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गेंहू की पैदावार बढ़ाने के लिए उपयोगी सलाह

गेंहू की अच्छी पैदावार के लिए फसल में यूरिया एवं अन्य खाद Wheat Crop कब एवं कितना कितना देना चाहिए,

जानें कृषि विशेषज्ञों से सटीक जानकारी…

 

खाद-उर्वरक, सिंचाई सहित अन्य जानकारी

रबी फसलों को अगेती बुवाई का कार्य पूरा हो चुका है।

केंद्र सरकार द्वारा गेंहू की एमएसपी बढ़ाने के बाद किसानों की यह कोशिश रहेगी कि वह अपनी फसल से अच्छी पैदावार निकाले और ज्यादा मुनाफा ले सके।

गेंहू की बुवाई के बाद बारी आती है, उसमें कीट नियंत्रण, खरपतवार नियंत्रण, सिंचाई एवं खाद कब-कब एवं कितना डालें।

ऐसे मे गेंहू की अच्छी पैदावार Wheat Crop के लिए किसान भाइयों को खाद उर्वरक से लेकर सिंचाई तक का बेहद महत्वपूर्ण ध्यान रखना पढ़ता है।

यहां आर्टिकल में जानें कृषि विशेषज्ञों से जानें सिंचाई, खाद-उर्वरक, खरपतवार/कीट/रोग नियंत्रण के उपाय।

 

गेंहू में खाद की मात्रा कितनी रहनी चाहिए?

Wheat Crop में उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। बौने गेहूँ की अच्छी उपज के लिए मक्का, धान, ज्वार, बाजरा की खरीफ फसलो के बाद भूमि में 150:60:40, तथा विलम्ब से 80:40:30 क्रमशः नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश का प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।

बुन्देलखण्ड क्षेत्र में सामान्य दशा में 120:60:40 कि0ग्रा0, नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश एवं 30 किग्रा० गंधक प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग लाभकारी पाया गया है।

यदि खरीफ में खेत परती रहा हो या दलहनी फसले बोई गई हो तो नत्रजन की मात्रा 20 किग्रा० प्रति हेक्टर तक कम प्रयोग करें।

लगातार धान-गेंहू फसल चक्र वाले क्षेत्रों में कुछ वर्षा बाद गेहूँ की पैदावार में कमी होने लगती है।

अतः ऐसे क्षेत्रों में गेहूं Wheat Crop की फसल कटने के बाद तथा धान की रोपाई के बीच हरी खाद का प्रयोग करना चाहिए अथवा धान की फसल में 10-12 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए।

 

गेंहू में खाद लगाने का समय व विधि

उर्वरक की क्षमता बढ़ाने के लिए उनका प्रयोग विभिन्न प्रकार की भूमियों में निम्न प्रकार से करना चाहिए।

दोमट या मटियार, कावर तथा मार भूमि में नत्रजन की आधी, फास्फेट व पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय कँड़ों में बीज के 2-3 सेमी. नीचे करें।

नत्रजन की शेष मात्रा पहली सिंचाई के 24 घण्टे पहले या ओट आने पर दे।

बुआई दोमट राकड़ व बलुई जमीन में नत्रजन की 1/3 मात्रा, फास्फेट तथा पोटाश की पूरी मात्रा को बुआई के समय कँडो में बीज के नीचे देना चाहिए।

शेष नत्रजन की आधी मात्रा पहली सिंचाई (20-25 दिन) के बाद (क्राउन रूट अवस्था) तथा बची हुई मात्रा दूसरी सिंचाई के बाद देना चाहिए।

 

गेंहू में सिंचाई कब-कब एवं कितनी दे ?

