पशुओं के इलाज के लिए आयुर्वेद, होम्योपैथी और पारंपरिक चिकित्सा पद्धति है आवश्यक

आज के समय में इंसानों के साथ-साथ पशुओं में नए नए रोगों और महामारियों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है।

जिसको देखते हुए सरकार द्वारा पुरानी पारंपरिक, आयुर्वेदिक और होम्योपैथी जैसी इलाज की पद्धतियों को बढ़ावा दिया जा रहा है।

इस क्रम में मध्य प्रदेश के होटल पलाश रेसीडेंसी भोपाल में पशुओं की वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है।

कार्यशाला में पूर्व मंत्री उत्तर प्रदेश महेंद्र सिंह, दीनदयाल शोध संस्थान चित्रकूट के अभय महाजन, अध्यक्ष, वेटनरी काउंसिल ऑफ इंडिया डॉ. उमेशचंद शर्मा, संचालक, पशुपालन एवं डेयरी डॉ. पी.एस.पटेल आदि उपस्थित थे।

कार्यशाला में देश के विभिन्न राज्यों के 13 विषय विशेषज्ञ और लगभग 100 से अधिक विभागीय अधिकारी शामिल हुए।

 

पशु इलाज के लिए आवश्यक है वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति

इस अवसर पर पशु पालन एवं डेयरी राज्यमंत्री, स्वतंत्र प्रभार लखन पटेल ने कहा है कि पशुओं की बीमारियों के समुचित इलाज के लिए वैकल्पिक पशु चिकित्सा पद्धतियों का उपयोग भी आवश्यक है।

वर्तमान में आधुनिक चिकित्सा पद्धति के कारण मनुष्यों एवं पशुओं में जीवाणु रोधी दवाइयां के प्रति प्रतिरोधकता का बढ़ना महामारी का रूप ले रहा है, जो एक भयानक वैश्विक खतरा बनता जा रहा है।

आधुनिक चिकित्सा पद्धति से एवं एंटीबॉयोटिक के दुरुपयोग से इसका दुष्प्रभाव मनुष्य एवं पशुओं में देखा जा रहा है, जिसके कारण एएमआर (एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस) की वैश्विक समस्या उत्पन्न हो गई है।

अल्टरनेट वेटरिनरी प्रैक्टिस जैसे आयुर्वेद, होम्योपैथी, पारंपरिक चिकित्सा, यूनानी चिकित्सा इत्यादि का प्रयोग अत्यंत आवश्यक है, जिससे कम खर्च पर आसानी से पशुओं की बिना किसी दुष्प्रभाव के चिकित्सा की जा सकती है।

पशु पालन राज्यमंत्री पटेल ने कहा कि भारत में आदिकाल से पारंपरिक एवं वैकल्पिक पशु चिकित्सा पद्धति का उपयोग किया जाता था, जिसे पुनः पशुओं की चिकित्सा में बढ़ावा देने एवं जन-जन तक पहुंचाने के लिए कार्यशाला आयोजित की गई है।

उन्होंने आशा व्यक्त की कि दो दिवसीय इस कार्यशाला में विषय विशेषज्ञों के विचार मंथन से पशु चिकित्सा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुझाव आयेंगे।

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