बैंगन की खेती
बैंगन की खेती करके पूरे साल फसल प्राप्त कर अच्छे आमदनी हो सकती है इससे लाखों रुपए कमाए जा सकते हैं।
विस्तार पूर्वक बैंगन की खेती के बारे में जानिए…
चमकीले और खूबसूरत नजर आने वाले बैंगन की खेती समूचे देश में पूरे साल कभी भी की जा सकती है।
रबी, खरीफ और गर्मी तीनों मौसम में ऐसे उगाया जा सकता है। अधिकतर लोगों में भय या भ्रम है कि बैंगन सेहत के लिए नुकसान देने वाला है।
इससे नाक-भौं सिकोड़ने वालों ने इसे बे गुण का नाम दे रखा है।
बैंगन की खेती के बारे में जानिए
बैंगन की खेती हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन इस फसल के लिए हल्की भारी और दोमट मिट्टी के लिए काफी मुफीद मानी जाती हैं।
इसके लिए खेत तैयार करने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से की जाती है।
जिसके बाद जुताई कल्टीवेटर से करना बेहतर होता है। हर जुताई के बाद पता चला कर मिट्टी को भुरभुरी बना दिया जाता है।
इसके बाद निराई गुड़ाई और सिंचाई के लिए खेतों को क्यारियों में बांट दिया जाता है।
कब बोंए बीज
लंबा बैंगन, लंबा हरा, सफेद काला, गोरा बैंगन की मुख्य प्रजातियां हैं। जिस इलाके में जिन प्रजातियों के बैंगन की मांग होती है।
उसके मुताबिक इसकी खेती की जाती है। इसकी खेती के प्रति हेक्टेयर 500 से 700 ग्राम बीजों की जरूरत पड़ती है।
बैंगन के बीजों को नर्सरी में लगाकर पहले पौधे तैयार कर लिए जाते हैं।
इसकी खरीफ फसल के लिए मार्च में, रबी की फसल के लिए जून में और गर्मी की फसल के लिए नवंबर में बीजों को बोया जाता है।
4-5 हफ्तों में तैयार होते हैं पौधे
नर्सरी में 4 से 5 हफ्ते मैं तैयार होने वाले पौधों को खेत में रोपा जाता है।
कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर और पौधों से पौधों की दूरी 45 सेंटीमीटर होने चाहिए।
बैंगन खेत खेत समय-समय पर निराईगुड़ाई करना जरूरी है। खेत में नकी कमी होने पर सिंचाई कर देना चाहिए।
बैंगन के पौधे लंबे समय तक फल देते हैं इसलिए खाद और उर्वरक की काफी जरूरत होती है।
कीट एवं रोग नियंत्रण इस प्रकार करें
बैंगन की फसल को सबसे ज्यादा नुकसान चल छेदक और तना छेदक कीटों से होता है।
इनसे बचाव के लिए किसान जरूरत से ज्यादा कैमिकल कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं।
इससे मित्र कीट मारे जाते हैं और नुकसान पहुंचाने वाले कीटों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाने से वे मरते नहीं हैं।
बैंगन के पौधे को पौधा संरक्षण की सामेकित प्रबंध तकनीक से बचाया जा सकता है।
पौध गलन, पौधों में बौनापन, पत्तों में पीलापन, पत्तों का झड़ना, पत्तों का छोटा आदि बैंगन के मुख्य रोग हैं।
इन्हें जैविक तकनीक से दूर किया जा सकता है। फल छेदक, तना छेदक और किसी भी तरह के कीटों से बचाव के लिए देसी इलाज यूरिन जैनसिस (डीपीएल 8, डेलफिन) एनपीबी 4 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर नेम आधारित कीटनाशकों का इस्तेमाल करके बैंगन के पौधे और फसल को बचाया जा सकता है।
वहीं बाभेरिया बासियाना फफूंद आधारित कीटनाशक है। इसे 4 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर इस्तेमाल करना होता है।
लाल मकड़ी से बचाने के लिए सल्फर का इस्तेमाल बेहतर होता है।
यह है मुनाफे का गणित
नई तकनीक के जरिए उन्नत बैंगन की खेती करने से प्रति हेक्टेयर 400 क्विंटल की उपज होती है।
थोक बाजार में इसकी कीमत 1000 से 1200 रुपए प्रति क्विंटल है। इस हिसाब से 1 हेक्टेयर में बैंगन की खेती करने पर कम से कम 4 लाख रुपए कमाए जा सकते हैं।
प्रति हैक्टर बैंगन की खेती की लागत डेढ़ लाख रुपए के करीब होती है। इस लिहाज से प्रति हेक्टेयर 3 लाख की आमदनी हो जाती हैं।
source : choupalsamachar
यह भी पढ़े : गेहूं की कटाई के बाद 60 से 65 दिन में आने वाली ग्रीष्मकालीन उड़द की खेती
यह भी पढ़े : फसल बीमा योजना की त्रुटियों के लिए बैंक जिम्मेदार होंगे
शेयर करे