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गेहूं की कटाई के बाद 60 से 65 दिन में आने वाली ग्रीष्मकालीन उड़द की खेती

 

उड़द की खेती

 

ग्रीष्म काल में खेत खाली रहते हैं। खरीफ की फसल के पहले एक फसल और ली जा सकती है।

गेहूं की कटाई के बाद कम अवधि की फसल लेकर लाभ कमाया जा सकता है।

इस दौरान ग्रीष्मकालीन उड़द की खेती करके अच्छी आमदनी हो सकती है।

 

उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश के सिंचित क्षेत्र में ग्रीष्म काल के दौरान अल्पावधि (60-65 दिन) वाली दलहनी फसल ग्रीष्मकालीन उड़द की खेती की जा सकती है।

इससे मृदा संरक्षण/उर्वरता को भी बढ़ावा दिया जा सकता है।

किसानों के लिए अच्छी बात यह है कि उड़द की फसल में ग्रीष्म काल के दौरान पीत चितकबरा रोग कम लगता है।

ग्रीष्म कालीन उड़द की उन्नत एवं वैज्ञानिक तकनीक से होने वाली खेती के विषय में जानिए :-

 

ग्रीष्मकालीन उड़द की खेती के लिए उड़द की उन्नत प्रजातियां

  • 1. चितकबरा रोग प्रतिरोधी किस्में- वी.बी.जी-04-008, वी.बी.एन-6, माश-114, को.-06.माश-479, पंत उर्द-31, आई.पी.यू-02-43, वाबन-1, ए.डी.टी-4 एवं5, एल.बी.जी-20 आदि।
  • 2. खरीफ सीजन की किस्मेें- के.यू-309, के.यू-99-21, मधुरा मिनीमु-217, ए.के.यू-15 आदि।
  • 3. रबी सीजन की किस्मे- के.यू-301, ए.के.यू-4, टी.यू.-94-2, आजाद उर्द-1, मास-414, एल.बी.जी-402, शेखर-2 आदि।
  • 4. अन्य शीघ्र पकने वाली कुछ किस्में- प्रसाद , पंत उर्द-40 तथा वी.बी.एन-5

 

बीजशोधन

मृदा एवं बीज जनित रोगों से बचाव के लिए 2 ग्राम थायरम एवं 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम मिश्रण (2:1) प्रति कि0ग्रा0 बीज अथवा कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्रा0 प्रति कि0ग्राम बीज की दर से शोधित कर लें।

बीजशोधन कल्चर से उपचारित करने के 2-3 दिन पूर्व करना चाहिए।

 

बीजोपचार

राइजोबियम कल्चर का एक पैकेट (250 ग्रा0) प्रति 10 कि0ग्रा0 बीज के लिए पर्याप्त होता है।

50 ग्राम गुड़ या शक्कर को 1/2 लीटर जल में घोलकर उबालें व ठण्डा कर लें।

ठण्डा हो जाने पर ही इस घोल में एक पैकेट राइजोबियम कल्चर मिला लें।

 

बाल्टी में 10 कि0ग्रा0 बीज डाल कर अच्छी तरह से मिला लें ताकि कल्चर के लेप सभी बीजों पर चिपक जाएं उपचारित बीजों को 8-10 घंटे तक छाया में फेला देते हैं।

उपचारित बीज को धूप में नहीं सुखाना चाहिए। बीज उपचार दोपहर में करें ताकि शाम को अथवा दूसरे दिन बुआई की जा सके।

 

कवकनाशी या कीटनाशी आदि का प्रयोग करने पर राइजोबियम कल्चर की दुगनी मात्रा का प्रयोग करना चाहिए तथा बीजोपचार कवकनाशी-कीटनाशी एवं राइजोबियम कल्चर के क्रम में ही करना चाहिए।

 

बुवाई की विधि

बुवाई पंक्तियों में ही सीड डिरल या देशी हल के पीछे नाई या चोंगा बॉंधकर करते हैं।

ग्रीष्म ऋतु में अधिक तापक्रम के कारण फसल वृद्धि कम होती है।

अतः बुवाई कम दूरी पर (पंक्ति से पंक्ति 20-25 से0मी0 तथा पौधा से पौधा 6-8 से0मी0) करना चाहिए तथा अधिक बीजदर का प्रयोग करना चाहिए।

 

उर्वरक

एकल फसल के लिए 10 कि0ग्रा0 नत्रजन, 30 कि0ग्रा0 फासफोरस एवं 20 कि0ग्रा0 सल्फर, प्रति हे0 की दर से अन्तिम जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए।

अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन से सल्फर के प्रयोग से 11% अधिक उपज प्राप्त हुई है।

 

नाइट्रोजन एवं फासफोरस की पूर्ति के लिए 75 कि0ग्रा डी0ए0पी0 तथा सल्फर की पूर्ति के लिए 100 कि0ग्रा0 जिप्सम प्रति है0 प्रयोग करना चाहिए।

उर्वरकों को अन्तिम जुताई के समय ही बीज से 2-3 से0मी0 की गहराई व 3-4 से0मी0 साइड पर ही प्रयोग करना चाहिए।

 

सिंचाई

जायद के सीजन में उड़द की खेती के लिए 3 से 4 सिंचाई की जरूरत पड़ती है।

इसके लिए पलेवा करने के बाद बुवाई की जाती है फिर 2 से 3 सिंचाई 15 से 20 दिन के अंतराल पर करना चाहिए।

वहीं किसान को इस बात का भी ध्यान जरूर रखना चाहिए कि फूल बनते समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।

 

खरपतवार नियंत्रण

बुआई के 25 से 30 दिन बाद तक खरपतवार फसल को अत्यधिक नुकासान पहुॅचाते हैं यदि खेत में खरपतवार अधिक हैं तो 20-25 दिन बाद एक निराई कर देना चाहिए।

जिन खेतों में खरपतवार गम्भीर समस्या हों वहॉं पर बुआई से एक दो दिन पश्चात पेन्डीमेथलीन की 0.75 किग्रा0 सक्रिय मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टेयर में छिड़काव करना लाभप्रद रहता है।

 

पौध रक्षा

ग्रीष्मकालीन उड़द की खेती में थ्रिप्स व श्वेत मक्खी का प्रकोप ज्यादा होता है।

इन्हें मारने के लिए मोनोक्रोटोफास 0.04 प्रतिशत व मेटासिस्टाक्स 0.05 प्रतिशत (2 एम0एल0 1 लीटर) पानी में घोल का छिड़काव करें।

source : choupalsamachar

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