लाल रंग की मूली की नई किस्म “काशी लोहित” की जानकारी

काशी लोहित लाल रंग की मूली की एक किस्म है जिसे भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित किया गया है। इस किस्म की जड़ की बाहरी त्वचा लाल और जड़ का आंतरिक भाग सफेद होता है।

आज के समय में रंग बिरंगे खाद्य उत्पादों के सेवन से मिलने वाले स्वास्थ्य लाभ के चलते बाजार में इनकी मांग बढ़ी है।

ऐसे में कृषि संस्थानों के द्वारा भी सब्जियों की रंगीन किस्मों का विकास किया जा रहा है। इस क्रम में भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी द्वारा लाल रंग की एक नई किस्म काशी लोहित विकसित की गई है।

इसमें जड़ की बाहरी त्वचा लाल और जड़ का आंतरिक भाग सफेद होता है।

इस प्रजाति को वर्ष 2018 में जारी किया गया था और वर्ष 2019 में केंद्रीय बीज समिति द्वारा उत्तरप्रदेश राज्य के लिए अधिसूचित किया गया है।

 

मूली किस्म काशी लोहित की विशेषताएँ

काशी लोहित मूली की एक उष्णकटिबंधीय प्रकार की किस्म है, जिसमें हरे रंग की पत्तियाँ एवं जड़ें गुलाबी रंग की होती है।

पत्तियों की आकृति वीणाकर एवं जड़ लंबी एवं पतली और मध्य आकार की आकर्षक एवं चमकदार लाल होती है।

काशी लोहित की जड़ों में एंथोसायनिन (4.0-4.5 मिलीग्राम/ 100 ग्राम), एस्कॉर्बिक एसिड की मात्रा 20-23 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम होती है जो सफेद जड़ वाली किस्मों की तुलना में लगभग 32 प्रतिशत अधिक है।

कुल फेनोलिक मात्रा (28-32 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम) और प्रति-ऑक्सीकारक क्षमता (3.30-3.55) माइक्रोनमोल प्रति ग्राम जो सफेद जड़ वाली किस्मों की तुलना में लगभग 100 प्रतिशत अधिक है।

लाल मूली को पकाने से सक्रिय एंथोसायनिन की मात्रा कम हो जाती है इसलिए यह किस्म कम से कम छिलने वाली, कच्ची मूली खाने और सलाद के लिए उपयुक्त है।

लाल मूली सलाद को न केवल आकर्षक और स्वादिष्ट बनाती है बल्कि पौष्टिक भी बनाती है।

 

काशी लोहित किस्म की खेती कैसे करें?

जड़ वाली फसल होने के कारण, इसके लिए ऐसी मिट्टी की आवश्यकता होती है जो ढीली और भुरभुरी हो, जिसका पीएच मान 6.0 से 7.0 और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर हो।

उचित जल निकासी सुविधा वाली बलुई दोमट मिट्टी, खेती और अगेती कटाई के लिए सबसे उपयुक्त है।

अनुशंसित बीज दर 6 से 8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, मध्य सितंबर से मध्य दिसंबर तक सर्दियों की बुआई के लिए उपयुक्त है।

बीजों की बुआई क्रमशः 6 से 8 से.मी. और 45-50 से.मी. की दूरी पर एक मेड़ पर दोहरी पंक्तियों में करना उपयुक्त है।

पौधों के बीच 4-5 से.मी. की उचित दूरी के लिए थिनिंग की जानी चाहिए। इसके अलावा जड़ों के उचित विकास के लिए बुआई के 20 से 25 दिनों के बाद गुड़ाई और मिट्टी चढ़ानी चाहिए।

उर्वरक में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम की अनुशंसित पोषक तत्व आवश्यकता 60-40-40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, इसे अंतिम जुताई के समय मृदा में मिला देना चाहिए।

 

कीट एवं रोगों से बचाव

सर्दियों के मौसम में कीटों और रोगों का कोई बड़ा प्रकोप नहीं देखा गया है।

इसके अलावा बसंत के मौसम की शुरुआत के दौरान माहूँ को जरूरत आधारित कीटनाशकों जैसे कि साइंट्रानिलिप्रोल 10 ओ.डी. 600 मि.ली. प्रति हेक्टेयर या एजेडिरैक्टिन (5 प्रतिशत) 400 मि.ली. प्रति हेक्टेयर या डाइमेथोएट 30 ई.सी. 700 मि.ली. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।

 

काशी लोहित का उत्पादन

बुआई के लगभग 40 से 45 दिनों में जड़ें खाने योग्य हो जाती है। इसकी जड़ों की लंबाई 21 से 24 सेमी, जड़ का वजन 140 से 150 ग्राम, जड़ का व्यास 2.75 से 3.0 सेमी, पौधे का वजन 225-250 ग्राम तथा उपज क्षमता 600 से 700 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

यह किस्म खुज्जापन (पीथिनेस) के प्रति सहिष्णु है इसलिए देर से उखड़कर भी विपणन किया जा सकता है।

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