बकरी पालन से अच्छी आमदनी करना चाहते हैं तो इन बातों का रखें विशेष ध्यान

एक समय था जब बकरी पालन को गरीब, खेतिहर मजदूरों, लघु एवं सीमांत किसानों की आय का साधन माना जाता था।

जिसके चलते बकरी को ग़रीबों की गाय भी कहा जाता है। लेकिन आज के समय में बकरी पालन व्यवसायिक रूप ले चुका है।

आज के समय में युवा एवं किसान बकरी पालन का व्यवसाय शुरू कर कम समय में अच्छी आमदनी कर रहे हैं जिसके चलते बकरी पालन ने पिछले वर्षों में तेज गति पकड़ ली है

बकरी पालन एवं उससे प्राप्त श्रेष्ठ आर्थिक लाभ प्रदान करने वाले उत्पादों की मांग बढ़ने के कारण अनेक प्रगतिशील किसान एवं युवा इसके पालन को व्यावसायिक पैमाने पर अपनाने की ओर प्रेरित हो रहे हैं।

 

बकरी पालन

ऐसे में बकरी पालन से अधिक से अधिक लाभ कमाया जा सके इसके लिए प्रभावी नीति अपनानी चाहिए।

इसमें अच्छे नस्ल के बकरे और बकरियों का चयन, प्रजनन प्रबंधन, आवास प्रबंधन, पोषण प्रबंधनस्वास्थ्य प्रबंधन एवं बाजार की उपलब्धता एवं मांग पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

आइए जानते हैं बकरी पालन के लिए की बातों का ध्यान देना चाहिये।

 

बकरी पालन के लिए नस्ल का चयन

सामान्यतः बकरी पालन के लिए नस्ल के चयन हेतु भौगोलिक परिस्थितियों एवं जलवायु को ध्यान में रखना चाहिए।

बकरी की प्रमुख नस्लों में जमुनापारी, ब्लैक बंगाल, बारबरी, बीटल, कच्छी, गुजराती एवं सिरोही नस्ल शामिल है।

इसके अलावा अलग-अलग क्षेत्रों में बकरी की अन्य किस्में भी पाली जा सकती है।

 

बकरे का चयन

  • बकरा उत्तम शारीरिक संरचना एवं पूर्ण रूप से स्वस्थ होना चाहिए।
  • नर का वजन नौ माह की उम्र में 15-20 किलोग्राम तक होना चाहिए।
  • गुणों को वंशानुक्रम में प्रसारित करने की क्षमता होनी चाहिए।
  • रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी हो एवं संक्रमण का वाहक न हो।

 

बकरी का चयन

  • बकरी उत्तम शारीरिक संरचना एवं पूर्ण रूप से स्वस्थ होनी चाहिए।
  • शरीर की लंबाई और ऊँचाई अच्छी होनी चाहिए।
  • दूध की उपज क्षमता अच्छी होनी चाहिए।
  • प्रजनन क्षमता बेहतर होनी चाहिए।
  • रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होनी चाहिए।

 

बकरी पालन के लिए आवास प्रबंधन

  • बकरी के लिए आवास आरामदायक होना चाहिए। साथ ही जलवायु जनित तनाव जैसे कि उच्च एवं निम्न तापमान, आद्रता, तेज हवा, तेज धुप एवं बारिश से रक्षा करनी चाहिए।
  • स्वच्छता और सफाई के साथ हवा का संचालन अच्छा होना चाहिए।
  • सुबह के समय में पर्याप्त मात्रा में रौशनी, हवा आवास में आनी चाहिए।
  • सर्दियों में ठंड से बचाव के लिए भूसे का उपयोग बिछावन सामग्री के तौर पर और इसके साथ ही बोरे को बकरियों को ढकने में उपयोग कर सकते हैं।
  • अल्प आयु के मेमनों को ज्यादा निगरानी में रखे और सीधे मिट्टी के सम्पर्क में आने से बचायें।
  • एक व्यस्क बकरी को 3.4 वर्ग मीटर खुले एवं 1.2 वर्ग मीटर ढके क्षेत्रफल की आवश्यकता होती है।

 

बकरी पालन में प्रजनन प्रबंधन

  • पूर्ण परिपक्व होने के बाद लगभग डेढ़ से दो वर्ष में बकरे को प्रजनन के लिए उपयोग कर सकते हैं।
  • एक बकरे को 25 से 30 बकरियों को गाभिन करवाने के लिए उपयोग कर सकते हैं।
  • अंतः प्रजनन के प्रभाव से बचने के लिए 1.5-2 वर्ष में बकरे को बदलना जरूरी है।
  • बकरियों को गर्मी में आने के 10-16 घंटे बाद बकरे से मिलन करवायें।
  • अच्छी नस्ल के बकरे के वीर्य से कृत्रिम गर्भाधान करने से अधिक उत्पादन मिलता है।

 

