हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ें

एलोवेरा की खेती से करें मोटी कमाई

कृषि वैज्ञानिक ने दी अहम जानकारी

 

एलोवेरा की खेती कम उपजाऊ जमीन पर होती हैं, साथ ही कम खाद में भी बेहतर उत्पादन पा सकते हैं. 

लेकिन अच्छी उपज के लिए खेत को तैयार करते समय 10-15 टन सड़ी हूए गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए.

इससे उत्पादन में गुणात्मक रूप से वृद्धि होती है.

 

एलोवेरा जिसे घृतकुमारी या ग्वारपाठा कहा जाता है. इसकी औषधीय पौधा में गिनती होती है.

यह पौधा साल भर हरा भरा रहता है. इसकी उत्पति दक्षिणी यूरोप एशिया या अफ्रीका के सूखे क्षेत्रों में मानी जाती है.

भारत में एलोवेरा का व्यासायिक  उत्पादन सौन्दर्य प्रसाधन के साथ दवा निर्माण के लिए किया जाता है.

एलोवेरा की पट्टी ही व्यवसायिक इस्तेमाल में अती है.

 

मिट्टी और तापमान

एलोवेरा की कमर्शियल खेती शुष्क क्षेत्रों से लेकर सिंचित मैदानी क्षेत्रों में की जा सकती है.

परंतु आज यह देश के सभी भागों में उगाया जा रहा है.  खासतौर पर राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में  इसका कमर्शियल लेवल पर प्रोडक्शन हो रहा है.

इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे बहुत ही कम पानी तथा अर्द्ध शुष्क क्षेत्र में भी असानी से उगाया जा सकता है.

एलोवेरा की बेहतर खेती के लिए सबसे उपयुक्त तापमान 20 से 22 डिग्री सेंटीग्रेड होता है.

परंतु यह पौधा किसी भी तापमान पर अपने को बचाए रख सकता है.

 

एलोवेरा की नस्ल

आई. सी. – 111271, आई.सी. – 111280, आई. सी. – 111269 और आई. सी.- 111273 का कमर्शियल उत्पादन किया जा सकता है.  

इन किस्मों में पाई जाने वाली एलोडीन की मात्रा 20 से 23 प्रतिशत तक होती है.

 

केन्द्रीय औषधीय संघ पौधा संस्थान के द्वारा सिम-सीतल, एल- 1,2,5 और 49 एवं को खेतों में परीक्षण के उपरान्त इन जातियों से अधिक मात्रा में जैल की प्राप्ति हुई है.

इनका प्रयोग खेती (व्यवसायिक) के लिए किया जा सकता है.

अगर आप एलोवेरा की खेती बड़े पैमाने पर करना चाहते है, वो इसकी चार पत्ती वाली चार पत्तों वाली लगभग चार महीना पुरानी 20-25 सेंटीमीटर लंबाई वाले पौधे का चयन करना सही होता है.

एलोवेरा के पौधे की यह खासियत होती है कि इसे उखाड़ने के महीनों बाद भी लगया जा सकता है.

 

खाद एवं उर्रवरक

एलोवेरा की खेती कम उपजाऊ जमीन पर होती हैं, साथ ही कम खाद में भी बेहतर उत्पादन पा सकते हैं. 

लेकिन अच्छी उपज के लिए खेत को तैयार करते समय 10-15 टन सड़ी हूए गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए इससे उत्पादन में गुणात्मक रूप से वृद्धि होती है.

 

सिंचाई और कीट नियंत्रण

पौधों की रोपाई के बाद पानी दिया जाता है. ड्रिप इरिगेशन या संप्रिंक्लर से इसकी सिंचाई की जाती है.

इसे एक साल में तीन से चार सिंचाई की जरूरत होती है. कीट नियंत्रण के लिए समय समय खेत से खर पतवार निकालते रहना चाहिए.

पौधों के आसपास पानी नहीं रुकने देना चाहिए.

यह भी पढ़े : एक खेत – 4 फसलें, इस तकनीक से खेती कर बंपर मुनाफा कमाएं

 

यह भी पढ़े : खेत के चारों तरफ घूमकर किसान मिनटों में नाप सकते हैं अपनी जमीन

 

शेयर करे