किसानों के लिए अलर्ट
मध्य मार्च तक गेहूं की फसल में पीला रतुआ बीमारी लगने की ज्यादा है संभावना.
गेहूं की कुछ किस्मों में ज्यादा है खतरा. भविष्य में रोगरोधी वैराइटी को बिजाई के लिए प्राथमिकता दें किसान.
कृषि वैज्ञानिकों ने रबी सीजन की मुख्य फसल गेहूं को लेकर किसानों को आगाह किया है.
किसान उन्नत किस्मों, उचित खाद व सिंचाई का इंतजाम करके गेहूं की खेती कर रहे हैं. ताकि अधिक पैदावार हो.
लेकिन लगातार मौसम परिवर्तन के चलते इसकी फसल में कई बीमारियों के आने की संभावना है.
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के कुलपति प्रो. बीआर कांबोज ने कहा कि मौजूदा समय में तापमान में गिरावट के चलते गेहूं की फसल में पीला रतुआ रोग लगने की संभावना है.
इसलिए किसान समय रहते सावधानी बरतें और वैज्ञानिक सलाह से इसका नियंत्रण करें.
कांबोज का कहना है कि अगर समय पर रतुआ बीमारी का नियंत्रण नहीं कर पाए तो गेहूं की पैदावार में गिरावट आ सकती है.
इसलिए किसानों को चाहिए कि वे विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा सिफारिशों को ध्यान में रखकर फफूंदनाशक का प्रयोग करें, ताकि फसल को भी नुकसान न हो और पैदावार भी अच्छी हो.
उन्होंने बताया कि दिसंबर के अंत से मध्य मार्च तक गेहूं की फसल में रतुआ रोग के लक्षण दिखाई देते हैं.
जब तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से 15 डिग्री सेल्सियस तक रहता है.
कांबोज ने कहा कि हालांकि यह रोग मुख्य तौर पर अंबाला व यमुनानगर में ज्यादा देखने को मिलता रहा है, लेकिन कुछ वर्षों से पूरे हरियाणा में इसका असर दिख रहा है.
इस अंतर को पहचानें किसान
अनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग में गेहूं व जौ अनुभाग के अध्यक्ष डॉ. पवन कुमार का कहना है कि कई बार किसान गेहूं की फसल में पीला रतुआ रोग और पौषक तत्वों की कमी के अंतर को नहीं पहचान पाते.
ऐसा होने पर बिना वैज्ञानिक सलाह और जांच के दवाईयों का इस्तेमाल करते हैं. इससे किसानों को आर्थिक नुकसान होने की संभावना बनी रहती है.
पीला रतुआ रोग में पत्तों पर पीले या संतरी रंग की धारियां दिखाई देती हैं.
जब किसान खेत में जाकर रतुआ रोग ग्रस्त पत्तों को अंगुली व अंगुठे के बीच में रगड़ते हैं तो फफूंद के कण अंगुली या अंगुठे में चिपक जाते हैं और हल्दीनुमा दिखाई देते हैं. जबकि पौषक तत्वों की कमी में ऐसा नहीं होता.
रतुआ रोग का क्या है उपचार
प्लांट रोग वैज्ञानिक डॉ. राजेंद्र सिंह बैनीवाल के अनुसार खेत में पीला रतुआ के लक्षण दिखाई देते ही प्रोपकोनाजोल 200 मिलीलीटर को 200 लीटर पानी में मिलाकर तुरंत स्प्रे करें.
यदि बीमारी ज्यादा फैल रही है तो आवश्यकता होने पर इसका दोबारा स्प्रे कर दें.
यह बीमारी अधिकतर एचडी 2967, एचडी 2851, डब्ल्यू एच 711 किस्मों में अधिक आने की संभावना रहती है.
इसलिए अगर किसानों ने इन किस्मों की बिजाई कर रखी है तो विशेष ध्यान रखें. भविष्य में रोगरोधी किस्मों को बिजाई के लिए प्राथमिकता दें.
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