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पाले से सड़ने-गलने लगती हैं फसलें, किसान हो जाएं सतर्क

ठंड के मौसम में पाला गिरने के कारण किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है.

पाले से खेत में लगी फसल पर जल के कण ठोस बर्फ में तब्दील हो जाते हैं.

इससे बचाव के कई उपाय हैं, जिससे नुकसान से बचा जा सकता है.

भारत में 6 तरह के मौसम पाए जाते हैं. हर दो से तीन महीने मे मौसम बदलते रहते हैं.

इस बदलते मौसम का सबसे ज्यादा प्रभाव किसानों पर पड़ता है.

सलिए किसान को हर मौसम में अपनी फसलों के बचाव में अलग-अलग पैंतरा अजमाना पड़ता है.

देश मे ठंड का मौसम है. इस मौसम में पाला पड़ने की काफी संभावना बढ़ जाती है, इससे फसलों को नुकसान होने की संभावना बनी रहती है.

ऐसे में किसानों को कुछ सावधानियां  बरतने की जरूरत है.

 

बचाव के आसान तरीके

हमारे वातावरण में लगातार परिवर्तन देखा जा रहा है. ऐसे में फसलों पर इसका गहरा प्रभाव हो रहा है.

देश में अभी ठंड का मौसम है, ऐसे में धरती की ठंड के कारण ओस उत्तपन होती है और पाला पड़ने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे फसलों को काफी नुकसान हो सकता है.

किसानों को ऐसे मौसम में काफी नुकसान झेलना पड़ता है.

पाले से गेहूं और जौ में 20 फीसदी तक और सरसों, जीरा, धनिया, सौंफ, अफीम, मटर, चना, गन्ने आदि में लगभग 30 से 40 फीसदी तक और सब्जियों में जैसे आलू, टमाटर, मिर्ची, बैंगन आदि में 40 से 60 फीसदी तक नुकसान होता है.

पाला पड़ने से पौधों की कोशिकाओं में मौजूद जल के कण बर्फ में तबदील हो जाते हैं.

इस वजह से वहां अधिक घनत्व होने के कारण पौधों की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, जिससे पौधे को  विभिन्न प्रकार की क्रिया (कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन, वाष्प उत्सर्जन) करने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

जिसके परिणामस्वरूप पौधे विकृत हो सकते हैं. इस वजह से फसल का नुकसान होता है साथ ही उपज और गुणवत्ता में भी कमी देखने को मिलती है.

 

बिन खर्च के पाले से कैसे करें बचाव

फसलों को पाले से बचाने के कई तरीके हैं. इनमें कुछ तो देशी जुगाड़ है और साथ ही दवाईयों की सहायता भी ली जाती है.

देशी जुगाड़ की बात करें तो, धुएं से वातावरण को गर्म करें या फिर सिचांई करें.

इन दोनों जुगाड़ के अलावा खेत में रस्सी से फसलों को हिलाते रहें, जिससे फसल पर पड़ी हुई ओस गिर जाती है और फसल पाले से बच जाती है.

 

फसलों के बचाव के लिए दवाईयों का उपयोग

पाले से बचाव के लिए दवाइयों की सहायता भी ली जा सकती है.

यूरिया की 20 Gr/Ltr पानी की दर से घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव करना चाहिए.

अथवा 8 से 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से भुरकाव करें.

इसके आलावा घुलनशील सल्फर 80% डब्लू डी जी की 40 ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव किया जा सकता है.

ऐसा करने से पौधों की कोशिकाओं में उपस्थित जीवद्रव्य का तापमान बढ़ जाता है.

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