गर्मी में पशुओं के हरे चारे की कमी से बचने के लिए, किसान मार्च में ही करे इन 3 घासों की खेती ,गर्मियों में पशुओं के लिए हरे चारे की कमी एक बड़ी समस्या बन जाती है, जिससे पशुपालकों को काफी परेशानी होती है। हरे चारे की कमी से न केवल पशुओं की सेहत पर असर पड़ता है, बल्कि दूध उत्पादन में भी कमी आती है। इस समस्या से निपटने के लिए किसान मार्च महीने में कुछ विशेष हरे चारे की फसलों की खेती कर सकते हैं। इन फसलों के जरिए वे गर्मी के मौसम में हरे चारे की कमी से बच सकते हैं और अपने पशुओं को पौष्टिक आहार प्रदान कर सकते हैं। आइए जानते हैं तीन ऐसी फसलों के बारे में, जिनकी खेती से किसान गर्मी में चारे की कमी से बच सकते हैं।
1. हाथी घास (नेपियर घास) – गर्मी में बेहतरीन चारा
नेपियर घास, जिसे हाथी घास के नाम से भी जाना जाता है, गर्मी में पशुओं के लिए एक बेहतरीन चारा साबित होती है। यह घास पौष्टिक होने के साथ-साथ दूध उत्पादन को भी बढ़ाने में मदद करती है। इसका सेवन पशुओं के स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। इस घास को उगाने के लिए किसान किसी भी मौसम में बुआई कर सकते हैं, लेकिन मार्च महीने में इसकी बुआई करने से गर्मी में अच्छे परिणाम मिल सकते हैं।
कैसे करें नेपियर घास की खेती :
नेपियर घास की खेती के लिए इसके डंठल (नेपियर स्टिक) का उपयोग किया जाता है। इन्हें खेत में डेढ़ से दो फीट की दूरी पर रोपा जाता है। एक बीघा भूमि में करीब 8,000 डंठल की आवश्यकता होती है। इसकी बुआई का सही समय फरवरी से मार्च और जुलाई से अक्टूबर तक है। इसके लिए बलुई और मटियार दोमट मिट्टी आदर्श होती है, जिसमें जल निकासी अच्छी हो। ध्यान रखें कि नेपियर घास के बीज नहीं होते हैं, इसलिए इसका प्रचार-प्रसार डंठल से ही किया जाता है।
2. लोबिया – तेजी से बढ़ने वाला चारा
लोबिया एक ऐसी चारा फसल है, जो तेजी से बढ़ती है और पशुओं के लिए अत्यधिक पौष्टिक होती है। यह चारा फसल पशुओं के दूध उत्पादन को बढ़ाने के साथ-साथ उनकी पाचन क्षमता को भी बेहतर बनाती है। लोबिया की खेती किसान मार्च से अप्रैल के दौरान कर सकते हैं, जिससे गर्मी के दौरान हरे चारे की कमी को पूरा किया जा सकता है।
कैसे करें लोबिया की खेती :
लोबिया की बुआई के लिए दोमट, बलुई और हल्की काली मिट्टी उपयुक्त रहती है। एक हेक्टेयर में 30 से 35 किलो बीज की आवश्यकता होती है। बीज की बुआई 25-30 सेंटीमीटर की दूरी पर की जानी चाहिए। बुवाई के समय खेत में 20 किलो नाइट्रोजन और 60 किलो फास्फोरस का उपयोग करना चाहिए। लोबिया की फसल बुवाई के 85 से 90 दिनों बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
3. रिजका (लूसर्न) – चारा फसलों की रानी
रिजका (लूसर्न) को “चारा फसलों की रानी” कहा जाता है। यह एक पौष्टिक चारा फसल है, जो मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में उगाई जाती है। रिजका का सेवन पशुओं के पाचन तंत्र को मजबूत करता है और दूध उत्पादन में वृद्धि करता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि एक बार बुआई करने के बाद किसान कई बार हरा चारा काट सकते हैं।
कैसे करें रिजका की खेती :
रिजका की खेती के लिए 5.7 या उससे अधिक पीएच मान वाली उर्वरक भूमि सर्वोत्तम होती है। पहले खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए और फिर 2-3 बार हैरो चलाकर खेत को समतल करना चाहिए। रिजका की बुआई 15-20 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में की जाती है। इसके लिए 25-30 किलो नाइट्रोजन और 50-60 किलो फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। बुवाई के 55-60 दिन बाद इसकी पहली कटाई की जा सकती है, और फिर किसान इसे कई बार काट सकते हैं।
गर्मियों में पशुओं के लिए हरा चारा एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है, जिसे पूरा करने के लिए किसान सही समय पर उपयुक्त फसलों की खेती कर सकते हैं। हाथी घास, लोबिया और रिजका जैसी फसलों की खेती से किसान न केवल गर्मी में हरे चारे की कमी से बच सकते हैं, बल्कि पशुओं को पौष्टिक चारा भी प्रदान कर सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप पशुओं का स्वास्थ्य बेहतर होगा और दूध उत्पादन में भी वृद्धि होगी। इस तरह से किसान अपनी कमाई को बढ़ा सकते हैं और गर्मी के मौसम में होने वाली चारे की कमी से निपट सकते हैं।