अरहर की किस्म बदली तो कम हुई लागत, पहले 180 दिन में पकती थी फसल

150 दिन में ही तैयार हुई फसल : सिंचाई के साथ ही रोग प्रबंधन का भी खर्च बचा

खेती से कम लागत में अच्छा मुनाफा कमाना है तो बदलते समय के साथ अपडेट रहना होगा।

कृषि वैज्ञानिकों और अधिकारियों की सलाह इसमें मददगार साबित हो सकती है।

नई तकनीक व बीज की नई किस्म ने कई किसानों की किस्मत बदली है। लटेरी ब्लॉक के अगरापठार के बद्रीप्रसाद यादव इनमें से एक हैं।

वैज्ञानिकों की सलाह पर उन्होंने अरहर के बीज की किस्म बदलकर न केवल लागत कम की, बल्कि मुनाफा भी बढ़ाया।

पिछले वर्ष फसल अच्छी रहने पर इस बार रकबा ढाई गुना बढ़ा लिया है।

 

प्रत्येक दो साल में नए पौधे लगाते हैं

बद्री के अनुसार दो वर्ष पहले तक असिंचित क्षेत्र में 4-5 एकड़ में अरहर की वर्षों पुरानी किस्म की बोवनी करते थे।

करीब 180 दिन में तैयार होती थी। तब तक खेत की नमी चली जाती थी। रोग-कीट के चलते उत्पादन प्रभावित होता था। इससे लागत ज्यादा लगती थी।

पिछले वर्ष अरहर की पूसा-16 किसम की बोवनी की तो फसल 150 दिन में तैयार हो गई। पिछले वर्ष 6 एकड़ में अरहर की फसल लगाई थी।

इस बार 16 एकड़ में अरहर की बोवनी की है। कृषि उप संचालक केएस खपेड़िया के अनुसार इस बार कई दूसरे किसानों ने भी अरहर की किस्म बदली है।

 

पुरानी किस्म

बोवनी लागत: 2000 प्रति रूपये  एकड़

सिंचाई: 2000 रूपये प्रति एकड़

रोग-कीट प्रबंधन: 1000 रूपये /एकड़

कुल लागत: 5000 रूपये /एकड़

उत्पादन: सात क्विंटल प्रति एकड़

कीमत: 8000 प्रति क्विंटल

 

पूसा-16 में यह हुआ

बोवनी लागत:2000 प्रति रूपये  एकड़

सिंचाई: कुछ नहीं

रोग-कीट प्रबंधन: कुछ नहीं

कुल लागत:2000 प्रति रूपये  एकड़

उत्पादन: 9 क्विंटल प्रति एकड़

कीमत: 7500 प्रति क्विंटल

(एक महीने पहले फसल तैयार होने से चना जैसी दूसरीफसल भी लगाई जा सकती है)

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