इस वर्ष सरसों की बुआई अधिक वर्षा के कारण उच्च आर्द्रता में की गई है। जिसके चलते सरसों की फसल में जड़ गलन, पत्तियों के नीचे सफेद फफूंद एवं उखेड़ा जैसी समस्या आ रही है।
जिसको देखते हुए कृषि विश्वविद्यालय ने किसानों के लिए महत्वपूर्ण सलाह जारी की है।
तिलहन फसलों में सरसों रबी सीजन की एक महत्वपूर्ण फसल है और किसानों की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाती है।
जिसको देखते हुए चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार ने सरसों की खेती करने वाले किसानों के लिए महत्वपूर्ण सलाह जारी है।
विश्वविद्यालय के मुताबिक इस वर्ष अत्यधिक वर्षा के कारण, इस फसल की बुआई उच्च आर्द्रता और कम तैयार भूमि में हुई है, यह स्थिति इस फसल की प्रकृति के विपरीत है, लेकिन किसानों के पास देरी से बुआई से बचने का कोई विकल्प नहीं था।
जिसके चलते सरसों की फसल में विभिन्न कीट एवं रोग लगने की समस्या देखी जा रही है।
- कृषि विश्वविद्यालय के मुताबिक सरसों में जड़ गलन रोग लगने की संभावना है जिससे पौधों के मुरझाने और मर जाने की समस्या आती है।
- पत्ती के नीचे वाली सतह पर सफेद रंग की फफूंद आ जाना एवं जिससे बाद में पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं और पीली होकर सूख जाती है।
- वहीं पहली सिंचाईं के बाद उखेड़ा जैसी समस्या का उत्पन्न होना।
पेंटेड बग या चितकबरा कीट का नियंत्रण
कृषि विश्वविद्यालय के मुताबिक सरसों की फसल में शुरुआती अवस्था में आमतौर पर पेंटेड बग (चितकबरा कीट) की समस्या उत्पन्न होती थी, जिससे पत्तियों पर सफेद धब्बे पड़ जाते थे।
इस कीट को नियंत्रित करने के लिए 200 मिलीलीटर मैलाथियान 50 ई.सी. को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव किया जाता रहा है।
हालांकि इस वर्ष कम तापमान के कारण ऐसी कोई समस्या नहीं है। फिर भी किसान अभी भी अपनी पुरानी पद्धति के अनुसार कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं।
इसलिए किसानों को सलाह दी जाती है कि वे इस अवस्था में कीटनाशकों का प्रयोग ना करें।
सरसों में जड़ गलन रोग का नियंत्रण
जड़ों का गलना दो से तीन फफूंद के सामान्य समावेश (फ्यूजेरियम, राइजोक्टोनिया और स्क्लेरोटियम) के कारण होता है।
जिसमें बिजाई के 10 से 15 दिन में बीजपती अवस्था पर पौधे सूख या मुरझा जाते हैं व जड़ वाले हिस्से में सफेद रंग की फफूंद दिखाई देती है उस अवस्था में कॉर्बेंडाजिम का 0.1% घोल बनाकर छिड़काव करें।
अधिक मात्रा में पानी का प्रयोग करें और छिड़काव के घोल से पौधों और मिट्टी की पूरी तरह तर कर लें। यदि आवश्यक हो तो 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव को दोहराएँ।
सरसों की पत्तियों में सफेद रंग की फफूंद आना
पत्ती के नीचे वाली सतह पर सफेद रंग की फफूंद आ जाती है। जिससे बाद में पत्तियाँ पीली होकर सूखने लगती है ये सरसों में फूलिया रोग के लक्षण है।
उस अवस्था में घबराने की जरूरत नहीं है। अगर ऐसे पौधे ज्यादा हैं तो मैंकोजेब (डाइथेन एम- 45) या मेटलैक्सिल 4% + मैंकोजेब 64% नामक दवाई का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव कर दें।
यदि जड़ गलन और पत्तियों पर धब्बे एक साथ दिखाई दे, तो कॉर्बेंडाज़िम 0.1% और मैंकोजेब 0.25% की दर से टैंक मिश्रण के रूप में डालें। जरूरत पड़ने पर 15 दिन बाद छिड़काव को दोहरायें।
सरसों की पत्तियों का मुरझाना
सिंचाई के बाद सरसों की पत्तियों का मुरझाना और पौधे की शक्ति में कमी मुख्यतः लंबे समय तक पानी जमा रहने के कारण होती है।
इसलिए किसानों को इस रोग से बचने के लिए बहुत हल्की सिंचाई करने की सलाह दी जाती है।
जहाँ नमी की स्थिति बहुत अधिक हो वहाँ किसानों को पहली सिंचाई 10 दिन की देरी से करने की सलाह दी गई है।
जिन खेतों में पहली सिंचाई हो चुकी है और पौधों में पत्तियों के मुरझाने और पौध शक्ति में कमी के लक्षण दिखाई दे रहे हैं वहां कार्बेंडाजिम 50 WP प्रतिशत 1 ग्राम की दर से और स्टेप्टोसाइक्लीन 0.3 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव करें।
जिन खेतों में पौधे ज्यादा मर गए हैं वहाँ 10 नवम्बर तक दोबारा बुआई की जा सकती है इसके लिए कृषि विश्वविद्यालय में बीज उपलब्ध है।
बीज को हमेशा 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से कॉर्बेंडाजिम से उपचारित करें।
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