हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ें

कैबिनेट में यूरिया खाद को लेकर लिया बड़ा फैसला

 

मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट और सीसीईए यानी आर्थिक मामलों की समिति की बैठक हुई.

 

इस बैठक में यूरिया को लेकर बड़ा फैसला लिया गया.

 

देश में यूरिया उत्पादन बढ़ाने को लेकर केंद्र सरकार ने मंगलवार को बड़ा फैसला लिया है.

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंगलवार को तलचर फर्टिलाइजर्स लिमिटेड द्वारा कोल गैसीफिकेशन (कोल गैस के जरिए) से उत्पादित यूरिया के लिए एक विशेष सब्सिडी पॉलिसी को मंजूरी दे दी है.

केंद्र सरकार का उद्देश्य देश में यूरिया का उत्पादन बढ़ाकर आत्मनिर्भर बनना है.

 

कैबिनेट के फैसलों की जानकारी देते हुए वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने बताया कि इस फैसले विदेशी करेंसी बचाने में मदद मिलेगी यानी इंपोर्ट बिल कम होगा. 

एक साल में करीब 12.7 लाख टन  यूरिया आयात कम करने में मदद मिलेगी. भारत में रासायनिक खाद के तौर पर यूरिया का इस्तेमाल किया जाता है.

 

यह भी पढ़े : सफेद मूसली की खेती से लखपति बन रहे हैं किसान

 

क्या होता है कोल गैसीफिकेशन

कोल गैसीफिकेशन ऐसी प्रक्रिया है जिसमें ठोस कोयले को सीधा गैस में बदला जाता है.

आम प्रक्रिया में सॉलिड को पहले लिक्विड में फिर गैस में बदलते हैं. लेकिन कोल गैसीफिकेशन में कोयले से गैस बनाया जाता है.

 

सरकार के इस फैसले से किसानों को होगा फायदा

सरकार का कहना है कि देश के पास कोयला का काफी बड़ा भंडार है. ऐसे में कोल गैसीफिकेशन कई मायने में फायदा पहुंचाएगी. एक तो इंपोर्ट बिल कम होगा.

दूसरा किसानों को आसानी से यूरिया उपलब्ध होगा. नई परियोजना से देश के पूर्वी हिस्से में यूरिया की आपूर्ति के लिए परिवहन सब्सिडी की बचत होगी. 

यह परियोजना  मेक इन इंडिया ’पहल और आत्मनिर्भर अभियान को भी बढ़ावा देगी.

भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर में और सुधार लाएगा.देश के पूर्वी हिस्से में अर्थव्यवस्था को प्रमुख बढ़ावा देगा. यह परियोजना परियोजना के जलग्रहण क्षेत्र में सहायक उद्योगों के रूप में नया व्यापार अवसर भी प्रदान करेगी.

TFL यानी (Talcher Fertilizers Ltd) तलचर फर्टिलाइजर लिमिटेड को सरकारी कंपनियों RCF (Rashtriya Chemicals & Fertilizers) गेल (GAIL India Limited) कोल इंडिया और एफसीआईएल (Fertilizer Corporation of India Ltd) की ज्वाइंट वेंचर कंपनी है. इसकी स्थापना 13 नवंबर 2015 में हुई थी.

 

कितनी होती है खपत

रसायन एवं उवर्रक मंत्रालय से मिली जानकारी के मुताबिक 2016-17 में यूरिया की मांग 289.9 लाख मिट्रिक टन (LMT) थी, जो 2019-20 में 335.26 एलएमटी हो गई है.

एपी (डाई अमोनियम फास्फेट) की डिमांड 2016-17 में 100.57 एलएमटी थी जो 2019-20 में 103.30 हो गई.

एनपीके (नाइट्रोजन-N, फास्फोरस-P, पोटेशियम-K) की मांग 2016-17 में 102.58 मिट्रिक टन थी, जो 2019-20 में बढ़कर 104.82 एलएमटी हो गई है.

 

यह भी पढ़े : भारतीय मौसम विभाग ने जारी किया मानसून 2021 के लिए पूर्वानुमान

 

एमओपी (Muriate of Potash) की मांग 2016-17 में 33.36 लाख मिट्रिक टन थी. जबकि 2019-20 में यह बढ़कर 38.12 एलएमटी गई है.

साल 2016-17 में भारत ने 54.81 लाख मिट्रिक टन यूरिया का आयात किया. जबकि यह 2019-20 में बढ़कर 91.23 एलएमटी हो गया.

यानी चार साल में 36.42 लाख मिट्रिक टन का इंपोर्ट बढ़ गया.1980 में देश में महज 60 लाख मिट्रिक टन यूरिया की ही खपत हो रही थी.

 

किसानों को खाद पर मिलती है सब्सिडी

किसानों को सब्सिडी की वजह से सस्ता यूरिया मिलता है. उर्वरक सब्सिडी (Fertilizer subsidy) के लिए सरकार सालाना 75 से 80 हजार करोड़ रुपये का इंतजाम करती है.

2019-20 में 69418.85 रुपये की उर्वरक सब्सिडी दी गई. जिसमें से स्वदेशी यूरिया का हिस्सा 43,050 करोड़ रुपये है.

इसके अलावा आयातित यूरिया पर 14049 करोड़ रुपये की सरकारी सहायता अलग से दी गई.

 

भारत ने नाइट्रोजन के पर्यावरण पर प्रभाव का आकलन किया है.इंडियन नाइट्रोजन ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार भारत में नाइट्रोजन प्रदूषण का मुख्य स्रोत कृषि ही है.

पिछले पांच दशक में हर भारतीय किसान ने औसतन 6,000 किलो से अधिक यूरिया का इस्तेमाल किया.

यूरिया का 33 प्रतिशत इस्मेमाल चावल और गेहूं की फसलों में होता है. जबकि 67 प्रतिशत मिट्टी, पानी और पर्यावरण में पहुंचकर उसे नुकसान पहुंचाता है.

 

यह भी पढ़े : अब घर पर बनाएं अपना मिनी कोल्ड स्टोरेज

 

source

 

शेयर करे