आश्वस्त सिंचाई की दशा में :

आमतौर पर गेंहू Wheat Crop की बौनी प्रजातियों से अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए हल्की भूमि में सिंचाईयों को निम्न अवस्थाओं में करनी चाहिए।

  • पहली सिंचाई: बुआई के 20-25 दिन बाद (ताजमूल अवस्था)
  • दुसरी सिंचाई: बुआई के 40-45 दिन बाद (कल्ले निकलते समय)
  • तीसरी सिंचाई: बुआई के 60-65 दिन पर (दीर्ध सन्धि अथवा गाठे बनते समय)
  • चैथी सिंचाई: बुआई के 80-85 दिन बाद (पुष्पावस्था)
  • पांचवी सिंचाई: बुआई के 100-105 दिन (दुग्धावस्था)
  • छठी सिंचाई: बुआई के 115-120 दिन पर (दाना भरते समय)

Wheat Crop दोमट या भारी दोमट भूमि में निम्न चार सिंचाइयाँ करके भी अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है परन्तु प्रत्येक सिंचाई कुछ गहरी (8 सेमी) करें।

सीमित सिंचाई साधन की दशा में:

यदि तीन सिंचाईयों की सुविधा ही उपलब्ध हो तो ताजमूल अवस्था, बाली निकलने से पूर्व तथा दुग्धावस्था पर करें।

यदि दो सिंचाईयाँ ही उपलब्ध हों तो ताजमूल तथा पुष्पावस्था पर करें। गेहूँ एक ही सिंचाई उपलब्ध हो तो ताजमूल अवस्था पर करें।

सिंचित तथा पछेती बुआई की दशा में:

पछेती गेंहू Wheat Crop में सामान्य की अपेक्षा जल्दी-जल्दी सिंचाईयों की आवश्यकता होती है पहली सिंचाई जमाव के 15-20 दिन बाद या ताजमूल अवस्था करें।

बाद की सिंचाई 15-20 दिन के अन्तराल पर करें। बाली निकलने से दुग्धावस्था तक फसल को जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहें।

 

गेंहू में खरपतवार

गेंहू Wheat Crop की फसल में सकरी पत्ती- गेंहुसा एवं जंगली जई चैड़ी पत्ती- बथुआ, कृष्णनिल, हिरनखुरी, खरतुआ, सेंजी, चटरी-मटरी, अकारा-अकरी, जंगली गाजर, वन प्याजी, एवं सत्यानाशी आदि खरपतवार देखी जाती है। इनके नियंत्रण के लिए

 

गेंहू में खरपतवार नियंत्रण के उपाय

सकरी पत्ती के खरपतवार गेहूँ Wheat Crop सा एवं जंगली जई नियंत्रण हेतु निम्नलिखित खरपतवारनाशी में से किसी एक रसायन की संस्तुत मात्रा को लगभग 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर बुआई के 30-35 के बाद प्लैट फैन नोजिल से छिड़काव करना चाहिये।

सल्फोसल्फ्यूरान हेतु पानी की मात्रा 300 लीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए।

  • सल्फोसल्फ्यूरान 75 प्रतिशत डब्ल्यू0पी0 33 ग्राम प्रति हेक्टेयर।
  • फिनोक्साप्रापदृ पी0-मिथाइल 10 प्रतिशत ई.सी. को 1.0 लीटर प्रति हेक्टेयर।
  • क्लोडिनाफॉप प्रोपैजिल 15 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. को 400 ग्रा0 प्रति हेक्टेयर।
  • फिनोक्साडेन 5 प्रतिशत ई.सी. 900-1000 मिलीग्राम प्रति हेक्टेयर।

Wheat Crop में चैड़ी पत्ती के खरपतवार बथुआ, कृष्णनील, हिरनखुरी, जंगली गाजर, खरतुआ एवं सत्यानाशी आदि के नियंत्रण हेतु निमांकित रसायनों में से किसी एक रसायन की संस्तुत मात्रा को लगभग 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर बुआई के 30-35 दिन के बाद फ्लैट फैन नोजिल से छिड़काव करना चाहिये।

