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मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री ने कहा-गेहूं की बजाय चने की खेती को प्राथमिकता दें किसान

 

होगी ज्यादा कमाई

 

एमपी के कृषि मंत्री कमल पटेल ने लिया किसान के खेत का जायजा, कहा-चना प्रति एकड़ 80 हजार रुपये तक देगा, जबकि गेहूं इसका आधा. सरसों की बुवाई से भी मिलेगा ज्यादा फायदा.

 

मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल मंगलवार को एक किसान के खेत में पहुंचकर उससे फसल विविधीकरण के फायदे की जानकारी ली. यह बात है हरदा जिले के मर्दानपुर की.

यहां किसान अमर सिंह ने अपने खेत में इस साल चने की बुवाई की है. उनसे गेहूं के मुकाबले चने की खेती से होने वाले फायदों की जानकारी हासिल की.

पटेल ने बताया कि कोरोना की वजह से पिछले दो साल से मिर्ची और टमाटर की फसल में इस किसान को नुकसान हुआ था.

इसलिए उन्होंने खुद यह सलाह दी थी कि वो चने की फसल लें. क्योंकि यह गेहूं से ज्यादा फायदा देती है.

पटेल ने बताया कि आज उनकी सलाह पर सिंह के 30 एकड़ खेत में चने की फसल लहलहा रही है.

 

कृषि मंत्री पटेल ने गांव के खेतों का जायजा लेकर किसानों से हालचाल पूछा. खेत में खड़ी फसलों को देखा कि उसमें इस साल कैसी पैदावार होने की संभावना है.

पटेल ने किसानों से कहा कि वो सबसे पहले किसान हैं फिर मंत्री, इसलिए लोग अपनी समस्या बताएं.

ताकि उसका समाधान हो. मध्य प्रदेश में पहला मौका नहीं है, जब मंत्री पटेल सीधे खेतों में पहुंचे हों.

 

गेहूं के मुकाबले चने की खेती में ज्यादा फायदा

पटेल ने बताया कि चना प्रति एकड़ किसान को 80 हजार रुपये तक देगा. जबकि गेहूं इसका आधा पैसा ही देगा.

इसलिए गेहूं की बजाय किसान चने को प्राथमिकता दें. हम किसानों को लगातार बता रहे हैं कि सरसों और चना कमाई के लिहाज से गेहूं से बेहतर है.

हम समय-समय पर फसलों को बदलेंगे तो फायदा होगा.

वो गेहूं और सोयाबीन की जगह दूसरी फसलें जैसे सरसों, चना या फिर बागवानी की सलाह दे रहे हैं.

मध्य प्रदेश प्रमुख चना उत्पादक है. जबकि सरसों उत्पादन में मध्य प्रदेश की हिस्सेदारी 11.76 फीसदी है.

 

केमिकल फ्री खेती को तरजीह दें किसान

एमपी के कृषि मंत्री पटेल ने कहा कि उनका फोकस प्राकृतिक खेती पर है.

केमिकल फ्री खेती में मध्य प्रदेश को सबसे आगे रखने के लिए वो काम कर रहे हैं.

इसलिए किसान अपनी खेती के कुछ हिस्से पर बिना खाद और कीटनाशक डाले फसल पैदा करें.

जैविक खेती में पहले ही मध्य प्रदेश नंबर वन है. लेकिन अब इसे और बढ़ावा देना है.

पब्लिक प्राइवेट गौशाला (PPG) मॉडल के जरिए गौशालाओं को सीधे खेत को जोड़ा जाएगा. ताकि किसानों को जैविक खाद मिले और पशुपालकों को पैसा.

जैविक खेती की बात करें तो यहां करीब पौने आठ लाख किसान 17 लाख हेक्टेयर में ऐसी खेती कर रहे हैं.

source : tv9hindi

 

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