,4-डी 15 पी.पी.एम.बिनामिल या कार्बेन्डाजिम 1000 पी.पी.एम. और यूरिया 1 प्रतिशत का छिड़काव करें।अक्टूबर महीने में जिब्रेलिक अम्ल 10 पी.पी.एम. पोटेशियम नायट्रेट 1 प्रतिशत का छिड़काव करें। 2,4-डी या जिब्रेलिक अम्ल 30 मिली. अल्कोहल या एसिटोन में घोलें व बाद में पानी मिलाएं।मृग बहार की फसल के लिए भी उपरोक्त रोकथाम के उपाय करें ।

संतरा बागानों में कीट प्रबंधन | santare ki kheti

संतरे का सायला कीट

  1. प्रौढ़ एवं अरभक क्षतिकारक अवस्थाएं
  2. कीट समूह में रहकर नाजुक पत्तियों से तथा फूल कलियों से रस शोषण करते हैं परिणामतः नई कलियां तथा फलों की गलन होती है।

नियंत्रण-१.जनवरी-फरवरी, जून-जुलाई तथा अक्टूबर -नवम्बर में नीम तेल (3-5 मि.ली./लीटर) या इमिडाक्लोप्रिड अथवा मोनोक्रोटोफॉस का छिड़काव करें।

पर्ण सुरंगक कीट

  1. नर्सरी तथा छोटे पौधों पर अधिक प्रकोप होता है, जिससे वृद्धि रूक जाती है। यह कीट मिलीबग तथा कैंकर रोग के संवाहक हैं।
  2. जीवन क्रम 20 से 60 दिन तथा वर्ष में 9 से 13 पीढ़ियां
  3. प्रकोप संपूर्ण वर्ष भर परंतु जुलाई-अक्टूबर तथा फरवरी-मार्च में अधिक।

नियंत्रण

  1. नर्सरी में कीट ग्रसित पत्तियों को छिड़काव पूर्व तोड़कर नष्ट करें।
  2. क्विनालफॉस 25 ई.सी. का 2.0 मि.ली. अथवा फोसोलॉन 1.5 मि.ली./लीटर

नीबू की तितली

  1. कीट प्रकोप वर्ष भर परंतु जुलाई-अगस्त में सर्वाधिक
  2. वर्ष में 4-5 पीढ़ियां
  3. इल्लियों की पत्तियां खाने की क्षमता बहुत अधिक होती है।
  4. इल्लियों का रंग कत्थई, काला होता है। विकसित इल्ली पर सफेद चित्तीयां होती हैं जिससे चिड़ियों की बीट के समान प्रतीत होती हैं।

नियंत्रण

  1. डायपेल (बी.टी.) 0.05 प्रतिशत या सायपरमेथ्रिन 1 मि.ली./लीटर अथवा क्विनालफॉस 25 ई.सी. का 2.0 मि.ली. /लीटर

छाल खाने वाली इल्लियां

  1. इल्लियां रात्रिचर – तने से बाहर आकर रात में छाल का भक्षण करती हैं।
  2. तने में अधिकतम 17 छिद्र देखे गये हैं।

ग्रसित भाग के जाले हटाकर डायक्लोरोहॉस 1 प्रतिशत घोल छिद्र में डालकर छिद्र कपास से बंद करें।

 

संतरा बागानों में रोग प्रबंधन | santare ki kheti

फायटोफ्थोरा बीमारी के लक्षण

फायटोफ्थोरा रोग से नर्सरी में पौधे पीले पड़ जाते है, बढ़वार रूक जाती है तथा जड़ों की सड़न होती है। इस फफूंद के कारण जमीन के ऊपर तने पर दो फीट तक काले धब्बे पड़ जाते हैं जिसके कारण छाल सूख जाती है। इन धब्बों से गोंद नुमा पदार्थ निकलता है। पेड़ों की जड़ों पर भी इस फफूंद से क्षति होती है। प्रभावित पौधे धीरे-धीरे सूख जाते हैं।

रोग का उदगम

फायटोफ्थोरा फफूंद के रोगाणु गीली जमीन से बहुत जल्दी बढ़ जाते हैं। इसके बीजाणू वर्षा पूर्व 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान पर बढ़कर थैली नुमा आकार के हो जाते हैं जो पानी के साथ तैरकर जड़ों की नोक तथा जड़ों की जख्म के संपर्क में आकर बीमारी का प्रसार करते हैं। इन बीजाणुओं से धागेनुमा फफुंद का विकास होता है जो बाद में कोशिकाओं में प्रवेश कर फफूंद का पुनः निर्माण करते हैं। फायटोफ्थोरा फफूंद पूरे वर्ष भर नर्सरी तथा बगीचो की नमी में सक्रिय रहती है।

