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कटहल की खेती से कमाएं लाखों, जानिए कैसे?

कटहल यानी जैकफ्रूट पेड़ पर होने वाले फलों में दुनिया का सबसे बड़ा फल माना गया है.

बड़े बुजुर्गों ने कहा है कि इसे उगाने वाला कभी दरिद्रता नहीं देखता और यह कहावत आज के समय में सही साबित हो रही है.

भारत में सब्जी के रुप में प्रयोग किये जाने वाले कटहल में प्रोटीन, आयरन, कार्बोहाईड्रेट, विटामिन ए, विटामिन सी ,पोटेशियम एवं कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है.

 

कटहल की खेती

वहीं बतौर फसल ये किसान के लिए भी बहुत फायदेमंद है. कटहल के पेड़ की ऊचाई 80 फीट तक होती है.

जिसमें आधार से एक सीधी सूंड शाखा निकलती है.

इस अलौकिक रूप से दिखने वाली विषमता में छोटी कुंद स्पाइक्स और 500 बीजों तक एक बहुत मोटा, रबड़ जैसा छिलका होता है.

इस फल का औसतन वजन 16 किलोग्राम का होता है. देश में कटहल की खेती असम में सबसे ज्यादा होती है.

देश के अलग अलग राज्यों जैसे बिहार,झारखंड, पश्चिम बंगाल और दक्षिण भारत के राज्यों में भी कटहल की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है.

आइये जानते हैं कटहल की खेती से संबंधित जरूरी जानकारियां –

 

कटहल की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

कटहल की खेती के लिए गर्म जलवायु अच्छी मानी जाती है जहां ज्यादा बरसात नहीं  होती हो और मौसम भी गर्म रहता हो. ऐसे क्षेत्र में कटहल की खेती अच्छी होती  है.

गर्म और नम दोनों प्रकार की जलवायु में कटहल को उगाया जा सकता है यानि शुष्क और शीतोष्ण जलवायु कटहल के लिए उत्तम है.

पहाड़ी और पठारी क्षेत्रों में भी कटहल की खेती सफलतापूर्वक की जाती है.

 

कटहल की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

अब बात करते है मिट्टी की तो इसकी खेती सभी तरह की मिट्टी मे संभव है.

लेकिन गहरी दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए उत्तम मानी जाती है क्योकि कटहल की जड़े काफी गहरी जाती है इसके साथ ही इसमें जलनिकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए क्योंकि जलभराव की स्तिथि में पौधे  के मरने की आशंका रहती है.

इसकी अच्छी खेती के लिए भूमि का पीएच मान 7-7.5 के बीच होना  चाहिए.

 

कटहल की किस्में

कटहल में खासकर दो प्रकार की प्रजातियां होती है ,कठोर और नर्म गुदे वाली.

  1. नर्म गूदे किस्म वाली प्रजाति  में फल का आकार छोटा होता है साथ ही इसमे गूदा नर्म एंव बीज बड़े होते है.
  2. इसके अलावा कटहल के कठोर किस्म वाले फल का आकार बड़ा होता है, इसका गूदा कठोर होता है एवं  इसमें बीज कम पाए जाते है. कटहल की कुछ नर्म स्थानीय किस्में रसदार, खजवा, सिंगापुरी, गुलाबी, रुद्राक्षी आदि हैं।

 

कटहल की खेती के लिए रोपाई

इसकी रोपाई के लिए एक गहरी जुताई करके पाटा लगाकर भूमि को समतल कर ले, फिर 10-12 मी.की दूरी पर एक मीटर  गोलाई और एक मीटर की गहराई वाले गढ्ढे तैयार करें.

इन गढ्ढों में 20-25 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट, 250 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट,500 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश,एक किलो  ग्राम नीम की खली और 10 ग्राम थाईमेट को मिट्टी में अच्छी तरह मिलाकर गढ्ढों में भर दें.

इसके  बाद पौध लगाकर हल्की सिचाई करें. इसके बाद उर्वरक की इस मात्रा को 3 से 7  साल के  बीच दुगुना  कर दें.

इसके 7 साल के बाद प्रति पौधा नाईट्रोजन 300 ग्राम, फॉस्फोरस 300 ग्राम और पोटाश 250 ग्राम कर दें.

ध्यान रहे हर वर्ष पहली खुराक सितंबर से अक्टूबर में दे एवं  दूसरी जनवरी से फरवरी तक दे.

 

कटहल की खेती के लिए उपयुक्त सिंचाई

इसकी सिंचाई सर्दी में 15 दिनों के अंतर पर करें  एंव गर्मियों में 7 से 10 दिनों के अंतराल पर करें लेकिन सिचाई करते वक्त ध्यान रखें कि जड़  के पास पानी का भराव ना रहे क्योंकि इससे पौधे के मरने की आशंका रहती है.

पूर्णविकसित पौधे  को सिंचाई की ज्यादा जरुरत नही पड़ती है क्योंकि  वे जमीन से खुद ही पानी अवशोषित कर  लेते है.

 

कटहल की खेती के लिए उपयुक्त खाद एंव उर्वरक

इसकी खेती के लिए गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट, 250 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट,500 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश, एक किले ग्राम नीम की खली और 10 ग्राम थाईमेट, नाईट्रोजन 300 ग्राम,फॉस्फोरस 300 ग्राम और पोटाश 250 ग्राम प्रतिवर्ष जुलाई के महीने में देनी चाहिए.

 

रोग व कीट तथा उनकी रोकथाम

तना छेदक – इस प्रकार के कीट पौधे के तनें व शाखाओं में छेद करके पौधे का नुकसान करते है एवं प्रभावित भाग सूखने लगता है.

इसकी रोकथाम के लिए शाखाओ में कैरोसीन तेल एंव पेट्रोल को रुई में भिगोकर  छेद पर लगायें.

फल सड़न  रोग – यह रोग नवजात एवं बड़े फल में भी लग सकता है. इसकी रोकथान के लिए 3 मि.ली. व्लू कॉपर प्रति लीटर पानी में 10-15  दिनों  के अंतर में छिड़काव करें.

किसान भाइयों यदि आप उपरोक्त बातों का ध्यान रखकर  कटहल की खेती करेंगे तो निश्चित रूप से आपकी आमदनी बढ़ेगी.

खेती से संबंधित हर जानकारी पाने के लिए जुड़े  रहिए हमारे साथ, हम आपकी उन्नति के लिए आपको फसलों की जानकारी देते रहेंगे.

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