भारत ने मार्च में खत्म हुए 2024-25 वित्तीय वर्ष में 5.6 मिलियन मीट्रिक टन यूरिया इम्पोर्ट किया है. 2020-21 में तो ये आयात लगभग 9.8 मिलियन टन तक पहुंच गया था.
भारत और रूस के बीच यूरिया पर हुई इस बड़ी डील के क्या मायने हैं और इससे भारतीय किसानों को कितने बड़े स्तर पर फायदा होने वाला है, ये हम आपको बताते हैं.
खाद को लेकर पिछले कुछ सालों से चली आ रही मारामारी अब जल्द ही खत्म होने वाली है. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि क्योंकि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे के दौरान ये बड़ा ऐलान हुआ कि भारत और रूस अब एकसाथ मिलकर यूरिया बनाएंगे.
इसको लेकर कुछ चुनिंदा भारतीय कंपनियां और रूस की टॉप पोटाश और अमोनियम नाइट्रेट बनाने वाली कंपनी यूरलकेम ग्रुप ने एक अहम डील साइन की है.
इसके तहत रूस में एक बड़ा यूरिया प्लांट लगाया जाएगा. भारत और रूस के बीच यूरिया पर हुई इस बड़ी डील के क्या मायने हैं और इससे भारतीय किसानों को कितने बड़े स्तर पर फायदा होने वाला है, ये हम आपको बताते हैं.
यूरिया डील का मकसद
दरअसल, राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स यानी RCF, नेशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड यानी NFL और इंडियन पोटाश लिमिटेड यानी IPL के सपोर्ट वाले इस प्रपोज्ड प्रोजेक्ट का मकसद, रूस के प्राकृतिक गैस और अमोनिया के बड़े रिजर्व का इस्तेमाल करना है जो भारत के पास मौजूद जरूरी रॉ मटीरियल हैं.
जानकारों का कहना है कि यूरिया पर हुआ ये सझौता भारत के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है, जो किसी भी मिलिट्री अलायंस से भी बेहतर है.
यूरिया भारतीय किसानों के लिए सबसे जरूरी चीज बनी हुई है, जिसकी उपलब्धता को लेकर पिछले 6-7 सालों से लगातार भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
एक जानकार ने इकोनॉमिक टाइम्स से कहा कि इस फैसिलिटी से हर साल 20 लाख टन से ज्यादा यूरिया बनने की उम्मीद है.
बातचीत अभी जमीन के बंटवारे, नैचुरल गैस और अमोनिया की कीमत और ट्रांसपोर्ट लॉजिस्टिक्स पर फोकस है.
असल बात ये है कि अस्थिर ग्लोबल मार्केट और बढ़ते जियोपॉलिटिकल तनाव के बीच, भारत के लिए फर्टिलाइजर सप्लाई को विविध और स्थिर बनाए रखने के लिए ये डील बहुत अहम हो जाती है.
दूसरे देशों से घटेगी निर्भरता
भारत ने मार्च में खत्म हुए 2024-25 वित्तीय वर्ष में 5.6 मिलियन मीट्रिक टन यूरिया इम्पोर्ट किया है. 2020-21 में तो ये आयात लगभग 9.8 मिलियन टन तक पहुंच गया था.
हालांकि यूरिया को लेकर अब घरेलू कैपेसिटी बढ़ी और सोर्सिंग पैटर्न में बदलाव आया है तो थोड़ा आयात कम हो पाया.
लेकिन अभी भी भारत ओमान, कतर, सऊदी अरब और यूनाइटेड अरब अमीरात से बड़ी मात्रा में यूरिया इंपोर्ट करता है और अप्रैल-अक्टूबर 2025 में भारत ने 5.9 मिलियन टन एग्रीकल्चर ग्रेड यूरिया इंपोर्ट किया, जो एक साल पहले के लगभग 2.5 मिलियन टन से ज़्यादा रहा.
एशिया की तीसरी सबसे बड़ी इकॉनमी भारत अपने बड़े कृषि सेक्टर को सपोर्ट करने के लिए इम्पोर्टेड फसल पोषक तत्वों पर बहुत ज़्यादा निर्भर है.
कृषि सेक्टर में भारत की लगभग 40% वर्कफोर्स काम करती है और यह देश की लगभग 4 ट्रिलियन डॉलर की GDP में करीब 15% का योगदान देता है.
रूस के साथ करार के मायने
रूस के बड़े गैस और अमोनिया रिजर्व इसे भारत के लिए एक नैचुरल पार्टनर बनाते हैं, जो दुनिया के सबसे बड़े फर्टिलाइजर यूजर्स में से एक होने के बावजूद इन फीडस्टॉक के लिए इंपोर्ट पर निर्भर है.
रूस में प्लांट लगाकर, भारत का मकसद भविष्य में इसकी कीमतों में होने वाले झटकों और सप्लाई में रुकावटों से खुद को बचाना है, खासकर पिछले दो सालों की उथल-पुथल के बाद, जब ग्लोबल ट्रेड पाबंदियों और युद्धों ने फर्टिलाइजर मार्केट को उलट-पुलट कर दिया था.
भारत का रूस से फर्टिलाइजर इंपोर्ट 2021 से 2024 में, तीन गुना से ज़्यादा बढ़कर 1.7 बिलियन डॉलर हो गया, जो 2022 में 2.7 बिलियन डॉलर के अधिकतम पर था.
कुल फर्टिलाइजर इंपोर्ट अप्रैल से अक्टूबर 2025 में सालाना आधार पर 82% बढ़कर 10.2 बिलियन डॉलर हो गया.
इस डील के तहत रूस में लगने वाला नया प्लांट नेचुरल गैस पर चलेगा और ओमान में भारत के पुराने ओवरसीज़ फर्टिलाइज़र जॉइंट वेंचर जैसा ही मॉडल फॉलो करेगा.
पुतिन के दो दिन के दौरे के दौरान साइन होने वाली यूरलकेम डील से, वेस्टर्न बैन के बावजूद भी, रूस के साथ भारत का फर्टिलाइज़र कोऑपरेशन और गहरा होने की उम्मीद है.
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