काले अंगूर की खेती से कमाया नाम, देश-विदेश में मिला सम्मान

नवाचार से उज्जैन के किसान बने प्रेरणास्रोत

रुनीजा (उज्जैन). खेती को लेकर आम धारणा है कि यह परंपरागत काम है, लेकिन तीतरी के मोतीलाल पाटीदार ने नवाचार से खेती को एक नई दिशा दी।

वे प्रदेशभर के किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बन चुके हैं। मोतीलाल को यह विरासत उनके बड़े पापा अंबाराम पाटीदार से मिली।

उन्होंने मटर, टमाटर और मिर्च जैसी फसलों के साथ प्रयोग किए। 1981 में महाराष्ट्र से अंगूर की बेल लाकर एक एकड़ में खेती शुरू की।

1998-99 तक आंकड़ा एक हजार एकड़ तक पहुंच गया, लेकिन आम अंगूर की खेती में लागत ज्यादा और लाभकम होने से किसानों का रुझान कम होने लगा।

ऐसे में अंबाराम ने महाराष्ट्र में किसानों को काले अंगूर की खेती करते देखा जो ज्यादा लाभकारी साबित हो रही थी।

वर्ष 2005 में मोतीलाल ने 18 किसानों का समूह बनाकर काले अंगूर की खेती शुरू की।

 

मलेशिया में भी किए जा चुके सम्मानित

मोतीलाल ने महाराष्ट्र की नीति का अध्ययन कर तत्कालीन मुख्यमंत्री, कृषि मंत्री, आबकारी मंत्री और वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत किया।

परिणामस्वरूप 2006 में अंगूर प्रसंस्करण नीति लागू की गई। खेती में नवाचार के कारण मोतीलाल को भारत सरकार ने 2007 में सर्वश्रेष्ठ कृषक पुरस्कार से सम्मानित किया।

इसके अलावा बेस्ट फार्मर अवॉर्ड और मलेशिया में उद्योग श्रेणी का अंतरराष्ट्रीय सम्मान भी मिल चुका है। थाई और वियतनामी अमरूद की भी खेती कर रहे हैं।

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