हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ें

किसानों की आय बढ़ाने में मददगार है यह औषधीय पौधा

 

 एक एकड़ में हो जाती है 4 लाख रुपए तक कमाई

 

बढ़ती मांग और कम लागत में अधिक मुनाफा के कारण अब किसान इसकी व्यावसायिक खेती भी करने लगे हैं.

सरकार की तरफ से पारंपरिक फसलों के अलावा नकदी फसलों की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है.

इस कारण भी किसान मुनाफा देने वाली फसलों की तरफ रुख कर रहे हैं.

 

आज के समय में बड़े पैमाने पर किसान औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं. भारत में काफी समय से औषधीय पौधों का उपयोग आयुर्वेद में होता रहा है, लेकिन पहले इसकी खेती सीमित मात्रा में होती थी.

बढ़ती मांग और कम लागत में अधिक मुनाफा के कारण अब किसान इसकी व्यावसायिक खेती भी करने लगे हैं.

सरकार की तरफ से पारंपरिक फसलों के अलावा नकदी फसलों की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है.

इस कारण भी किसान मुनाफा देने वाली फसलों की तरफ रुख कर रहे हैं.

 

यह भी पढ़े : कृषि क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर पर जोर

 

अगर आप भी खेती के क्षेत्र में कुछ अलग करने की सोच रहे हैं तो आपके लिए औषधीय पौधे शानदार विकल्प हैं.

किसान भाई सर्पगंधा की खेती से अपनी आय कई गुना बढ़ा सकते हैं.

इस पौधे की खेती कर रहे किसान बताते हैं कि एक एकड़ में चार लाख रुपए तक कमाई हो जाती है.

दवा निर्माण में इस्तेमाल के कारण मांग हमेशा बनी रहती है, जिससे किसानों को अच्छा दाम मिल जाता है.

 

रेतीली दोमट मिट्टी खेती के लिए सबसे उपयुक्त

सर्पगंधा की खेती करने जा रहे हैं तो आपके लिए हम कुछ जरूरी बातें बताते हैं. इसकी जड़े मिट्टी में गहराई तक जाती है.

यह खुले क्षेत्रों में ज्यादा पनपता है. ठंड के मौसम में इसके पत्ते झड़ जाते हैं लेकिन जैसे ही बसंत का मौसम आता है.

नए पत्ते पनपने लगते हैं. जलभराव वाले क्षेत्रों में इसकी खेती नहीं होती. हालांकि कुछ दिन तक जलभराव हो तो इसकी फसल पर कोई असर नहीं पड़ता है.

कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि 250 से 500 सेंटी मीटर तक वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी प्रकार से उगता और बढ़ता है.

रेतीली दोमट और काली कपासिया मिट्टी इसकी खेती के लिए ज्यादा उपयुक्त है.

 

लगाने के 6 महीने बाद बनने लगते हैं बीज

छोटे-छोटे कुंड बनाकर इसके पौधे लगाए जाते हैं. 6 महीने बाद पौधों में फूल आने लगते हैं, जिन पर फल और बीज बनते हैं.

पौधे में पहली बार आने वाली फूलों को तोड़ दिया जाता है. ऐसा न करने पर फूल में बीज बनने लगते हैं और जड़े कमजोर पड़ जाती हैं.

फूल आने पर फल और बीज बनने के लिए छोड़ दिया जाता है. सप्ताह में दो बार तैयार बीजों को चुना जाता है. यह सिलसिसा पौध उखाड़ने तक जारी रहता है.

 

यह भी पढ़े : ड्रीप और स्प्रिंकलर के लक्ष्य जारी

 

यह भी पढ़े : किसानों को 15 लाख रु की मदद करेगी मोदी सरकार

 

source

 

शेयर करे