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सरसों की टॉप 5 अगेती किस्म : सितंबर में बुवाई करें, जनवरी में मिलेगी भरपूर पैदावार

सरकार की ओर से देश में तिलहनी फसलों (oilseed crops) की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।

तिलहनी फसलों में काफी किसान सरसों की खेती (mustard cultivation) करते हैं।

रसों की खेती किसानों के लिए अन्य फसलों की अपेक्षा ज्यादा सुरक्षित कमाई वाली फसल मानी गई है।

वहीं सरसों की खेती में गेहूं की तुलना में सिंचाई की कम आवश्यकता होती है।

ऐसे में इसकी खेती सिंचाई की उपलब्धता वाले क्षेत्रों के साथ ही बारानी क्षेत्रों में भी की जाती है।

 

15 सितंबर के आसपास कर सकते हैं बुवाई

सरसों के तेल से बहुत सारी खाने की चीजें बनाई जाती हैं। वहीं इसकी खली का इस्तेमाल पशुओं को खिलाने में किया जाता है।

ऐसे में सरसों की खेती (mustard cultivation)  किसानों के लिए सब प्रकार से लाभकारी मानी जाती है।

कई किसान इसके लाभ को देखते हुए इसकी अगेती खेती भी करते हैं। इससे उन्हें अतिरिक्त लाभ मिलता है।

सरसों की अगेती खेती (early cultivation of mustard) करने वाले किसानों को इसकी जल्दी पकने वाली किस्मों का चयन करना चाहिए ताकि किसान इनसे अधिक पैदावार के साथ ही तेल की ज्यादा मात्रा प्राप्त कर सकें।

 

पूसा सरसों-25 (एनपीजे-112) किस्म

पूसा सरसों 25 (एनपीजे-112) किस्म सरसों की कम समय में तैयार होने वाली किस्मों में से एक है।

यह किस्म बुवाई के बाद 107 दिन में पककर कटाई के लिए तैयार होती है। यह किस्म सितंबर बहुफसली प्रणाली के लिए उपयुक्त है।

इसमें तेल की मात्रा 39.6 प्रतिशत पाई जाती है। जबकि इस किस्म से औसत बीज उपज 14.7 क्विंटल प्रति हैक्टेयर प्राप्त की जा सकती है।

सरसों की पूसा सरसों-25 किस्म राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर के मैदानी इलाकों और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हिमाचल प्रदेश के क्षेत्रों के लिए उपयुक्त पाई गई है।

 

सरसों की पूसा महक (जेडी-6) किस्म

सरसों की पूसा महक किस्म उत्तर पूर्वी और पूर्वी राज्यों में सितंबर की बुवाई के लिए अधिक उपयुक्त पाई गई है।

इसकी किस्म की खेती राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली, बिहार, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, असम, उडीसा, झारखंड में की जा सकती है।

इस किस्म से 17.5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर पैदावार प्राप्त की जा सकती है। इस किस्म के बीजों में तेल की मात्रा 40 प्रतिशत होती है।

इस किस्म को पककर तैयार होने में करीब 118 दिन का समय लगता है।

 

पूसा सरसों 27 (ईजे-17) किस्म

सरसों की यह किस्म बहुफसली प्रणाली के लिए उपयुक्त है। यह उन परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है जहां किसान गन्ना या कोई सब्जी की फसल लेते हैं।

इस तरह यह किस्म सितंबर से जनवरी तक चलने वाले खरीफ और रबी सीजन के बीच एक अतिरिक्त फसल के रूप में मुनाफा प्रदान करती है।

इस किस्म की  खेती उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान, कोटा क्षेत्रों में की जा सकती है।

यह किस्म बुवाई के करीब 118 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की बीज पैदावार 15.35 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है।

इसमें तेल की मात्रा 41.7 प्रतिशत पाई जाती है। यह किस्म अंकुरण और बीज के विकास के दौरान उच्च तापमान के प्रति मध्यम रूप से सहनशील है।

 

पूसा सरसों 28 (एनपीजे- 124) किस्म

सरसों की यह किस्म भी बहुफसली प्रणाली के लिए उपयुक्त किस्म है। इसकी बुवाई सितंबर महीने में की जा सकती है।

सरसों की पूसा-28 किस्म की औसत उपज 19.93 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है।

इसके बीजों से 41.5 प्रतिशत तक तेल की मात्रा प्राप्त की जा सकती है। यह किस्म बुवाई के 107 दिन में पककर तैयार हो जाती है।

यह किस्म अंकुरण अवस्था के समय उच्च तापमान को सहन करने में सक्षम है।

सरसों की पूसा सरसों 28 किस्म की खेती राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर के मैदानी क्षेत्रों में की जा सकती है।

 

सरसों की पूसा अग्रणी किस्म

सरसों की कम अवधि में पकने वाली किस्म में पूसा अग्रणी भी शामिल है। यह किस्म 110 दिन की समयावधि में पककर तैयार हो जाती है।

सरसों की इस किस्म से औसत 13.5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

इस किस्म में तेल की 40 प्रतिशत तक मात्रा पाई जाती है।

पूसा अग्रणी किस्म दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के लिए अधिक उपयुक्त पाई गई है।

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