आलू की खेती से अच्छी पैदावार के लिए यह खास 5 जरुरी सलाह

आलू की खेती में सही तकनीकों और सावधानियों का पालन करके किसान अपनी फसल का उत्पादन और गुणवत्ता दोनों बेहतर कर सकते हैं.

शुरुआती दिनों में पौधों की सही देखभाल, पोषण और रोग नियंत्रण पर ध्यान देने से फसल की पैदावार को दोगुना किया जा सकता है.

 

रोगमुक्त रहेगी फसल

भारत में आलू की खेती रबी की मुख्य फसलों में से एक है. इसकी खेती ज्यादातर ठंडे मौसम में की जाती है.

कई किसान अगेती किस्मों की बुवाई अक्टूबर में कर लेते हैं, लेकिन फसल से बेहतर उत्पादन के लिए कुछ खास बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है.

खासकर आलू की फसल के शुरुआती दिनों में किसानों के लिए सावधानी बरतना काफी ज्यादा जरूरी हो जाती है, क्योंकि यही वह समय है होता है जब फसल तेजी से बढ़ रही होती है.

 

मिट्टी और उर्वरक प्रबंधन

आलू की फसल में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश जैसे पोषक तत्वों की आवश्यकता होते हैं.

नाइट्रोजन – यह पौधों की हरी पत्तियों और तनों के विकास में सहायक होता है. सही मात्रा में नाइट्रोजन का उपयोग करने से पौधों की पत्तियां हरी और स्वस्थ रहती हैं.

फास्फोरस – यह पौधों की जड़ों को मजबूत करता है. फास्फोरस के प्रयोग से जड़ें गहरी और मजबूत होती हैं, जिससे कंदों का आकार बेहतर होता है.

पोटाश – यह कंदों की गुणवत्ता और उत्पादन बढ़ाने में मदद करता है.

इसके अलावा, जैविक खादों का भी बड़ा योगदान होता है. गोबर की खाद, वर्मी-कंपोस्ट या अन्य जैविक खादें मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के साथ-साथ फसल के पोषण में मदद करती हैं. जैविक खाद का सही समय और मात्रा में उपयोग फसल को प्राकृतिक रूप से ताकतवर बनाता है.

 

कीट और रोग नियंत्रण

आलू की फसल पर कीट और रोगों का हमला होना सामान्य बात है. लेकिन समय पर इनका नियंत्रण किया जाए, तो फसल को बचाया जा सकता है.

महत्वपूर्ण रोग : आलू की फसल को झुलसा रोग, जीवाणु जनित विल्ट, भूरा सड़न और पापड़ी रोग जैसे रोग प्रभावित कर सकते हैं.

स्प्रे और दवाइयां : कीट नियंत्रण के लिए 15 मिलीलीटर किनॉलफॉस को 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. झुलसा रोग और अन्य संक्रमण से बचाने के लिए 1 मिलीलीटर टेबुकाजोल दवा को 1 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें. इसके अलावा, जिंक की कमी होने पर जिंक आधारित दवाओं का छिड़काव लाभदायक होता है.

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 सिंचाई का महत्व

  • आलू की फसल को बढ़ने के लिए सही मात्रा में पानी की जरूरत होती है.
  • आलू के कंद के विकास के लिए मिट्टी में नमी बनाए रखना जरूरी है.
  • बुवाई के 30-45 दिन बाद सिंचाई कम करें, क्योंकि इस समय कंद आकार लेने लगते हैं. ज्यादा पानी देने से कंद सड़ सकते हैं.
  • टपक सिंचाई (ड्रिप इरिगेशन) तकनीक का उपयोग नमी बनाए रखने और पानी की बर्बादी रोकने के लिए फायदेमंद हो सकता है.

 

शुरुआत के 30-45 दिन महत्वपूर्ण

शुरुआती 30-45 दिन आलू की फसल के विकास का सबसे अहम समय होता है. इस दौरान पौधों का तना, पत्तियां और जड़ें तेजी से बढ़ती हैं.

ऐसे में इसकी फसल को सही पोषण और पर्याप्त पानी की आवश्यकता होती है, जिससे फसल की आधारशिला मजबूत होती है.

इस दौरान कीटों और रोगों पर नजर रखना जरूरी होता है, ताकि समस्या बढ़ने से पहले उसका समाधान किया जा सके.

 

बेहतर उत्पादन के टिप्स
  • बुवाई के समय स्वस्थ और रोगमुक्त बीजों का उपयोग करें.
  • मिट्टी की जांच कर उर्वरकों का चयन करें.
  • सिंचाई और खाद का सही तालमेल बनाएं.
  • जैविक और रासायनिक दोनों प्रकार की खादों का संतुलित प्रयोग करें.
  • रोग और कीटों की रोकथाम के लिए समय पर स्प्रे करें.

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