रोग के फैलाव के प्रमुख कारण

  1. फायटोफ्थोरा के लिए अप्रतिरोधक मातृवृक्ष (रूटस्टाक) का उपयोग।
  2. बगीचे में पट पानी देना तथा क्यारियों में अधिक समय तक पानी का रूकना।
  3. गलत पद्धति से सिंचाई द्वारा प्रसार।
  4. जमीन से 9 इंच से कम ऊॅचाई पर कलम बांधना।
  5. एक ही जगह पर बार बार नर्सरी उगाना।
  6. रोग प्रभावित बगीचो के पास नर्सरी तैयार करना।

प्रबंधन

पौध शाला में फायटोफ्थोरा रोग का प्रबंधन

  1. बोनी के पूर्व फफूंद नाशक दवा से बीजोपचार करना चाहिए।
  2. पौधों को पौध शाला से सीधे बगीचे में नही ले जाना चाहिए।जड़ों को अच्छी तरह धोकर, मेटालेक्जिल एम. जेड 2.75 ग्राम प्रति लिटर के साथ कार्बिनडाजिम/ग्राम प्रति लिटर घोल से 10 मिनट तक उपचारित करना चाहिए।
  3. जमीन से लगभग 9 इंच के ऊपर कलम बांधना चाहिए।
  4. पौध शाला में प्लास्टिक ट्रे एवं निर्जिवीकृत (सुक्ष्मजीव रहित) मिट्टी का उपयोग करना चाहिए।
  5. पौधशाला हेतु पुराने बगीचों से दूर अच्छी जल निकासी वाली जमीन का चयन करना चाहिए।

बागानों में फायटोफ्थोरा रोग का प्रबंधन

रोकथाम के उपाय

  1. अच्छी जल निकासी वाली जमीन का चुनाव करें।
  2. अच्छी प्रतिरोधकता वाली मूलवृन्त का चुनाव करें।
  3. अधिक सिंचाई और जड़ों को टूटने से बचाना चाहिए।
  4. पौध रोपण के समय कलम जमीन की सतह से लगभग 6 से 9 इंच ऊॅंचाई पर होना चाहिए।
  5. तने को नमी से बचाने के लिए डबल रिंग सिंचाई पद्धति का उपयोग करना चाहिए।
  6. वर्षा के पहले और बाद में तने पर बोर्डेक्स पेस्ट लगाना चाहिए।

रोग नियंत्रण के उपाय

  1. तने के रोग ग्रस्त भाग को चाकू से छिलकर मेटालेक्जिल एम जेड़ 72 का पेस्ट लगावे। छिले हुए भाग को जलाकर नष्ट करना चाहिए।
  2. मेटालेक्जिल एम जेड 72 डब्लू पी 2.75 ग्राम प्रति लीटर या फोस्टिल ए.एल 2.5 ग्राम प्रति लीटर की दर से रोग ग्रस्त पौधो पर अच्छी तरह छिड़काव करें।
  3. प्रतिरोधी मूलवृन्त जैसे रंगपूर लाइम पर फायटोफ्थोरा का आक्रमण कम होता है।

स्त्रोत: vikaspedia

 

मंडी भाव सर्च करे

Latest News

  • शनिवार को सवा करोड़ लाड़ली बहनों को मिलेगा तोहफा
  • 16 जिलों में आंधी-बारिश की चेतावनी, 20 जून के बाद मानसून की दस्तक
  • आधार, पैन कार्ड लिंक : 30 जून आखिरी तारीख, ऐसे जोड़ें दोनों दस्तावेज
  • कब आएगी पीएम किसान योजना की अगली किस्त?
  • इस घास की खेती करके आप कमा सकते हैं लाखों
  • इंदौर मंडी में आवक और डॉलर चना कंटेनर रेट
  • धान की रोपाई के लिए पैडी (राइस) ट्रांसप्लांटर कृषि यंत्र सब्सिडी पर लेने के लिए आवेदन करें
  • दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए पशुपालकों को उपलब्ध कराया जा रहा है पौष्टिक आहार
  • इस तारीख को किसानो के खाते में सीएम डालेंगे 6500 करोड़ रूपये
  • इंदौर मंडी में आवक और डॉलर चना कंटेनर रेट

Latest Mandi Rates

  • aaj ke mandi bhavआज के मंडी भाव मध्यप्रदेश
  • इंदौर मंडी भाव, आज के ताजा भाव
  • Neemuch Mandi Bhav नीमच मंडी भाव
  • Mandsaur Mandi Bhav मंदसौर मंडी भाव
  • Betul Mandi Bhav बेतुल मंडी भाव
  • Dhamnod Mandi Bhav धामनोद मंडी भाव
  • Dhar Mandi Bhav RatesDhar Mandi Bhav धार मंडी भाव
  • Ujjain Mandi BhavUjjain Mandi Bhav उज्जैन मंडी भाव
  • Khargone Mandi Bhav खरगोन के मंडी भाव
  • Badnawar Mandi Bhav बदनावर मंडी भाव

फेसबुक पेज लाइक करे

https://www.facebook.com/EKisanIndia

Important Pages

  • About
  • Contact us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Home
  • मंडी भाव
  • कृषि समाचार
  • सरकारी योजना
  • Download App
  • मौसम समाचार

Follow us on Facebook

©2023 eKisan