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खेत के कमरे में बनाई लैब, बैक्टीरिया तैयार कर फसल को कर रहे कीट मुक्त

कीट मुक्त

 

भोपाल के प्रगतिशील किसान मिश्रीलाल राजपूत ने अपने खेत के एक कमरे को प्रयोगशाला का रूप दे दिया है।

 

रासायनिक उर्वरकों के बेजा उपयोग से मिट्टी की उर्वरता काफी कम हो गई है। साथ ही मिट्टी में मौजूद फसलों के मित्र जीवाणु समाप्त हो गए हैं।

इस वजह से किसानों को कीट प्रकोप से फसल बचाने, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए महंगे कीट नाशकों का इस्तेमाल करना पड़ता है।

वो भी पूरी तरह असरकारक नहीं होते हैं।

ऐसी स्थिति में भोपाल के प्रगतिशील किसान मिश्रीलाल राजपूत ने अपने खेत के एक कमरे को प्रयोगशाला का रूप दे दिया है।

Bhopal News : खेत के कमरे में बनाई लैब बैक्टीरिया तैयार कर फसल को कर रहे कीट मुक्त - Bhopal News Lab made in the farm room making the crop insect free

इसमें वह मामूली लागत से खेती के मित्र जीवाणु विकसित कर उनका कीटनाशक के तौर पर सफल प्रयोग कर रहे हैं।

उनके द्वारा बेसिलस थुरिनजेनेसिस बैक्टीरिया और ट्राइकोडरमा हरजेनियम फंगस बनाया गया है।

इनके इस्तेमाल से उन्होंने टमाटर, गोभी और चने पर लगी इल्लियों का सफाया कर दिया है।

मिश्रीलाल ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा, नई दिल्ली से इसके लिए प्रशिक्षण लिया है और पूसा की विज्ञानी रेखा बलोदी ने भी इसे असरकारक बताया है।

 

आलू, चावल, बाजरा से बनाया ट्राइकोडरमा हरजेनियम फंगस

ग्राम खजूरीकला निवासी मिश्रीलाल ने बताया कि वह 15 वर्ष से जैविक पद्धति से खेती कर रहे हैं।

वह मात्र 200 रुपये की लागत से आलू अथवा चावल, बाजरा से ट्राइकोडरमा हरजेनियम फंगस को विकसित कर लेते हैं।

इसके लिए एक लीटर पानी में 250 ग्राम आलू को उबाला जाता है।

पानी को छानकर उसमें 25 ग्राम डेक्सट्रोज और 15 ग्राम अगर मिलाने के बाद पानी को दोबारा उबाला जाता है।

पूरी तरह ठंडा होने के पहले पानी को प्लास्टिक की ट्रे में आधा इंच तक फैला दिया जाता है। 10 मिनट में वह जम जाता है।

इसके बाद ट्राइकोडरमा हरजेनियम के कण ट्रे में तीन चार स्थान पर चिमटी की सहायता से छोड़ दिए जाते हैं।

तापमान 25 डिग्री सेल्सियस के आसपास रखा जाता है।

 

सात दिन में ट्राइकोडरमा हरजेनियम फंगस इस्तेमाल के योग्य हो जाती है।

इसी तरह बाजार से 25 ग्राम मीडिया बैक्टीरियल लाकर उसे बंद कमरे में एक लीटर पानी में गर्म किया जाता है।

72 घंटे में एक लीटर पानी में थुरिनजेनेसिस बैक्टीरिया विकसित हो जाता है।

15 लीटर पानी में 50 मिलीलीटर थुरिनजेनेसिस बैक्टीरिया मिलाकर फसलों पर छिड़काव कर दिया जाता है।

 

पर्यावरण बचाने की पहल

मिश्री लाल राजपूत ने बताया कि 15 वर्ष पहले वह भी खेती में रासायनिक खाद का इस्तेमाल करते थे।

इससे उत्पादकता में तो कुछ बढ़ोतरी दिखी, लेकिन जमीन की उर्वरता प्रभावित होने लगी थी। केंचुए गायब हो गए थे।

अब वह खेती में पूरी तरह जैविक खाद का इस्तेमाल करते हैं। साथ ही जैविक पद्धित से तैयार कीटनाशकों से कीट प्रकोप पर काबू पा लेते हैं।

 

इनका कहना है

बेसिलस थुरिनजेनेसिस बैक्टीरया है, जबकि ट्राइकोडरमा हरजेनियम फंगस है। दोनों जैविक हैं।

इन मित्र जीवाणुओं का इस्तेमाल फसलों को कीट प्रकोप से बचाने के लिए किया जाता है।

इनके इस्तेमाल से पर्यावरण को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं होता।

किसान इन्हें अपने स्तर पर भी विकसित कर सकते हैं।

हालांकि समय-समय पर इनकी गुणवत्ता की जांच प्रयोगशाला में कराते रहना चाहिए।

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