  • 2.4 डी0 सोडियम साल्ट 80 प्रतिशत की 625 ग्राम प्रति हेक्टेयर।
  • कारफेन्ट्राजान मिथाइल 40 प्रतिशत डी0एफ0 की 50 ग्राम प्रति हेक्टेयर।
  • मेट सल्फ्यूरान मिथाइल 20 प्रतिशत डब्ल्यू0पी0 की 20 ग्राम प्रति हेक्टेयर।

Wheat Crop में सकरी एवं चैड़ी पत्ती दोनों प्रकार के खरपतवार नियंत्रण हेतु निम्नलिखित खरपतवारनाशी रसायनों में से किसी एक रसायन की संस्तुत मात्रा को लगभग 500-600 लीटर पानी में धोलकर प्रति हेक्टेयर प्लैटफेन नाजिल से छिड़काव करना चाहिये।

  • पेडीमेथिलीन 30 प्रतिशत ई०सी० की 3.33 लीटर प्रति हेक्टेयर बुआई के 3 दिन के अन्दर।
  • सल्फो सल्फ्यूरान 75 प्रतिशत डब्ल्यू0पी0 की 33 ग्राम प्रति हेक्टेयर बुआई के 30-35 दिन के बीच में।
  • सल्फोसल्फ्यूरान 75 प्रतिशत़ मेटसल्फोसल्फ्यूरान मिथाइल 5 प्रतिशत डब्लयू०पी० की 40 ग्राम बुआई के 30-35 दिन के बीच में।

 

गेंहू की फसल में कीट नियंत्रण

1. दीमक कीट पहचान एवं नियंत्रण :- Wheat Crop में यह एक सामाजिक कीट है तथा कालोनी बनाकर रहते हैं।

एक कालोनी में लगभग 90 प्रतिशत श्रमिक, 3-3 प्रतिशत सैनिक, 1 रानी व 1 राजा होते हैं।

श्रमिक पीलापन किये हुए सफेद रंग के पंखहीन होते है जो फसलों को क्षति पहुंचाते है।

बुवाई से पूर्व दीमक के नियंत्रण हेतु क्लोरीपायरीफास 20 प्रतिशत ई0सी0 की 3 मिली मात्रा प्रति किग्रा0 बीज की दर से बीज को शोधित करना चाहिये।

खड़ी फसल में दीमकध्गुजिया के नियंत्रण हेतु क्लोरीपायरीफास 20 प्रतिशत ई0 सी0 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करना चाहिये।

2. गुजिया कीट :- यह कीट भूरे मटमैले रंग का होता है जो सूखी जमीन में ढेले एवं दरारों में रहता है।

यह कीट उग रहे पौधो Wheat Crop को जमीन की सतह काटकर हानि पहुंचाता है।

3. माहू कीट पहचान एवं नियंत्रण :- हरे रंग के शिशु एवं प्रौढ़ माहू पत्तियों एवं हरी बालियो से रस चूस कर हानि पहुंचाते हैं।

माहूं मधुश्राव करते है जिस पर काफी फफूंद उग आती है। जिससे प्रकाश संश्लेषण में बाधा उत्पन्न होती है।

माहूं कीट के लिए नियंत्रण के लिए डाइमेथोएट 30 प्रतिशत ई0 सी0 अथवा मिथाइल-ओ0-डेमेटान 25 प्रतिशत ई0सी0 की 1 लीटर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए।

 

गेंहू की फसल में रोग नियंत्रण

गेंहू में प्रायः गेरूई, कण्डुआ, करनाल बन्ट, पहाडी बन्ट एवं सेहूँ रोग लगते हैं।

इनमें भूरी गेरूई, पीली गेरूई व काली गेरूई जो पत्तियों व तनों के ऊपर पाउडर के रूप में दिखाई देती है के प्रकोप से गेहूँ की पैदावार घट जाती है।

कण्डुआ ग्रसित बालियों में दाने नहीं आते है। करनाल बन्ट बीमारी दानों पर काले चूर्ण के रूप में दिखाई देती है।

