बढ़ती है मिट्टी की उर्वरता और जल धारण क्षमता
जलवायु परिवर्तन और मिट्टी की लगातार कम होती उर्वरता की चुनौती से निपटने निवास ब्लॉक में सराहनीय पहल की गई है। पायलीबाहुर गांव में बायोचार को अपनाया जा रहा है।
प्रदान संस्था और नाबार्ड के सहयोग से गठित वाटरशेड विकास समिति ने बायोचार इकाइयां स्थापित की हैं।
प्रदान संस्थान के अनुरुद्ध शास्त्री के अनुसार बायोचार मिट्टी की संरचना को बेहतर बनाता है और उर्वरता बढ़ाता है, जिससे फसलों की पैदावार में वृद्धि होती है।
इसके उपयोग से किसान धीरे-धीरे रासायनिक खादों का प्रयोग कम कर सकते हैं। इससे खेती की लागत कम होती है।
बायोचार कार्बन को मिट्टी में अवशोषित कर लेता है। वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा कम होती है। यह तकनीक फसल अवशेष जलाने की समस्या का समाधान है।
बायोचार कैसे बनता है…?
बायोचार किसी भी जैविक (कार्बन युक्त) सामग्री से बनाया जा सकता है, जैसे लकड़ी का कचरा या फसल अवशेष आदि।
पायरोलिसिस नामक प्रक्रिया में ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में सामग्री को उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है। इससे बनी चारकोल जैसी सामग्री को बायोचार कहा जाता है।
इसे मिट्टी में मिलाने से मिट्टी की उर्वरता, जल धारण क्षमता और सूक्ष्मजीवों की सक्रियता में वृद्धि होती है।
पहले से ज्यादा हरी-भरी दिख रही फसलें
पायलीबाहुर गांव की पहलवती और परवतराम सिंह ने पहले उत्पादन चक्र में ही लगभग 45 किलो बायोचार तैयार किया।
गायत्री और दशरथ सिंह ने 35 किलो बायोचार एकत्र किया। उनका कहना है कि बायोचार को खेतों में मिलाने के बाद मिट्टी की ताकत बढ़ी है। फसलें पहले से ज्यादा हरी-भरी दिख रही हैं।
किसानों को उम्मीद है कि यह तकनीक अन्य गांवों तक भी पहुंचेगी। इससे किसान समृद्ध होंगे। पर्यावरण संरक्षण भी होगा।
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