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लहसुन फेंकने पर क्यों मजबूर हो रहे मध्य प्रदेश के किसान

लहसुन की फसल की खेती

 

मध्य प्रदेश के देवास जिले के गांव के एक किसान गेहूं, प्याज, और लहसुन की फसल की खेती करते हैं, वह बताते है की इस साल उन्होंने 3 बीघा जमीन पर लहसुन लगाई थी।

एक बीघा जमीन पर बीज खरीदने से लेकर मंडी ले जाने तक 25 से 30 हजार रुपए की लागत आई, यानी लगभग 90 हजार रुपए।

 

खर्च भी नहीं निकल पा रहा

लहसुन की फसल में चार-पांच बार दवाई लगती है, और हाथ से निंदाई- गुड़ाई से लेकर ग्रेडिंग करवाने तक का काम होता है, इससे लागत बहुत बढ़ जाती है ।

95 कट्टा (50 किलो का एक कट्टा/बोरी) उत्पादन हुआ, लेकिन आज की तारीख में एक कट्टा 100 से 150 रुपए तक बिक रहा है, इसमें तो उनका निंदाई – गुडाई तक का खर्च नहीं निकल पा रहा है। 

किसान बताते है की पहले अच्छा उत्पादन 40 से 45 कुंटल प्रति एकड़ तक पहुंच जाता था, लेकिन पिछले 3 साल से उत्पादन भी कम हो रहा है और दाम भी कम मिल रहे हैं, जबकि उत्पादन कम होने पर फसल का दाम भी बढ़ जाता है।

किसान के पास कोई विकल्प नहीं

वह बताते हैं कि पांच साल पहले उन्होंने मंडी में अपनी लहसुन की फसल बेची थी, उस वक्त मध्यप्रदेश सरकार ने भावांतर योजना चला रखी थी।

उस साल की उपज का भावांतर मूल्य उनके अकाउंट में अभी तक नहीं आया है।

हर साल घाटा होता देख मन में यह सवाल बार-बार आता है कि अब फसल बोएं या नहीं, लेकिन फसल लेने के अलावा उनके पास कोई विकल्प भी नहीं है।

 

इन दिनो एक वीडियो वायरल हो रहा

मध्यप्रदेश में एक वीडियो वायरल हो रहा है, इस वीडियो में किसान अपनी लहसुन की फसल को नदी में बहा रहे हैं, इससे पहले एक और वीडियो सामने आया था, जिसमें किसानों ने प्रदेश की सबसे बड़ी लहसुन मंडी मंदसौर में दाम नहीं मिलने पर लहसुन पर पेट्रोल छिड़ककर आग के हवाले कर दिया था। ऐसी घटनाएं पिछले कई महीने से सामने आ रही हैं।

 

लहसुन और प्याज की फसल नहीं लगाने का प्रण

सीहोर जिले के एक किसान ने तो अब कसम खा ली है कि वह कभी भी लहसुन और प्याज की फसल नहीं लगाएंगे ।

इस साल उन्होंने 2 एकड़ जमीन पर प्याज और इतनी ही जमीन पर लहसुन की फसल लगाई थी। लगभग 40 से 45 हजार रुपए प्रति एकड़ लागत आई।

लहसुन का बीज उन्होंने 7000 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से खरीदा था और अब जब फसल निकल कर रही है तो वह 400 से 500 रुपए प्रति क्विंटल बिक रही है, इससे उन्हें बहुत ज्यादा घाटा हो गया है।

वह बताते हैं कि – सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य का जरूर देती है, पर उसकी गारंटी नहीं होती। यदि ऐसे ही घाटा होता रहा तो हम कैसे अपना और अपने बच्चों का पेट पा लेंगे ।

 

मंदसौर जिले को लहसुन के लिए चुना

मध्यप्रदेश के मालवा के मंदसौर, नीमच, शाजापुर, उज्जैन, नीमच आदि जिलों में बहुतायत से लहसुन का उत्पादन होता है।

प्रदेश में एक जिला-एक उत्पाद योजना चलाई जा रही है। इसमें मंदसौर जिले को लहसुन के लिए चयनित किया गया है।

मंदसौर मंडी की यह सबसे प्रमुख फसल है, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दो महीने पहले ही जिले की समीक्षा बैठक में इसकी बेहतरीन मार्केटिंग के जरिए देश-विदेश में देश-विदेश में निर्यात के प्रयास करने, मंदसौर के लहसुन को ब्रांड बनाने और आधुनिक पद्धति से लहसुन प्र-संस्करण कार्य को बढ़ावा देने के निर्देश दे चुके हैं।

 

दस सालों में लहसुन का उत्पादन दोगुना हुआ

पिछले दस सालों में मध्य प्रदेश में लहसुन का उत्पादन क्षेत्र तकरीबन दोगुने से ज्यादा हो गया है। मध्य प्रदेश के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक 2011-12 में 94945 हेक्टेयर भूमि पर लहसुन की फसल ली जा रही थी जो 2020-21 में बढ़कर 1,93,066 हो गयी।

इसी अवधि में उत्पादन 11.50 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 19.83 लाख मीट्रिक टन हो गया। उत्पादन तो बढ़ा, लेकिन मार्केटिंग की हालत खराब हैं।

 

मध्यप्रदेश में लहसुन का उत्पादन
साल क्षेत्र (हेक्टेयर) उत्पादन (लाख मीट्रिक टन)
2011 – 12 94945 11.5
2012 – 13 96923 11.51
2013 – 14 98661 11.74
2014 – 15 103805 12.4
2015 – 16 105881 12.65
2016 – 17 156880 17.8
2017 – 18 186179 18.82
2018 – 19 178157 18.08
2019 – 20 183714 18.69
2020 – 21 193066 19.83

 

गुणवत्ता में अंतर होने से कीमतों में काफी अंतर

मंदसौर मंडी में लहसुन के एक व्यापारी बताते हैं कि – इस साल 25 से 30 फीसदी फसल खराब हुई है, दाना छोटा पड़ गया है, इस कारण से रेट नहीं मिल पा रहे हैं।

वे कहते हैं कि आज ही ₹100 कुंटल का भाव भी मिला है, और ₹11000 कुंटल का भी। गुणवत्ता में अंतर होने से कीमतों में काफी अंतर आ रहा है।

 

उनका कहना है कि गुजरात से लहसुन का पाउडर बनाने के लिए हर साल बड़ी मांग रहती थी जो इस साल नहीं है, पिछले साल ही उन्होंने ज्यादा खरीदी कर ली थी इसलिए भी लहसुन की मांग नहीं हो पा रही है।

लहसुन में किसानों ने बड़ी लागत लगाकर उत्पादन लिया है, उनका भाव नहीं मिल पाने से वह नुकसान में जा रहे हैं, लेकिन किसानों को भी पता है, कि – हर 4 से 5 साल में एक बार ऐसा दौर जरूर आता है, जबकि भाव गिर जाते हैं।

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