लाड़ली बहनों के लिए : आर्थिक सहायता के साथ अब मिलेगा रोजगार का अवसर

मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना को अब केवल मासिक आर्थिक सहायता तक सीमित नहीं रखा जाएगा, बल्कि इसे महिलाओं की स्थायी आजीविका और आर्थिक आत्मनिर्भरता से जोड़ने की दिशा में मध्यप्रदेश राज्य सरकार बड़ा कदम उठाने जा रही है।

उज्जैन जिले में योजना से जुड़ी करीब 3 लाख 40 हजार लाड़ली बहनें हैं, जिनके लिए हर माह मिलने वाली सहायता राशि पहले ही जीवनयापन में सहारा बनी हुई है।

अब सरकार इसी आधार को मजबूत करते हुए महिलाओं को नियमित और सम्मानजनक आय का स्थायी मंच देने की तैयारी कर रही है।

इस नई पहल की शुरुआत उज्जैन और अनूपपुर जिले से पायलट प्रोजेक्ट के रूप में की जाएगी। पायलट सफल रहने पर इसे प्रदेश के अन्य जिलों में भी लागू किया जाएगा।

सरकार का उद्देश्य है कि महिलाएं केवल सहायता राशि पर निर्भर न रहें, बल्कि स्वयं की मेहनत से आय अर्जित कर आत्मनिर्भर बनें।

 

हैंडलूम और हस्तशिल्प से जुड़ेंगी लाड़ली बहनें

नई योजना के तहत लाड़ली बहना योजना से जुड़ी बहनों को हैंडलूम और हस्तशिल्प गतिविधियों से जोड़ा जाएगा।

चयनित महिलाओं को सरकार की ओर से लूम और चरखा उपलब्ध कराए जाएंगे, जिससे वे घर से ही बुनाई और कताई का कार्य कर सकें।

इसके साथ ही बुनाई, डिजाइन, रंगाई और फिनिशिंग का व्यावहारिक प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।

उन्नत उपकरणों और तकनीक के जरिए उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाई जाएगी, ताकि वे बाजार की मांग के अनुरूप हों।

 

सरकारी ब्रांड से सीधे बाजार तक

लाड़ली बहनों द्वारा तैयार साड़ी, स्टोल, वस्त्र और हस्तशिल्प उत्पाद मृगनयनी, विंध्या वैली, कबीरा और प्राकृत जैसे सरकारी ब्रांड के माध्यम से बाजार में उतारे जाएंगे।

इन ब्रांडों के विक्रय केंद्रों को जिला स्तर तक विस्तारित किया जाएगा, जिससे महिलाओं को अपने उत्पाद बेचने में आसानी हो।

इसके अलावा फ्रेंचाइजी मॉडल भी लागू किया जाएगा जिसमें लाड़ली बहनों के समूह और स्थानीय उद्यमी स्वयं बिक्री केंद्र संचालित कर सकेंगे।

इससे बिचौलियों की भूमिका कम होगी और महिलाओं को उनके उत्पाद का बेहतर मूल्य मिल सकेगा।

 

लाड़ली बहनों को कितनी हो सकती है आय

हैंडलूम और हस्तशिल्प क्षेत्र में एक महिला 6 हजार से 12 हजार रुपए तक मासिक अतिरिक्त आय अर्जित कर सकती है।

यदि महिलाएं समूह आधारित उत्पादन से जुड़ती हैं, तो आय और भी बढ़ने की संभावना है। यह अनुमान खादी एवं ग्रामोद्योग इकाइयों और महिला स्वयं सहायता समूहों की औसत आय के आधार पर लगाया गया है।

 

भैरवगढ़ से मिलेगा मजबूत आधार

उज्जैन का भैरवगढ़ क्षेत्र पहले से ही बटिक कला का प्रमुख केंद्र है। यहां बटिक, सिलाई और संबंधित कार्यों से जुड़े करीब 1200 लोग कार्यरत हैं, जिनकी औसत दैनिक आय 300 से 400 रुपए है।

जिले में बटिक प्रिंट, एंब्रायडरी, ज्वेलरी, मूर्तिकला, मांडना, काष्ठशिल्प, कशीदाकारी, लाख शिल्प और टेराकोटा जैसे क्षेत्रों के पंजीकृत हस्तशिल्पी मौजूद हैं। यह मजबूत आधार योजना को जमीन पर उतारने में अहम भूमिका निभाएगा।

 

सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स से नई पहचान

लाड़ली बहनों के उत्पादों को सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के जरिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुंचाने की रणनीति भी बनाई गई है।

इससे स्थानीय हस्तशिल्प और बुनाई उत्पादों को बड़े शहरों और विदेशों में पहचान मिलने की संभावना बढ़ेगी।

 

इस काम की क्यों उज्जैन से शुरुआत है अहम

जिले में लाड़ली बहनों की संख्या 3.40 लाख, जो मजबूत आधार प्रदान करती है। भैरवगढ़ जैसे पारंपरिक हस्तशिल्प केंद्र की मौजूदगी है।

यहां प्रशिक्षित कारीगर और पहले से स्थापित सरकारी ब्रांड नेटवर्क मौजूद है। उज्जैन मॉडल की सफलता के बाद इसे प्रदेश के अन्य जिलों में अपनाया जाएगा।

 

योजना से क्या बदलेगा

इस योजना से लाड़ली बहनों को सहायता राशि से आगे बढ़कर स्थायी रोजगार मिल सकेगा। उन्हें घर से काम का अवसर मिलेगा विशेषकर ग्रामीण महिलाओं के लिए यह योजना काफी अहम साबित होगी।

इससे पारंपरिक कला और बुनाई को नया बाजार मिलेगा। इस योजना से महिलाओं की आर्थिक आत्मनिर्भरता और सामाजिक सम्मान में वृद्धि होगी।

 

योजना से जुड़ी खास बातें, एक नजर में
पहलू विवरण
लूम–चरखा सरकार द्वारा उपलब्ध कराया जाएगा
प्रशिक्षण सरकारी स्तर पर प्रशिक्षण की व्यवस्था
बाजार सरकारी ब्रांड और फ्रेंचाइजी मॉडल से जुड़ाव
कमाई हर माह नियमित आय की संभावना
पहचान देश–विदेश तक उत्पादों की पहुंच

 

यह पहल लाड़ली बहना योजना को एक नई दिशा देते हुए महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने की मजबूत आधारशिला साबित हो सकती है।

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