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एलोवेरा की खेती ने बदली इस छोटे से गांव के लोगों की किस्मत

 

एलोवेरा की खेती

 

बिरसा उरावं ने बताया के कि उन्होंने लगभग तीन साल पहले एलोवेरा की खेती शुरू की थी.

इसके अच्छे रिटर्न देने के बाद, मैंने अतिरिक्त भूमि पर और पौधे लगाए, और अब तीन गुना अधिक कमाता हूं.

 

झारखंड के एलोवेरा विलेज कहे जाने वाले देवरी गांव के ग्रामीणों की जिंदगी में बदलाव आ रहा है. उनकी कमाई बढ़ी है.

अब गांव के लोग एलोवेरा की खेती पर विशेष तौर से ध्यान दे रहे हैं.

गांव में कल तक जो किसान सिर्फ धान और सब्जियों की खेती करते थे वो किसान भी अब एलोवेरा की खेती की तरफ ध्यान देने लगे हैं.

यह उनके लिए कैश क्रॉप की तरह है जिससे उन्हें रोजाना कमाई हो रही है.

मन की बात कार्यक्रम में पीएएम मोदी भी इस गांव का जिक्र कर चुके हैं. साथ ही इस गांव की तारीफ भी कर चुके हैं.

 

बीएयू ने किया था चयन

यह बदलाव गांव में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा वित्त पोषित आदिवासी उप योजना के तहत एलोवेरा की खेती के लिए देवरी का चयन करने के बाद हुआ.

 

विशेषज्ञ यह पता लगाना चाहते थे कि क्या वे औषधीय पौधों के माध्यम से कुछ किसानों की आय को दोगुना करने में मदद कर सकते हैं.

यह राज्य के लिए कुछ असामान्य था, क्योंकि अधिकांश किसान अपने खेतों में एकल पारंपरिक खेती करते थे.

 

पारंपरिक खेती छोड़ एलोवेरा की खेती कर रहे हैं ग्रामीण

देवरी गांव के भगमणि तिर्की, उनके पति बिरसा उरांव और गांव के अन्य ग्रामीण अपने खेतों में पारंपरिक फसलों की खेती कर अपना जीवनयापन कर रहे थे.

फिर 2018 के बाद उनकी आमदनी बढ़ी और उनकी जिंदगी बदल गई.

क्षेत्र की कृषि-जलवायु परिस्थितियां एलोवेरा के लिए काफी उपयुक्त थीं, और जल्द ही पौधे ने चुने हुए ग्रामीणों को अच्छा लाभ देना शुरू कर दिया.

प्रोत्साहित होकर, अन्य ग्रामीणों ने एलोवेरा की खेती करने का फैसला किया.

 

तीन गुना बढ़ी कमाई

अब देवरी ‘एलोवेरा विलेज’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया है. यहां, पौधे लगभग हर जगह उगते हैं.

घर के पास खाली जमीन से लेकर खेत और गमले में जहां भी जगह मिलती है लोग इसकी खेती करते हैं.

यहां तक किसान अब दूसरे फसलों खेती छोड़ एलोवेरा ही अपने खेतों में लगा रहे हैं.

द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक गांव के बिरसा उरावं ने बताया के कि उन्होंने लगभग तीन साल पहले एलोवेरा की खेती शुरू की थी.

इसके अच्छे रिटर्न देने के बाद, मैंने अतिरिक्त भूमि पर और पौधे लगाए, और अब तीन गुना अधिक कमाता हूं.

उन्होंने कहा कि अन्य फसलों की तुलना में प्रारंभिक निवेश भी बहुत कम है क्योंकि इसे एक बार लगाने के बाद अगले चार वर्षों तक नियमित उपज प्राप्त की जा सकती है.

 

सिंचाई की है समस्या

बिरसा उरांव कहते हैं कि गोबर की खाद को छोड़कर खेती के लिए उर्वरकों और कीटनाशकों की आवश्यकता नहीं होती है.

उरांव की पत्नी भगमणि तिर्की का कहना है कि फूलगोभी, टमाटर और मटर जैसी अन्य पारंपरिक फसलों के विपरीत, एलोवेरा को अतिरिक्त मजदूरों की आवश्यकता नहीं होती है.

भगमणि तिर्की ने कहा कि गांव में गर्मियों में सिंचाई की समस्या आता है. अगर हमें क्षेत्र में उचित सिंचाई सुविधा दी जाए, तो हम और भी अधिक पैसा कमा सकते हैं क्योंकि गर्मियों के दौरान एलोवेरा की मांग बढ़ जाती है.

एलोवेरा की मांग बाजार में इतनी अधिक है कि किसान इसे पूरा नहीं कर पा रहे हैं.

कोविड के चरम के दौरान जब सभी उत्पादों की मांग में गिरावट देखी गई, तो एलोवेरा सैनिटाइज़र, हैंड वॉश और इम्युनिटी बूस्टर बनाने में इसके उपयोग के कारण अप्रभावित रहा.

 

मुखिया मंजू कच्छप ने दी थी अनुमति

गांव मुखिया मंजू कच्छप याद करते हैं कि कैसे बीएयू के डॉ कौशल कुमार ने आईसीएआर की आदिवासी उप योजना के तहत गांव में परियोजना को लागू करने की इच्छा व्यक्त करते हुए उनसे संपर्क किया था.

उन्होंने आसानी से इसकी अनुमति दी क्योंकि वह चाहती थी कि ग्रामीण अधिक कमाएं.

रांची में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में वानिकी संकाय में वन उत्पाद और उपयोगिता विभाग के प्रमुख डॉ कौशल कुमार कहते हैं कि उन्होंने परियोजना के लिए देवरी को चुना क्योंकि आदिवासी बहुल गांव नई तकनीकों को अपनाने के लिए तैयार था.

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