काला पाउडर (चूर्ण) विषाक्त होता है तथा स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होता है।

सेहूँ रोग एक सूत कृमि द्वारा फैलता है। इसमें पत्तियों व बालियाँ सिकुडकर मुड जाती है।

 

गेंहू में रोग नियंत्रण के लिए यह उपाय करें
  • उपलब्ध नवीनतम बीज केवल सरकारी व मान्यता प्राप्त केन्द्रों से ही खरीदकर प्रयोग किया जाये।
  • गांव के घरेलू बीजों को 2 प्रतिशत नमक के घोल में (200 ग्राम नमक 10 लीटर पानी) में आधे घंटे डुबाकर छान ले फिर पानी में दो-तीन बार धोकर बोये।
  • अनावृत कण्डुआ की रोकथाम के लिये 3 ग्राम 1 प्रतिशत पारायुक्त रसायन अथवा 5 ग्राम बीटावैक्स प्रति कि0ग्रा0 बीज में मिलाकर बुआई करना चाहिए।
  • झुलसा व गेरूई के लिए डाइथेन एम-45 की 0 किग्रा या जिनेब की 2.5 किग्रा० प्रति हेक्टेयर की दर से 10-12 दिन के अन्दर पर दो बार छिडकाव करना चाहिये।
  • पहाडी बन्ट के लिये थीरम 5 ग्रामध्किग्रा० अथवा कार्बान्डाजिम 2.5 ग्राम प्रति किग्रा0 बीज की दर से शोधित करके बोना चाहिये।

गेंहू में चूहो से बचाव :- Wheat Crop में चूहों की रोकथाम के लिये 3-4 ग्राम जिंक फास्फाइड को एक किलो आटा, थोड़ा सा गुड़ व तेल मिलाकर छोटी-छोटी गोली बना लें तथा बिलों के पास रख दें।

चूहों की रोकथाम सामूहिक रूप से करने पर अधिक लाभ होता है।

एल्यूमिनियम फास्फाइड की 3 ग्राम की चैथाई टिकिया या 0.6 ग्राम वाली एक टिकिया चूहे के बिल में डालकर बन्द कर देना चाहिये।

गेंहू की कटाई-मडाई : बालियों पक जाने पर जब मोड़ने पर टूट जाये तो फसल Wheat Crop तुरन्त काटकर मौसम को ध्यान में रखकर ही मड़ाई करना चाहिये।

ऊसर भूमि में गेहूँ की उपज 50-55 कु0 प्रति हे0 लगभग होती है।

 

गेंहू की पैदावार बढ़ाने के लिए अन्य टिप्स
  • खेत की त्वरित तैयारी हेतु यथा सम्भव रोटावेटर का प्रयोग करें।
  • क्षेत्रीय अनुकूलता एवं समय विशेष के अनुसार ही प्रजाति का चयनित करें।
  • शुद्ध एवं प्रमाणित बीज को शोधन के बाद बुवाई करें।
  • जिवांश खादों का उपयोग सुनिश्चत करते हुये यथा सम्भव कम से कम आधी पोषक तत्वों की मात्राइन खादों द्वारा ही पूर्ति करें।
  • मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग सही समय, सही विधि एवं सही मात्रा में प्रयोग करें।
  • फसल की क्रांन्तिक अवस्थाओं पर सिंचाई अवश्य करें। यदि पानी की कमी है तो ताजमूल एवं पुष्पावस्था पर अवश्य सिंचाई करें।
  • खरपतवारों का उनकी क्रांन्तिक अवस्थाओं पर नियन्त्रण अवश्य करें एवं गेहूंसा के नियन्त्रण के लिए नवीन खरपतवारनाशी का ही प्रयोग करें।
  • बीमारियों एवं कीड़-मकोड़ो Wheat Crop की रोकथाम हेतु निगरानी के साथ ही सही समय पर नियन्त्रण करें।

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