बकरियों में पोषण प्रबंधन

  • ब्याने के बाद बकरी का खीस नवजात को आधे घंटे के अंदर पिलाना जरुरी है। इससे उन्हें अच्छी रोग प्रतिरोधक क्षमता प्राप्त होती है।
  • मेमने को 15 दिनों के होने पर हरा चारा एवं खनिज मिश्रण देना शुरू करें तथा 3 माह का होने पर बकरी का दूध पिलाना बंद कर दें।
  • प्रत्येक वर्ग के पशुओं के लिए स्थानीय हरे चारे के साथ दाना मिश्रण देना चाहिए।
  • बकरियों को ऊर्जा के लिए मक्का, जौ, गेहूं एवं प्रोटीन के लिए मूंगफली, अलसी, तिल, बिनौला खलयुक्त मिश्रण दें।
  • दाना मिश्रण बकरियों को उत्पादन की दर से देना चाहिए। इस मिश्रण में ऊर्जा की मात्रा लगभग 60 प्रतिशत एवं प्रोटीन लगभग 37 प्रतिशत, खनिज मिश्रण 2 प्रतिशत एवं नमक 1 प्रतिशत होना चाहिए।
  • जिन बकरियों का दूध उत्पादन लगभग 500 मि.ली./दिन हो, उन्हें 250 ग्राम तथा एक लीटर दूध पर 500 ग्राम मिश्रण दें। इसके बाद प्रति लीटर अतिरिक्त दूध पर 500 ग्राम अतिरिक्त मिश्रण दें।
  • दूध देने वाली, गर्भवती बकरियों को गर्भावस्था के आखिरी 2 से 3 माह तक 200 से 350 ग्राम प्रतिदिन दाना मिश्रण दें।
  • हरे चारे के साथ-साथ सुखा चारा भी अवश्य दें।
  • तुरंत आहार की आदत में कोई बदलाव न करें एवं अधिक मात्रा में हरा और गीला चारा न दें।

 

बकरी पालन में स्वास्थ्य प्रबंधन
  • बरसात से पहले एवं तुरंत बाद में कृमिनाशक दवा पिलायें।
  • रोग निरोधक टीके (पी.पी.आर., ई.टी., पॉक्स, एफ.एम.डी. इत्यादि) समय से अवश्य लगवायें।
  • बाह्य परजीवी के उपचार के लिए परजीवीनाशक के घोल का छिड़काव करवाएं।
  • नियमित मल परीक्षण करवाएं।
  • एफ.एम.डी. और ई.टी.के टीकाकरण के 3-4 सप्ताह बाद बूस्टर डोज अवश्य लगवानी चाहिए।
  • दो टीकाकरण के मध्य 15 दिनों का अंतर होना चाहिए।
  • पहले पी.पी.आर. का टीकाकरण करवायें।

 

बकरियों को कब कौन सा टीका लगवायें
  • बकरी को पी.पी.आर. टीका 4 महीने के बाद वर्ष में किसी भी समय जीवनकाल में एक बार अवश्य लगवाना चाहिए।
  • खुरपका और मुँहपका (F.M.D.) का टीका 4 महीने बाद वर्ष में किसी भी समय 6 माह के अंतराल पर लगवाना चाहिए।
  • गलाघोंटू (H.S.) का टीका 4 महीने के बाद, वर्ष के किसी भी समय में 6 महीने में एक बार लगवाना चाहिए।
  • एंटरोटाँक्सिमिया (ई.टी.) का टीका 4 महीने के बाद, वर्ष के किसी भी समय में 6 महीने में एक बार लगवाना चाहिए।
  • गोट पॉक्स का टीका 4 महीने के बाद, वर्ष के किसी भी समय एक वर्ष में एक बार लगवाना चाहिए।

 

बकरियों को बाजार में कैसे बेचें

बकरियों को बाजार या कसाई खाने में उचित मूल्य पर बेचना चाहिए। किसी तीसरे व्यक्ति की सहायता लेने से बचाना चाहिए।

साधारणत: जीवित बकरियों के मूल्य को बाजार में मांस के मूल्य के दर से निर्धारण करना चाहिए।

यदि मांस 700 रुपये प्रति किलोग्राम में बेचा जाता है, तो जीवित बकरियों के प्रति किलोग्राम वजन का मूल्य 350 रुपये होना जरुरी है।

वर्ष में कुछ मुख्य त्योहार जैसे कि ईद, बकरीद और होली के समय बकरी का विपणन अधिक लाभदायक हो सकता है।

 

बकरी पालन में इन बातों का भी रखें ध्यान
  • आद्रता बकरियों में परजीवियों को बढ़ावा देती हैं, इसलिए विशेष ध्यान देना चाहिए।
  • मेमनों को 4 माह के होने के बाद ही टीकाकरण करवाना चाहिए।
  • गर्मी में उचित परिमाण में पानी, खनिज लवण दें।
  • सर्दी के समय में बिछावन सामग्री का प्रयोग करें।
  • दैनिक मांग की दर से हरी घास, दाना मिश्रण और खनिज मिश्रण दें।
  • रोगी बकरियों को स्वस्थ बकरियों से अलग रखें।
  • बकरियों का बीमा भी करवायें।

बकरी पालन व्यवसाय में यदि कम लागत में अच्छी आमदनी प्राप्त करनी है तो ऊपर दी गई सभी बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। समय पर टीकाकरण और कृमिनाशक दवाई का प्रयोग करें।

निकटस्थ पशु चिकित्सक से परामर्श करें, तब बकरीपालन एक लाभदायक व्यवसाय के रूप में उभर सकता है। इसके अतिरिक्त यह व्यवसाय महिलाओं एवं युवाओं को आत्मनिर्भर भी बना सकता है।

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